गुरु पूर्णिमा : होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ आर के यादव के कलम से गुरु के सम्मान में खास लेखनी..

समस्तीपुर : समस्तीपुर जिला के हसनपुर प्रखंड के मशहूर होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ. रामकुमार यादव के कलम से गुरुपूर्णिमा पर गुरु के सम्मान में लेखनी साझा किया है, जिन्होंने कहा कि प्रागैतिहासिक काल से लाखों वर्ष पूर्व घोर अंधकार युग के प्राचीर से एक शब्द जो आज भी गुंजायमान हो  रहा है,वो है आत्मा -जो अजन्मा ,अमर, अविनाशी और निरपेक्ष है। संसार के सभी प्रचलित प्रमुख धर्म हिन्दू, मुस्लिम, सिख ईसाई, यहुदी, पारसी और बौद्ध का एक धड़ा सहित अधिकांश धर्मों का आधार आत्मा हीं है परन्तु देश,काल,और नैमितिक कारणों से सभी धर्मों में एक हीं शाश्वत आत्मा कि व्यासिय ज्ञानान्तर दिख रहा है। यद्यपि सभी धर्म एक हीं शाश्वत आत्मा से जुड़े हैं,फिर भी दुनियां में सबसे बड़ी हिंसा और विवाद धर्मों को लेकर रहा है। स्वामी विवेकानंद वेदांता दर्शन पर अपनी व्याख्यान में दुनियां के सभी धर्मों को मुख्य रूप से तीन अवधारणाओं पर आधारित होना बताया करते थे।अद्वैतवाद,द्वैतवादऔर त्रैतवाद ।इनमें केवल व्यवहारिक अंतर है।एक कहता है- अहम् ब्रह्मसी,दुसरा कहता है- जीवात्मा और ब्रह्म दो हैं,तीसरा कहता है- जीव और ब्रह्म के मध्य माया है। शाश्वत आत्मा का धर्म स्वयंनिष्ठ और इन्द्रियातित है,जो कभी व्यवहारिक धर्म का हिस्सा नहीं होता पर व्यवहारिक धर्म शाश्वत धर्म का हिस्सा होता है।आत्मा और परमात्मा अद्वैत भाव से एक हीं है। आत्मा व्यष्टि भावाभिव्यक्ति है तो परमात्मा समष्टि भाव कि अभिव्यक्ति है। सूर्य के समक्ष रखे अनेकों जल पात्र में अनेकों सूर्य तो दिखता है पर सूर्य एक हीं होता है। शाश्वत और निरपेक्ष धर्म के इस भाव का प्रत्यक्षीकरण विशिष्टाद्वैत के रुप में श्री राम कृष्ण परमहंस जी महाराज के जीवन में घटित घटना से स्पष्ट समझा जा सकता है।  तत्कालीन भारत के पश्चिमी प्रांत पंजाब के सिद्ध संन्यासी तोता पुरी जी भ्रमण करते हुए कोलकाता स्थित मां दक्षिणेश्वरी काली मन्दिर पहुंचे तो उनकी नजर श्री राम कृष्ण परमहंस जी पर पड़ी।उस समय वो सहज शांतचित्त मन्दिर के एक किनारे बैठे थे। तोता पुरी जी को लगा यह व्यक्ति अद्वैत वाद कि दीक्षा के लिए उपयुक्त है। राम कृष्ण परमहंस जी को प्रस्ताव मिला और वो मन्दिर जाकर मां से स्विकृति प्राप्त कर दीक्षा ग्रहण करते हैं।दीक्षोपरान्त बड़ी कठिनाई से ध्यान पथ पर अग्रसर होते हैं और ध्यानास्त होते हीं महासमाधि में पहुंच गये।इस अवस्था को पाने के लिए साधकों को वर्षों और कई जन्म लग जाते हैं वहीं राम कृष्ण जी इसे सहजता से प्राप्त कर लिए।समाधि कि ऐसी स्थिति को देख तोता पुरी जी आश्चर्य में पड़ गए। राम कृष्ण जी इस समाधि से वापस आने में महिनों लगा दिए।तोता पुरी जी किसी भी धर्म स्थल पर तीन दिन से ज्यादा नहीं ठहरते थे। दक्षिणेश्वरी में उन्हें ठहरना पर गया।भला ऐसे अनोखे शिष्य से गुरु दक्षिणा लिए वगैर वो कैसे चले जाते। ध्यान से वापस आने के बाद नित्य गुरु शिष्य के बीच अद्वैतवाद पर घंटों चर्चाएं और वाद- विवाद का ऐसा दौर चला जो समाप्त होने का नाम हीं नहीं ले रहा था।राम कृष्ण अपने गुरु से अद्वैत वाद कि दीक्षा लेने के बाद भी अपनी जुबान से मां काली का रट लगाना छोड़ नहीं पाए। तोता पुरी जी, शिष्य के इस व्यवहार से दुविधा में पड़ गए। राम कृष्ण जी जान गये कि गुरुदेव को हमसे दक्षिणा और विदाइ के लिए उपयुक्त समय यही है।एक रात तोता पुरी जी अपने कक्ष में सोये थे कि अचानक उनके पेट में दर्द होता है वो इस समस्या से निजात पाने के लिए किसी कि मदद न लेकर ध्यान में बैठ कर शारीरिक पीड़ा से निजात पाने का निर्णय ले लिए। ध्यान क्रिया में निपुण तोता पुरी जी असफल प्रयास करते रहे पर उस दिन उनसे ध्यान नहीं लग पाया। खुद से खिन्न होकर वो आत्म हत्या का निर्णय ले कर गंगा जी में कुदे,पर वो डुबने में भी असमर्थ हो गये,जबकि उस समय गंगा जी का विकराल रूप सामने था।