सोमवार के दिन कैसे प्रसन्न होगे भगवान शिव

हिंदू धर्म में सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित माना गया है.आइये जानते है कैसे करे भगवान शिव को खुश .....

                           

 

हिंदू धर्म में सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित माना गया है. बहुत से लोग सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा करते हैं. आज के दिन व्रत करने से भोलेनाथ जल्द प्रसन्न होते हैं और राह में आने वाली हर बाधाओं को दूर करते हैं.


सोमवार व्रत और पूजा का महत्व-

ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना और व्रत करता है उसे भगवान शिव का आशिर्वाद प्राप्त होता है. शिव अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. सोमवार का व्रत करने से जीवन से दुख, रोग, कलह, क्लेश और आर्थिक तंगी दूर होती है. 


 
                             

सोमवार व्रत करने की विधि


सोमवार के दिन भगवान शिव को समर्पित है इस दिन सुबह उठकर सबसे पहले पानी में काला तिल मिलाकर स्नान करें. इसके बाद पवित्र मन से भगवान शिव का स्मरण करे फिर शिवलिंग की सफेद फूल, सफेद चंदन, पंचामृत, चावल, सुपारी, बेल पत्र, आदि से अर्पित करें. पूजा के दौरान “ॐ सों सोमाय नम:” का मंत्र लगातार जपते रहें. शिव के मंत्र का जप हमेशा रुद्राक्ष की माला से करें.

रुद्राष्टक का करें पाठ

नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्‌ ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्‌ ॥

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्‌ ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्‌ ॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्‌ ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्‌ ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्‌ ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम्‌ ॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्‌ ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम्‌ सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्‌ ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥

रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।

॥ इति श्रीगोस्वामीतुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

 

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