अश्विनी कुमार उपाध्याय ने प्रस्तुत की कविता
प्रतापगढ़
सारे रंग इंद्रधनुष के
मिल रहे उस स्वप्निल समुद्र से
सुगंध सारे पुष्प जगत के
बिखर रहे उसमें घुलघुल के
है निकल रही राग रागनियां
उसके हिचकोलों के कलकल से
है उदीयमान नक्षत्रों और मंदाकिनियो के बिंब
उसके विस्तीर्ण जल तल से
विस्मृत हो रहा क्षितिज
जब मिल रही धरा अंबर से
यह कैसा लय है, कैसा नृत्य है, कैसा स्वर है ?
ये राग रंग दृश्य का क्या संगम है?
क्या यह कोई सम्मोहन है ?
या कोई दिवास्वप्न है?
कविता के रचयिता पट्टी ग्राम न्यायालय के न्यायाधीश महोदय अश्विनी कुमार उपाध्याय ।
रिपोर्टर : रोहित जायसवाल
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