डायरी के पन्ने (अपराध और नशा)

साहित्य : हमारे शहर ,गांव ,कसबा, मुहल्ला दिन कुछ ऐसी घटनाएं भी होती हैं जो अंदर तक हिला देती हैं और सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि आखिर क्यों हमारा समाज ऐसा है? क्यों हम लोग अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते हैं ?जिससे वह अच्छी जिंदगी नहीं जी पाते यूं ही कहीं भटकते भटकते भीड़ में खो जाते हैं?

कल जब मैं ई रिक्शा से कॉलेज से अपने घर आ रही थी तो रास्ते में एक जगह सुनसान सड़क पर चार पांच बच्चे खड़े मिले। सभी बच्चों को देखकर लग रहा था की स्कूल से उनका दूर-दूर तक नाता नहीं है ?सभी बच्चे 14 या 15 साल के होंगे? उसमें से एक बच्चे ने रिक्शा वाले को रुकने को कहा ,
रिक्शा वाले ने रोक दिया और पूछा कहां जाना है तो एक बच्चे ने हा "घर जाना है ।"
रिक्शावाला हंसने लगा और कहां घर तो जाना है लेकिन घर कहां है? इस बात पर सभी हंसने लगे और उसमें से एक बच्चे ने कहा कि अमुक जगह पर जाना है।
उस सभी  बच्चों में एक बच्चा ई रिक्शा पर बैठने लगा दूसरे बच्चे ने उससे कहा कि- "तुम अब सारे गलत काम छोड़ दो ऐसा कुछ भी मत करना जिससे तुम्हारी जिंदगी खराब हो"
बच्चे ने बिना कुछ कहे हां में में सर हिला दिया और चुपचाप ई रिक्शा पर बैठ गया। मेरे सामने ही वह लगभग 15से20 मिनट बैठा रहा। 
बच्चे की बात मेरे कानों में घूम रही थी मेरा पूरा ध्यान इस बच्चे के ऊपर जा का टिका । चेहरे से 14 या 15 वर्ष का बच्चा लग रहा था परंतु शरीर से वह 20 से 22 साल का लग रहा था क्योंकि वह मोटा हो गया था, ऐसा लग रहा था जैसे नशा करने के कारण उसका शरीर फूल गया हो। ई-रिक्शा बढ़ता जा रहा था और वह गंभीर मुद्रा में बैठा हुआ था। मेरा मन हुआ कि मैं उससे कुछ पूछूं परंतु यह सोचकर चुप हो गई कि यदि उसने उत्तर नहीं दिया तो मुझे बुरा लगेगा 
मैं चुप रही पर उसकी आंखों की उदासी सब कह रही थी की वह जो भी कर रहा है वह उसकी इच्छा नहीं है? वह कर रहा है क्योंकि उसे करना पड़ रहा है?
 इसके सिवा उसके पास कोई और रास्ता नहीं है और ना ही किसी मंजिल का पता है क्योंकि उसके माता-पिता या उसके रिश्तेदारों  उसे वह सब दिया ही नहीं दिया जिसकी उसे जरूरत थी?
शिक्षा के के नाम पर कुछ वर्ष ऐसे स्कूलों में पढ़ाई की जहां सिर्फ और सिर्फ साक्षर बनाया गया। सामाजिक और नैतिक शिक्षा के नाम पर चंद शब्द कहकर शिक्षकों द्वारा पल्ला झाड़ लिया जाता है और ऐसे बच्चों के माता-पिता रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में ऐसे व्यस्त रहते हैं कि, उनके बच्चे कहां गए क्या कर रहे हैं ?यह सब चीजों को देखने और समझने की उन्हें फुर्सत ही नहीं होती है। अगर वह सिर्फ बच्चों को कुछ देते हैं तो वह सिर्फ और सिर्फ "अभाव" जिस अभाव को देखकर बच्चा बड़ा होता है और उस अभाव के विरोध में गलत रास्तों पर निकल पड़ता है।
वास्तव में हमारी गलतियां हमें जीना सिखाते हैं ठोकर लगती है और हम जीना सीख जाते हैं परंतु हमारी गलतियां कभी-कभी ऐसे ठोकरें देती हैं देती हैं कि,संभलने का मौका ही नहीं देती? गरीबी और लाचारी की ठोकर  ऐसे ही गरीब बच्चों को मिलती हैं जिससे बच्चे संभल नहीं पाते हैं ?क्योंकि उसे संभालने वाला, उसे समझ देने वाला ,उसे सही रास्ता दिखाने वाले जिन माता पिता कि उसे जरूरत होती है वह तो अभाव में कहीं खोए रहते हैं? और बच्चे अभावों को दूर करने के प्रयास में खुद जिंदगी से दूर हो जाते हैं।
जिंदगी की यही कमी मुझे उस बच्चे की आंखों में दिखाई दे रही थी।ऐसा लग रहा था जैसे बेसहारा और असहाय हो ?जिसके सर पर कभी प्यार से उसकी मां ने हाथ नही फेरा हो और न पिता ने कभी प्रेम से बात की हो? अभाव ने उसे चोरी छिनाझपटी का शिकार दिया हो? उसे भी पता था कि, वह गलत रास्ते पर है पर सही और अच्छा रास्ता किधर से गुजरता है यह उसे पता ही नही था और यह बात उसकी आंखो में स्पष्ट दिख रही थी।