पैदल चलकर वो इस पार से उस पार हो गये पर डुब नहीं पाए। दुसरे किनारे पहुंचते हीं उनके पेट का दर्द ठीक हो गया और उनके मन से आत्म- हत्या का निर्णय भी बदल गया। सामने गंगा जी कि विकराल धारा को देख वापस इस पार आने कि हिम्मत नहीं हो रहा था। अचानक थोड़ी दूर पर नाव के पास सफेद वस्त्र में एक महिला खड़ी थी जो तोता पुरी जी को इसारे से बुलाकर, नाव से उसपार पहुंचा कर गायब हो गई। तोता पुरी जी के साथ रात भर जो हुआ, इससे वो काफी परेशान हो सुबह तक सो नहीं पाये।दैनिक प्रातः दर्शन के लिए राम कृष्ण अपने गुरु के पास पहुंचे तो गुरु देव तोता पुरी जी के चेहरे पर परेशानी को देख भांप लिए। भयभीत तोता पुरी जी राम कृष्ण को पास बैठने का इशारा करते हैं और बैठते ही माया शक्ति के बारे में पुछ हीं लिया, जो कभी माया को महत्व नहीं देते थे। राम कृष्ण जी महाराज जवाब में एक छोटा प्रसंग रखते हुए बोले-भगवान राम,सिता और लक्ष्मण वनवास के समय एक छोटी सी पगडंडी से जा रहे थे। आगे राम,मध्य में सीता और पिछे-पिछे लक्ष्मण जी जंगल के एक सकड़े रास्ते से गुजर रहे थे। मध्य में सीता जी के होने के कारण लक्ष्मण जी से भगवान राम ओंझल पर जाते थे। उन्हें देखने कि लालसा में लक्ष्मण कभी दाएं तो कभी बाएं झुक कर देखने कि चेष्टा करने लगे। सीता जी लक्ष्मण के दांए बांए झुकने का कारण समझ गई। सीता जी बोले-  लक्ष्मण जी कुछ देर के लिए मैं आप दोनों भाई के मध्य से किनारे हो जाती हुं ,ताकि आप अपने भैया का दर्शन कर लेंगे।राम कृष्ण जी अपने गुरु देव से बोले गुरुदेव यह राम , सीता और लक्ष्मण तीनों तीन नहीं एक हीं हैं।राम ब्रह्म है तो सीता ब्रह्म कि शक्ति और लक्ष्मण जीवात्मा है जो उसी ब्रह्म का अंश हैं।आत्मा (अंश)अपने अंशी ब्रह्म स्वरूप को माया (सीता) कि कृपा के वगैर कैसे प्राप्त कर सकता है।अद्वैत का यही सर्वोच्च भाव विशिष्टाद्वैत कि स्थिति है।अद्वैत,द्वैत और त्रैत एक हीं साधक कि निष्पत्ति और सम्पूर्ती मात्र है, इनमें द्वंद कहां है। गुरु देव तोता पुरी जी दक्षिणेश्वरी में महीनों रहे, पर एक दिन भी मां काली के आगे माथा नहीं टेकें। अपने शिष्य राम कृष्ण परमहंस जी के सर्वोच्च भाव से अभिभूत होते हीं मां काली के मन्दिर में जाकर सिर झुका कर मां के चरणों से लिपट गये। राम कृष्ण परमहंस जी पढ़ें लिखे नहीं थे। उन्हें वेदों का ज्ञान नहीं था, लेकिन वेदों का समाधान किया करते थे। यह उनके सर्वोच्च भाव का हीं परिणाम था। ऐसे हीं एक महान संत ब्रह्मलीन बाबा बलराम सिंह जी महाराज थे जिन्हें बहुत करीब से दर्शन और शिष्वत्व ग्रहण करने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ।अति संक्षिप्त प्रवचन और सर्वोच्च भाव से अभिभूत स्थिति के लिए वो विश्व विख्यात थे। यद्यपि मैं उनके एक चरण रज कि अनुभुति मात्र हुं।वो अपने एक स्पर्श मात्र से सामने बैठे किसी भी व्यक्ति का दैहिक, दैविक और भौतिकता के बारे में अद्भुत जानकारी दिया करते थे।देश, विदेशों में चाहने वाले लाखों शिष्य उनके मातृ उद्यवोधन आश्रम,यारपुर, पटना में प्रति वर्ष गुरु पूर्णिमा के दिन श्रद्धा से सिर नवाने आज भी आते हैं।विशेष कृपा प्राप्त गुरु देव के कनिष्ठ पुत्र श्री सत्येन्द्र कुमार सिंह जी महाराज आश्रम में गुरु परम्परा का निर्वहन सच्ची निष्ठा और भक्ति के साथ आज भी कर रहें हैं। यहां ब्रह्मलीन बाबा बलराम सिंह जी महाराज के समय से आज तक मातृ शक्ति मां काली कि भक्ति के साथ सहज ध्यान योग कि प्रक्रिया आम भक्तों के अन्दर जागृत कर जीवन के उच्चतम आदर्श का दर्शन कराया जाता है।

                                     

 

रिपोर्टर - गौतम कुमार सिंह

Leave a Reply



comments

Loading.....
  • No Previous Comments found.