आखिर क्यों कहा जाता हैं जेम्स टॉड को राजस्थान का पितामह

राजपूताना, मारवाड़, मेवाड़ जिसे हम आज राजस्थान के नाम से जानते हैं इसका इतिहास हज़ारों सालों से ज्यादा पुराना बताया जाता हैं. लेकिन आज हम बात करेंगे 18वीं सदी की जहां अंग्रेजों और मराठाओं के बिच संगर्ष चल रहा था. वही दूसरी तरफ़ अंग्रेज चाहते थे की राजस्थान के राजा मराठोओं का समर्थन न करें. इस बात को सुनिश्चित करने के लिए अंग्रेजों ने अपने एक कर्नल को भेजा जिसका नाम था जेम्स टॉड. आज हम बात करेंगे कर्नल जेम्स टॉड की जो राजस्थान में अंग्रेजों का पोलिटिकल-एजेंट बन कर आये थे. इनका काम था की अंग्रेजों और राजाओं के बिच में मैत्रीपूर्ण वातावरण स्थापित करना और इन दोनों के बिच एक कम्युनिकेशन स्थापित करना जिसे जेम्स ने बेहद शानदार तरीक़े से निभाया. राजस्थान में रहते-रहते जेम्स को राजस्थान के इतिहास में रूचि आने लगी और उसने राजस्थान पर किताब लिखने की सोची..तो आइये आज हम आपकों बतायेंगे कैसे कर्नल ने राजस्थान का इतिहास लिखा और कैसे उसने राजस्थान में सामाजिक और विकास कार्य करवा कर राजस्थान कि दिशा और दशा बदल दी...
राजपूताना, मारवाड़, मेवाड़ जिसे हम आज राजस्थान के नाम से जानते हैं इसका इतिहास हज़ारों सालों से ज्यादा पुराना बताया जाता हैं. लेकिन आज हम बात करेंगे 18वीं सदी की जहां अंग्रेजों और मराठाओं के बिच संगर्ष चल रहा था. वही दूसरी तरफ़ अंग्रेज चाहते थे की राजस्थान के राजा मराठोओं का समर्थन न करें. इस बात को सुनिश्चित करने के लिए अंग्रेजों ने अपने एक कर्नल को भेजा जिसका नाम था जेम्स टॉड. आज हम बात करेंगे कर्नल जेम्स टॉड की जो राजस्थान में अंग्रेजों का पोलिटिकल-एजेंट बन कर आये थे. इनका काम था की अंग्रेजों और राजाओं के बिच में मैत्रीपूर्ण वातावरण स्थापित करना और इन दोनों के बिच एक कम्युनिकेशन स्थापित करना जिसे जेम्स ने बेहद शानदार तरीक़े से निभाया. राजस्थान में रहते-रहते जेम्स को राजस्थान के इतिहास में रूचि आने लगी और उसने राजस्थान पर किताब लिखने की सोची..तो आइये आज हम आपकों बतायेंगे कैसे कर्नल ने राजस्थान का इतिहास लिखा और कैसे उसने राजस्थान में सामाजिक और विकास कार्य करवा कर राजस्थान कि दिशा और दशा बदल दी...
जेम्स टॉड क्यों आया राजस्थान ,,,,,,,,,,,जेम्स का मुख्य कारण राजस्थान आने का यह था की वह राजस्थान और बंगाल में बैठे अंग्रेजी अफ़सरों के बीच एक राजनीतिक वातावरण स्थापित कर सके. इसी संबंध को बनाने के लिए उन्होंने राजस्थान में उदयपुर के राजा के पास कर्नल जेम्स को भेजा. ताकि और अंग्रेजों और राजाओं के बीच एक कम्युनिकेशन बना सकते. जेम्स इस कार्य में सफल भी रहे आपकों बता दे कि अंग्रेजी सेना में जेम्स कर्नल की पद पर थे और इन्ही ने राजाओं और अंग्रेजों के बिच में संधि कराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इंग्लेंड निवासी जेम्स टॉड वर्ष 1817-18 में पश्चिमी राजपूत राज्यों के पाॅलिटिकल एजेंट बन कर उदयपुर आए थे.
