भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ

हिंदी शब्द में जैसे एक शब्द के कई पर्यायवाची शब्द होते हैं वैसे ही इस देश में भूख की कई जातियां, कई धर्म, कई मजबूरियां होती हैं.. भूखे का एक ही धर्म होता हैं वो है -रोटी.. लेकिन इस देश के ज्यादातर राजनेता, सेठ और धर्मांतरण के गिरोह का हाकिम. ग़रीबों के भूख की चितायों पर अपनी रोटी सेकते हैं,  जो ग़रीबी भुखमरी दुसरें मानव के लिए अभिशार्प हैं. वही ग़रीबी-भुखमरी नेताओं के लिए वरदान हैं. हमारें देश में भूख केवल एक राजनीतिक मुद्दा हैं. जो चुनाव होते ही शुरू होता हैं और चुनाव ख़त्म होते ही ख़त्म हो रहा हैं. जब किसी की भूख से मौत होती हैं तो ये बात देश के पुरषार्थ पर कलंक लगाती हैं. राजनीति के शीश पर बैठे हुए उन डंकापतिओं से सवाल करती हैं. तुम्हारा विकासवाद का नारा झूठा हैं. तुम्हारा सबका साथ और सबका विकास कहना एक प्रपंच हैं. जब खाने के नाम पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का झोला दिखाई देने पड़े तो क्या ही कहने हैं. 

भूख की भी अपनी एक अर्थव्यवस्था हैं जहा सरकारें हर वर्ष कुछ न कुछ दावा करती हैं. लेकिन इन सब से कुछ होता नहीं हैं. नयी सरकार आएगी कहेगी की हम भुखमरी ख़त्म करेंगे. अब वहा इसका पता लगाना मुश्किल हो जाता हैं की किसकी अपनी या जनता की. भूख जिंदा रखना बहुत बड़ी जरुरत हैं . भूख से वोट का मसला जुड़ा हुआ हैं.  इसी भूख पर एक शायर दुष्यंत कुमार की कालजयी कविता हैं. 'भूख है तो सब्र कर' उन्होंने लिखा हैं कि अब किसी बात पर भी सरकार की आँखे नहीं खुलती हैं. जब जनता विरोध में भूखे मरने को तैयार होती हैं राजनीति इस भी अपना हथियार बना लेती हैं.. आइये पढ़ते हैं कुमार ने आगे क्या क्या लिखा हैं. 

भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ
आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुदद्आ ।

मौत ने तो धर दबोचा एक चीते कि तरह
ज़िंदगी ने जब छुआ तो फ़ासला रखकर छुआ ।

गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नही
पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बददुआ ।

क्या वज़ह है प्यास ज्यादा तेज़ लगती है यहाँ
लोग कहते हैं कि पहले इस जगह पर था कुँआ ।

आप दस्ताने पहनकर छू रहे हैं आग को
आप के भी ख़ून का रंग हो गया है साँवला ।

इस अंगीठी तक गली से कुछ हवा आने तो दो
जब तलक खिलते नहीं ये कोयले देंगे धुँआ ।

दोस्त, अपने मुल्क कि किस्मत पे रंजीदा न हो
उनके हाथों में है पिंजरा, उनके पिंजरे में सुआ ।

इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात
अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियाँ ।

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