सनातन धर्म का अर्थ है जो अनादिकाल से अनंतकाल तक बना रहे

साहित्य :   आजकल बाबा धीरेंद्र शास्त्री का दरबार बहुत चर्चा में है और ऐसे कितने बाबा हे हमारे भूतल में । तो आइए आज हम जानते हैं कि इससे क्या सच्चाई निकल सकती है और सतयुग त्रेता और द्वापर युग में जन्म लेके भगवान क्या कहना चाहते थे?! सर्वप्रथम सनातन का अर्थ है वह धर्म जो अनादि काल से चला आ रहा है और हमेशा के लिए रहता है, जिसे किसी भी समय नष्ट या रोका नहीं जा सकता है यह अनादि काल से आता है और हमेशा के लिए रहेगा। अब आगे बात करें तो ईश्वरीय दरबार में कई मामलों में कर्म के सिद्धांत को दरकिनार कर दिया जाता है और लोगों को दुखों के बारे में बताया जाता है और उसे दूर करने के उपाय बताए जाते हैं। जो किसी भी परिस्थिति में और किसी भी युग में संभव नहीं है क्योंकि कर्म तो कई प्रकार के होते हैं लेकिन बड़े चाव और उत्साह से किए गए बुरे कर्मों के फल को कोई नहीं रोक सकता। और सभी धर्मों के भगवान ने भी इस धरती पर जन्म लेकर इस बात का  प्रमाण दिया है। भगवान कृष्ण को भी जन्म के समय अपने मूल माता-पिता की कमी महसूस करनी पड़ी !? जब भगवान राम भी वनवास गए और स्वयं हनुमान भी ऋषि मुनि से दुराचार से श्राप के कारण अपनी शक्ति को भूल गए। इस प्रकार हमारे सभी शास्त्रों में कर्म भोगने की तत्परता दिखाई गई है और स्वयं भगवान ने भी यहाँ भोगा है.?! अब यदि आत्मबल और तपस्या और ईश्वर की कृपा की बात करें तो विज्ञान भी मानता है कि आत्मशक्ति अनंत है, तपस्या के साथ जब यह मिल जाती है तो एक अनूठा संयोग बनता है और किसी की कृपा से आप अपनी आत्मा को मोक्ष की ओर ले जा सकते हैं। अनंत का द्वार खोल सकते हैं लेकिन कुछ ज्ञान या शक्तियाँ प्राप्त करने के बाद, आप इसे सार्वजनिक रूप से या सभी के लिए कभी भी उपयोग नहीं कर सकते। अफ़सोस उसके लिए सतयुग, द्वापर युग और त्रेता युग में भी एक नियम था और यह कलियुग है, सबसे पहले तो कर्म की दृष्टि से ऐसी शक्तियाँ प्राप्त करना असंभव है और यदि मिल भी जाए तो उसका उपयोग नहीं हो शकता और वो भी सभी लोगों द्वारा या हर जगह सार्वजनिक रूप से।यह अनुमति सनातन धर्म नही देता है। अब आते हैं मुख्य बात पर यानी ऐसे दिव्य दरबार पर जिसे विज्ञान मन पढ़ना कहता है, लोग शक्ति कहते हैं, और बाबा तपस्या कृपा कहते हैं। लेकिन ये सब बातें या चमत्कार और जादू तब तक चलता रहता है जब तक ये समझ में नहीं आता और भले ही लोग पीड़ित हों या उसे कोई तकलीफ हो जब वो हारता हे तभी ऐसे रास्ते ढूंढता हे और यह पूर्णत श्रद्धा का विषय हे इसीलिए तो चलता हे। अगर कोई आस्था के साथ हिंदुत्व का नारा लिए पूरे राजनीतिक समर्थन से चमत्कार का रास्ता दिखा रहा है तो यह होना ही है। अब एक बात तो भक्त समझ सकते हैं कि जब कोई बेरोज़गारी, बेरोज़गारी या महंगाई की बात करता है तो कुछ आंकड़े आ जाते हैं और कहते हैं कि अगर गाड़ियों, भीड़ भरे रेस्तराओं, बिकते मकानों के आंकड़े पेश कर देंते और बताते हे की ऐसा कुछ नही हे  तो ऐसे दरबार में लाखों की भीड़ लग जाती है. , तब हमारा यह स्पष्ट हो गया है कि देश के करोड़ों लोग किसी न किसी कारण से पीड़ित हैं और दुखी हे। कितने केस ऐसे भी आते ही हे सब धर्मों के दरबार , चोबारा  यातो उस धर्म स्थानों पे जिसका हल कानूनी रूप से और नीति और न्याय के दंड विभाग के साथ हमारे संविधान से उसके तहत होने चाहिए लेकिन वो नही होता तब यह दरबार या इन जेसे रास्ते में जाना ही होगा, और ऐसी परिस्थिति में  मन को किसी भी तरह सांत्वना देने वाला सबसे ऊपर है यह जनमानस का चित्र हे !? अंत में यही स्पष्ट होता है कि, धर्म से कोई नीच नही हे धर्म से कोई महान नही  कर्म से बढ़कर किसी मनुष्य की कोई और पहेचान नही तो अगर आप वो धर्म की बात करो जो धर्म परिवर्तन में लगे है उसका सबसे बड़ा टूल ही है अपने धर्म में पूरा विश्वास जो लिखा है वही सीखाया जाता हे। ना उसमे कम न ज्यादा। अरे कितने धर्म परिवर्तन करने वाले लोगो को भी पक्का हो वो जिस धर्म में जा रहा हो उसकी नीव शीखके उसमे वो जुड़े बादमें ही अपनाते हे और ऐसे लोग वापिस नही आते?! ऐसे ही अगर हमे कोई भी धर्म और खास सनातन और हिंदू धर्म को आगे बढ़ाना ही है तो उसे रोड पर नही , उसे दरबारी चम्तकारो से नही लेकिन उसे गली गली बसे हर एक मंदिर मै हर रविवार को शीखाना चाहिए और भारत के सारे मंदिरों से जुड़े सभी लोगो को अपनी आसपास ही ऐसे व्यक्ति को यह काम सोपना चाहिए जो सिर्फ और सिर्फ धर्म और शास्त्र जानता हो और उसे आचरण में ला सकता हो। उसे रामायण , महाभारत , गीता और हनुमान चालीसा जेसे पाठ और मंत्रों में रुचि हो और अच्छे संस्कार दे सके अगर यह हो गया तो भारत अपने आप ही एक चुस्त धर्म और कर्म वाला सनातन राष्ट्र बन जाएगा जिसमे ऐसे पाठशाला से बहार आए बच्चो को पूख्त होते ही यह पता होगा के क्या करना हे और कया नही। अगर यह चमत्कार हो जाए तो शायद भारत यह धर्म की राजनीति से बहार होके सिर्फ कर्म की राजनीति पे ही सोचना शरू करदे। आशा हे की जिसने भी यह पढ़ा हे उसे सनातन सत्य समझ में आ गया हे और वह अपने आसपास के मंदिर से यह पहल करेंगे। अस्तु जय श्री राम

रिपोर्टर : चंद्रकांत पुजारी

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