जेम्स टॉड क्यों आया राजस्थान ,,,,,,,,,,,जेम्स का मुख्य कारण राजस्थान आने का यह था की वह राजस्थान और बंगाल में बैठे अंग्रेजी अफ़सरों के बीच एक राजनीतिक वातावरण स्थापित कर सके. इसी संबंध को बनाने के लिए उन्होंने राजस्थान में उदयपुर के राजा के पास कर्नल जेम्स को भेजा. ताकि और अंग्रेजों और राजाओं के बीच एक कम्युनिकेशन बना सकते. जेम्स इस कार्य में सफल भी रहे आपकों बता दे कि अंग्रेजी सेना में जेम्स कर्नल की पद पर थे और इन्ही ने राजाओं और अंग्रेजों के बिच में संधि कराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इंग्लेंड निवासी जेम्स टॉड वर्ष 1817-18 में पश्चिमी राजपूत राज्यों के पाॅलिटिकल एजेंट बन कर उदयपुर आए थे.
जेम्स टॉड ने राजस्थान की ख़ोज-पड़ताल शुरू कर दी........................आपको बता दे कि कर्नल जेम्स सन 1806 ईस्वीं में अपनी फौज की नौकरी के दौरान पहली बार वह उदयपुर पहुँचे. उन्होंने वहां के स्थानी लोगों से राजस्थान के बारें में पूछा कि राजस्थान की कोई कहानी हैं तो उन्हें बताये. वहां के स्थानीय लोग ने महाराणा प्रताप, राणा कुम्भा, सांगा , मान सिंह, जैसे महान राजाओं की कहानी सुनाई. फिर जेम्स ने पूछा ये लड़ाई क्यों होती थी..राजस्थान के स्थानी लोगों ने बताया मंदिर बचाने के लिए गाय की रक्षा के लिए और अपनी राज्य की रक्षा के लिए युद्ध हुआ करते थे. जेम्स बड़ा अचरज में पड़ गया की राजस्थान के लोग गाय और मंदिर के लिए युद्ध कर लेते हैं. जब उसे दोनों तरफ़ के सेना के अनुपात का पता चला तो वो और चौंक गया. उसने ऐसा कभी सुना नहीं था. उन्होंने कभी ऐसा नहीं सुना था की दस हजार लोगों से केवल दो हजार लड़ जाते थे ताकि उन्हें आज़ादी और आपना धर्म प्यारा था. कर्नल को धीरे-धीरे राजस्थान के इतिहास में रूचि आने लगी और उसके राजस्थान पर अपना खोज जारी किया. जब उन्होंने खोज शुरू की तो उसे साका और जौहर जैसी इतिहास मिला. कर्नल ने राजस्थान पर काफ़ी हद तक ख़ोज की उसने मेवाड़ के इतिहास के बारें में लिखा, उन्होंने राणा कुंभा, सांगा और मीरा बाई के बारें में लिखा था.
जेम्स टॉड ने राजस्थान की ख़ोज-पड़ताल शुरू कर दी........................आपको बता दे कि कर्नल जेम्स सन 1806 ईस्वीं में अपनी फौज की नौकरी के दौरान पहली बार वह उदयपुर पहुँचे. उन्होंने वहां के स्थानी लोगों से राजस्थान के बारें में पूछा कि राजस्थान की कोई कहानी हैं तो उन्हें बताये. वहां के स्थानीय लोग ने महाराणा प्रताप, राणा कुम्भा, सांगा , मान सिंह, जैसे महान राजाओं की कहानी सुनाई. फिर जेम्स ने पूछा ये लड़ाई क्यों होती थी..राजस्थान के स्थानी लोगों ने बताया मंदिर बचाने के लिए गाय की रक्षा के लिए और अपनी राज्य की रक्षा के लिए युद्ध हुआ करते थे. जेम्स बड़ा अचरज में पड़ गया की राजस्थान के लोग गाय और मंदिर के लिए युद्ध कर लेते हैं. जब उसे दोनों तरफ़ के सेना के अनुपात का पता चला तो वो और चौंक गया. उसने ऐसा कभी सुना नहीं था. उन्होंने कभी ऐसा नहीं सुना था की दस हजार लोगों से केवल दो हजार लड़ जाते थे ताकि उन्हें आज़ादी और आपना धर्म प्यारा था. कर्नल को धीरे-धीरे राजस्थान के इतिहास में रूचि आने लगी और उसके राजस्थान पर अपना खोज जारी किया. जब उन्होंने खोज शुरू की तो उसे साका और जौहर जैसी इतिहास मिला. कर्नल ने राजस्थान पर काफ़ी हद तक ख़ोज की उसने मेवाड़ के इतिहास के बारें में लिखा, उन्होंने राणा कुंभा, सांगा और मीरा बाई के बारें में लिखा था.
