कौन हैं शिव जिन्हें देव, दानव दोनों पूजते हैं ?

भारत एक प्राचीन देश हैं. जब दुनियां में कही कोई और मजहब या पंथ नहीं जन्मा था तब से भारत में सनातन धर्म अपने विचार और आध्यात्म की दर्शन से विश्व को प्रकाशित करता आ रहा हैं. विश्व का सबसे पहला आध्यात्म गुरु भगवान शंकर को कहा जाता हैं.
भारत एक प्राचीन देश हैं. जब दुनियां में कही कोई और मजहब या पंथ नहीं जन्मा था तब से भारत में सनातन धर्म अपने विचार और आध्यात्म की दर्शन से विश्व को प्रकाशित करता आ रहा हैं. विश्व का सबसे पहला आध्यात्म गुरु भगवान शंकर को कहा जाता हैं.
सनातन धर्म की बात करें तो ये केवल भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व का सबसे पुराना धर्म माना जाता हैं और सबसे पुराने देव { भगवान } महादेव को कहा जाता हैं. भगवान भोलेनाथ  को बहुत ही कृपालु कहा जाता हैं और ऐसा भी कहा जाता हैं की अगर आप उनसे कुछ मांगते हैं तो वो आपकों ज़रूर देते है. इसीलिए उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता हैं. आपको बता दे की महादेव को आध्यात्म का पहला गुरु भी कहा जाता हैं. पुरानी मान्यताओं के अनुसार महादेव और अजन्मा भी कहा जाता हैं, ऐसे मान्यताएं हैं की महादेव एक उर्जा हैं जिसका न कोई आदि हैं और न उनका कोई अंत हैं. ध्यान का अंतिम क्षण जब मनुष्य को परम सुख का आनंद मिलता हैं उसी आनंद के परम सुख को ही शिव कहा जाता हैं. जब आप चैतन्यमात्मा हो जाते हैं तब आप शिव के समीप हो जाते हैं. भगवान शंकर के बारें में कहा जाता हैं की वो सैकड़ों वर्षों तक ध्यान करते रहते हैं.
सनातन धर्म की बात करें तो ये केवल भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व का सबसे पुराना धर्म माना जाता हैं और सबसे पुराने देव { भगवान } महादेव को कहा जाता हैं. भगवान भोलेनाथ को बहुत ही कृपालु कहा जाता हैं और ऐसा भी कहा जाता हैं की अगर आप उनसे कुछ मांगते हैं तो वो आपकों ज़रूर देते है. इसीलिए उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता हैं. आपको बता दे की महादेव को आध्यात्म का पहला गुरु भी कहा जाता हैं. पुरानी मान्यताओं के अनुसार महादेव और अजन्मा भी कहा जाता हैं, ऐसे मान्यताएं हैं की महादेव एक उर्जा हैं जिसका न कोई आदि हैं और न उनका कोई अंत हैं. ध्यान का अंतिम क्षण जब मनुष्य को परम सुख का आनंद मिलता हैं उसी आनंद के परम सुख को ही शिव कहा जाता हैं. जब आप चैतन्यमात्मा हो जाते हैं तब आप शिव के समीप हो जाते हैं. भगवान शंकर के बारें में कहा जाता हैं की वो सैकड़ों वर्षों तक ध्यान करते रहते हैं.
चैतन्यमात्मा ही ब्रम्ह हैं यानि शिव ही परमात्मा हैं, शिव ही परम सुख और पवित्र हैं. जो चैतन्य हैं वही आदि, अनादि, मध्य और अनंत हैं. चैतन्य हम सभी हैं, लेकिन आत्मा का हमें कोई पता नहीं चलता. अगर चैतन्य ही आया है तो हम सभी को पता चल जाना चाहिए. हम सब चैतन्य है. लेकिन, चैतन्य आत्मा है, इसका क्या अर्थ होगा?
पहला अर्थ : इस जगत में, सिर्फ चैतन्य ही आपका अपना है. आत्मा का अर्थ होता है. अपना; शेष सब पराया है. शेष कितना ही अपना लगे, पराया है. मित्र हों, प्रियजन हों, परिवार के लोग हों, धन हो, यश, पद—प्रतिष्ठा हो, बड़ा साम्राज्य हो वह सब जिसे आप कहते हो मेरा हैं समझों वहां धोखा है. क्योंकि वह सभी मृत्यु तुमसे छीन लेगी. मृत्यु कसौटी है— कौन अपना है, कौन पराया है. मृत्यु जिससे तुम्हें अलग कर दे, वह पराया था. और मृत्यु तुम्हें जिससे अलग न कर पाये, वह अपना हैं और वही व्यक्ति चैतन्यमात्मा हैं.
चैतन्यमात्मा ही ब्रम्ह हैं यानि शिव ही परमात्मा हैं, शिव ही परम सुख और पवित्र हैं. जो चैतन्य हैं वही आदि, अनादि, मध्य और अनंत हैं. चैतन्य हम सभी हैं, लेकिन आत्मा का हमें कोई पता नहीं चलता. अगर चैतन्य ही आया है तो हम सभी को पता चल जाना चाहिए. हम सब चैतन्य है. लेकिन, चैतन्य आत्मा है, इसका क्या अर्थ होगा? पहला अर्थ : इस जगत में, सिर्फ चैतन्य ही आपका अपना है. आत्मा का अर्थ होता है. अपना; शेष सब पराया है. शेष कितना ही अपना लगे, पराया है. मित्र हों, प्रियजन हों, परिवार के लोग हों, धन हो, यश, पद—प्रतिष्ठा हो, बड़ा साम्राज्य हो वह सब जिसे आप कहते हो मेरा हैं समझों वहां धोखा है. क्योंकि वह सभी मृत्यु तुमसे छीन लेगी. मृत्यु कसौटी है— कौन अपना है, कौन पराया है. मृत्यु जिससे तुम्हें अलग कर दे, वह पराया था. और मृत्यु तुम्हें जिससे अलग न कर पाये, वह अपना हैं और वही व्यक्ति चैतन्यमात्मा हैं.
सम्पूर्ण ब्रम्हांड ॐ हैं यानि हर तरफ शिव ही शिव हैं. यह परमात्मा हैं, यह सर्वशक्तिमान हैं, यह सर्वविद्यमान हैं| ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ शिव न हों| यह वह आकाश हैं; वह चेतना है, जहाँ सारा ज्ञान विद्यमान है| वे अजन्मे हैं और निर्गुण हैं| यह समाधि की वह अवस्था है जहाँ कुछ भी नहीं है, केवल भीतरी चेतना का खाली आकाश है| वही शिव हैं!
सम्पूर्ण ब्रम्हांड ॐ हैं यानि हर तरफ शिव ही शिव हैं. यह परमात्मा हैं, यह सर्वशक्तिमान हैं, यह सर्वविद्यमान हैं| ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ शिव न हों| यह वह आकाश हैं; वह चेतना है, जहाँ सारा ज्ञान विद्यमान है| वे अजन्मे हैं और निर्गुण हैं| यह समाधि की वह अवस्था है जहाँ कुछ भी नहीं है, केवल भीतरी चेतना का खाली आकाश है| वही शिव हैं!
देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी. ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे. दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए, इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव. वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं.
देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी. ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे. दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए, इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव. वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं.

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