मन अंदर से भीग रहा था और मैं सोच रही थी कि,क्यों हमारे समाज में इतनी विकृति हैं कि,बहुत अमीर मां बाप भी बच्चो पर ध्यान नही दे पाते और न ही गरीब भी अपने बच्चो  को जीवन में सही दिशा नही दे पाते है? समाज में गरीबी और अमीरी का स्तर ,जाती पाती भेदभाव, असमान सामाजिक व्यवस्था के कारण सिर्फ और सिर्फ ऐसे बच्चे शिकार होते हैं जिसे सही ,मार्गदर्शन सही शिक्षा और सही तरीका जीवन का सीखना होता है परंतु अभाव इन्हे कुछ सीखने ही नही
 देती है।
उस बच्चे की सूनी आंखें बहुत कुछ कह रही थी, मेरे सारे सवालों का जवाब दे रही थी , हम मनुष्य बुद्धि और समाज वाले हैं ज्ञान वाले हैं मगर हमने समाज के इतने टुकड़े कर डाले हैं जाती पाती धन वैभव कैसे से दीवार लोगों के बीच खड़े कर डालने हैं जिसमें स्वच्छ और सुधा वा हर किसी के पास नहीं पहुंचती मैं हर किसी के लिए आसान नहीं हो पाता है कोई भूख से मर रहा होता है और कोई खा नहीं पाता है कोई नींद से व्याकुल रहता है उसे बिछावन नहीं मिलती है और कोई बिछावन पर नींद को नहीं आ रहा होता है किसी के पास इतना धन है कि वह गिन नहीं पाता है और किसी के पास हथेली पर रखे चंद सिक्के होते हैं जिसे निहार कर और जिसे खोने के डर से वह आक्रांत रहता है निश्चित ही अव्यवस्था स्वर्ण नहीं हम इंसानों ने बनाई है जिसमें इंसानियत शर्मसार और बीमार हालत में पड़ी है। इसी क्रम में आज एक बच्चा और मुझसे मिलने आया उसे यह जानना था कि कॉलेज में क्लास हो रहा है कि नहीं वह मेरे पास आया और मुझसे पूछा मैं क्लास हो रहा है क्या?
मैंने कहा हां क्लास तो हो रहा है तुम कहां थे जो तुम्हें पता नहीं है उस बच्चे ने कहा मैं 4 महीने से रिहैब सेंटर में था मैंने पूछा कि तुम्हें कौन किस वजह से तुम रिहैब सेंटर में थे उस बच्चे ने कहा मैम मुझे ड्रग्स की आदत लग गई थी इस कारण मुझे रिहैब सेंटर में रहना पड़ा तो मैंने कहा कि कौन सी नशे की तुम्हें आदत लगी थी तो उस बच्चे ने कहा सफेद पाउडर की?
मैंने पूछा उससे किस छोटे शहर में मिलता है उस बच्चे ने कहा हां मिलता है?
 यह सुनकर मुझे बड़ा दुख हुआ और नशे के शिकार बच्चे हो रहे हैं यह जानकर मुझे और भी बुरा लगा क्योंकि बड़े लोग तो नशा कर अपनी जिंदगी एवं अपने परिवार को बर्बाद करते ही हैं अब बच्चे भी इससे अछूते नहीं हैं?
मैंने उस बच्चे को समझाया और क्लास आने के लिए प्रेरित किया। उस बच्चे ने भी मुझसे बहुत बातें शेयर की कहा कि, मुझे किसी ने समझाया नहीं ?किसी ने मेरा साथ नहीं दिया? मैं गलत दिशा में चल निकला? मैं अपने आप को अकेला महसूस करता था मेरे कुछ दोस्तो ने मिलकर यह लत लगा दी; मगर मैं अब ऐसा नहीं करूंगा मैं समझ चुका हूं। "
उस बच्चे की बातों से मुझे तसल्ली तो जरूर हुई मगर वह भविष्य में दोबारा ऐसा नहीं करेगा इस बात पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ था?
 क्योंकि बच्चों को ड्रग्स की लत लगाने में बच्चों को ही मोहरा बनाया जाता है बड़े-बड़े सफेदपोश लोग बच्चों का प्रयोग  ड्रग्स बेचने   के लिए करते हैं ।बच्चों को प्रलोभन देकर अपने नशीली वस्तुओ  का धंधा फैलाते हैं ?
बच्चे ही बच्चों को प्रलोभन और गलत बातें समझा कर ड्रग्स का  बना देते हैं ?ना हीं माता-पिता  समझ पाते हैं और ना ही उनके शिक्षक की कब कैसे कहां और क्या हुआ? जो बच्चा ड्रग्स का आदी हो गया?
सारी बातों को देख और समझ कर तो यही लगता है कि बच्चों की तरह ही हम बड़ों को भी ऐसे विद्यालय की आवश्यकता है जिसमें पैसे कमाने की जगह सामाजिक राजनीतिक सांस्कृतिक एवं नैतिक शिक्षा पूर्णरूपेण से मिले ताकि हमारा जीवन स्वस्थ बन सके।

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