कालजयी रचना 'एनल्स एंड एंटीक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान,,,,,,,,,,,,,,जेम्स ने राजपूताना और आसपास के प्रदेशों के टोपोग्राफिकल नक़्शे तैयार करते हुए उन्होंने स्थानीय इतिहास के कई मौखिक और अनगिनत लिखित अभिलेखों से साक्षात्कार किया और तय किया कि वह 'राजपूताना' पर नया ग्रन्थ लिख कर इस के इतिहास का पुनर्लेखन करेंगे. सन 1819 में अक्टूबर में जोधपुर पहुँचे कर्नल टॉड ने वहाँ रह कर पुरातत्व पर गहन शोध-कार्य किया और जाते समय टॉड ने मार्ग में कई मुद्राओं और अभिलेखों का संग्रहण किया जो इतिहास लेखन के लिये अत्यंत उपयोगी स्रोत साबित हुए. बाद में अजमेर, पुष्कर, जयपुर, सीकर, झुंझनू, पाली, मेड़ता आदि स्थानों पर रह कर अपने ग्रन्थ के लिए आधार-सामग्री जुटाई. कड़ी और अनथक मेहनत के बाद 14 जनवरी 1823 को मुम्बई से इनका ग्रन्थ ' ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया' प्रकाशित हुआ. सन 1829 में इनकी कालजयी रचना 'एनल्स एंड एंटीक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान ' का पहला खण्ड और सन 1934 में दूसरा खंड प्रकाशित हुआ.
कालजयी रचना 'एनल्स एंड एंटीक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान,,,,,,,,,,,,,,जेम्स ने राजपूताना और आसपास के प्रदेशों के टोपोग्राफिकल नक़्शे तैयार करते हुए उन्होंने स्थानीय इतिहास के कई मौखिक और अनगिनत लिखित अभिलेखों से साक्षात्कार किया और तय किया कि वह 'राजपूताना' पर नया ग्रन्थ लिख कर इस के इतिहास का पुनर्लेखन करेंगे. सन 1819 में अक्टूबर में जोधपुर पहुँचे कर्नल टॉड ने वहाँ रह कर पुरातत्व पर गहन शोध-कार्य किया और जाते समय टॉड ने मार्ग में कई मुद्राओं और अभिलेखों का संग्रहण किया जो इतिहास लेखन के लिये अत्यंत उपयोगी स्रोत साबित हुए. बाद में अजमेर, पुष्कर, जयपुर, सीकर, झुंझनू, पाली, मेड़ता आदि स्थानों पर रह कर अपने ग्रन्थ के लिए आधार-सामग्री जुटाई. कड़ी और अनथक मेहनत के बाद 14 जनवरी 1823 को मुम्बई से इनका ग्रन्थ ' ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया' प्रकाशित हुआ. सन 1829 में इनकी कालजयी रचना 'एनल्स एंड एंटीक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान ' का पहला खण्ड और सन 1934 में दूसरा खंड प्रकाशित हुआ.
हल्दीघाटी युद्ध को जेम्स ने क्या नाम दिया...........हल्दीघाटी युद्ध की तुलना इतिहासकार कर्नल टॉड ने थर्मोपॉली युद्ध से की थी. हल्दीघाटी के युद्ध को थर्मोपॉली ऑफ मेवाड की संज्ञा दी थी. यह संज्ञा महाराणा प्रताप के पराक्रम और शौर्य के बलबूते पर मिली थी. कर्नल टॉड ने हल्दीघाटी युद्ध को महत्वपूर्ण बताते हुए इसे थर्मोपॉली और दिवेर युद्ध को मेवाड़ का मैराथन लिखा. थर्मोपॉली उत्तरी और पश्चिमी यूनान के बीच एक संकरी घाटी थी. जहां भयंकर युद्ध हुआ था। ऐसा ही दर्रा हल्दीघाटी में है. जहां प्रताप व अकबर की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ था. प्रताप की सेना की तुलना में अकबर की सेना बहुत बड़ी थी। फिर भी अकबर यह युद्ध नहीं जीत पाया. राजस्थान में कर्नल जेम्स इतना मजबूत हो गया था उसकी पुरें राजस्थान में बहुत नाम हो गया था अंग्रेजों के बड़े अफसरों के भीतर कर्नल का इतना डर हो गया था कि जेम्स राजस्थान के राजाओं के साथ मिलकर ईस्ट इंडिया कंपनी कर हमला कर देगा इसीलिए उसे भारत से वापस इंग्लैण्ड भेज दिया गया था. जेम्स ने 'एनल्स एंड एंटीक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान पुस्तक लिखी और सन 1934 में दूसरा खंड प्रकाशित हुआ.
