रामकुमार कृषक की कुछ मशहूर ग़ज़लें- ‘जिंदगी बूंद भर नहीं होती दिल को हर हाल समंदर रखना’

1-वक्त है वक्त की तेज रफ्तार है

जो नहीं चल रहा वो गुनहगार है

 

वक्त को काटना है हंसी-खेल क्या

वक्त तो खुद-ब-खुद एक तलवार है

 

बेवफा हो भले जिंदगी मौत से

मौत को जिंदगी से बहुत प्यार है

 

वक्त को जांच लें बांच लें हाथ से

अन्यथा व्यर्थ जाएगा अखबार है

 

वक्त के हाथ में तो घड़ी ही नहीं

हर घड़ी वक्त की ही तलबगार है

 

वक्त है सिंधु खुद में घुमड़ता हुआ

संग भाटा कभी तो कभी ज्वार है

 

सिर्फ खुद्दारियत ही खुदा दोस्तो

वक्त भी है खुदा पर निराकार है।

 

2- आप लिखकर कीजिए या मुंहजबानी कीजिए

देश अब खुशहाल है बातें सुहानी कीजिए

 

हर तरफ सब्ज़ा ही सब्ज़ा है कहीं बंजर नहीं

अब समंदर में उतरकर बागबानी कीजिए

 

भूख अब मुद्दा नहीं है मुद्दआ भूखे हैं जो

उनसे कहिए भूख ही की मेज़बानी कीजिए

 

हम जो करते हैं उसे कहते नहीं हैं दोस्तो

आप से ही क्यों कहें फिर बेईमानी कीजिए

 

तंज करना हो तो कीजे हम गिला करते नहीं

पर ग़ज़ल कहिए न इसको मेहरबानी कीजिए।

 

3- लोक पर जब भी कड़ा पहरा हुआ

तंत्र से संबंध ही गहरा हुआ

 

हैं बहुत बेचैन घड़ियां तो यहां

आदमी ही कुछ अभी ठहरा हुआ

 

चीखने लग जाएं जब बंदे कहीं

साफ मतलब है खुदा बहरा हुआ

 

राष्ट्र तो फुटपाथ पर बेदम बिछा

और उनका राष्ट्रध्वज फहरा हुआ

 

देश-भर का बोझ उन पर ही सही

देश किनके बोझ से दुहरा हुआ।

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