हल्दीघाटी युद्ध को जेम्स ने क्या नाम दिया...........हल्दीघाटी युद्ध की तुलना इतिहासकार कर्नल टॉड ने थर्मोपॉली युद्ध से की थी. हल्दीघाटी के युद्ध को थर्मोपॉली ऑफ मेवाड की संज्ञा दी थी. यह संज्ञा महाराणा प्रताप के पराक्रम और शौर्य के बलबूते पर मिली थी. कर्नल टॉड ने हल्दीघाटी युद्ध को महत्वपूर्ण बताते हुए इसे थर्मोपॉली और दिवेर युद्ध को मेवाड़ का मैराथन लिखा. थर्मोपॉली उत्तरी और पश्चिमी यूनान के बीच एक संकरी घाटी थी. जहां भयंकर युद्ध हुआ था। ऐसा ही दर्रा हल्दीघाटी में है. जहां प्रताप व अकबर की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ था. प्रताप की सेना की तुलना में अकबर की सेना बहुत बड़ी थी। फिर भी अकबर यह युद्ध नहीं जीत पाया. राजस्थान में कर्नल जेम्स इतना मजबूत हो गया था उसकी पुरें राजस्थान में बहुत नाम हो गया था अंग्रेजों के बड़े अफसरों के भीतर कर्नल का इतना डर हो गया था कि जेम्स राजस्थान के राजाओं के साथ मिलकर ईस्ट इंडिया कंपनी कर हमला कर देगा इसीलिए उसे भारत से वापस इंग्लैण्ड भेज दिया गया था. जेम्स ने 'एनल्स एंड एंटीक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान पुस्तक लिखी और सन 1934 में दूसरा खंड प्रकाशित हुआ.
जेम्स ने राजस्थान में कराए सुधार कार्य............जेम्स के समय में राजस्थान की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दशा अत्यंत दयनीय थी. मराठों के उत्पात से यह प्रांत बहुत कुछ उजड़ चुका था. जहाँ कहीं मराठों का पड़ाव पड़ता, कोसों तक भूमि बर्बाद हो जाती. बड़े बड़े नगर प्राय: चौबीस घंटों में नष्ट हो जाते. जले हुए गाँव और नष्ट भ्रष्ट खेतियाँ मराठों के प्रयाण का मार्ग बतलातीं. इस स्थिति को सुधारने के लिए अंग्रेज़ी सरकार ने राजस्थान के राज्यों से संधियाँ करनी शुरू कीं; किंतु इससे भी अधिक बुद्धिमानी का कार्य टॉड को राजस्थान में सरकारी प्रतिनिधि नियुक्त करना था. मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह ने इसकी सलाह से अपने राज्य में अनेक सुधार किए. सन् 1819 में जोधपुर जाते समय टॉड ने कई अभिलेखों और मुद्राओं का संग्रह किया जो इतिहास के लिये अत्यंत उपयोगी हैं. जोधपुर के महाराज ने भी कर्नल टॉड को राजपूत इतिहास की अनेक पुस्तकें दीं. 1826 में टॉड ने विवाह किया और 1835 में इनकी मृत्यु हुई। टॉड का 'राजस्थान' उनके राजस्थान की संस्कृति और संस्कृति के अनुराग का सबसे अच्छा स्मारक है. 'राजस्थान के इतिहास का मार्ग सर्वप्रथम प्रशस्त बनाने का श्रेय टॉड को है.
जेम्स ने राजस्थान में कराए सुधार कार्य............जेम्स के समय में राजस्थान की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दशा अत्यंत दयनीय थी. मराठों के उत्पात से यह प्रांत बहुत कुछ उजड़ चुका था. जहाँ कहीं मराठों का पड़ाव पड़ता, कोसों तक भूमि बर्बाद हो जाती. बड़े बड़े नगर प्राय: चौबीस घंटों में नष्ट हो जाते. जले हुए गाँव और नष्ट भ्रष्ट खेतियाँ मराठों के प्रयाण का मार्ग बतलातीं. इस स्थिति को सुधारने के लिए अंग्रेज़ी सरकार ने राजस्थान के राज्यों से संधियाँ करनी शुरू कीं; किंतु इससे भी अधिक बुद्धिमानी का कार्य टॉड को राजस्थान में सरकारी प्रतिनिधि नियुक्त करना था. मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह ने इसकी सलाह से अपने राज्य में अनेक सुधार किए. सन् 1819 में जोधपुर जाते समय टॉड ने कई अभिलेखों और मुद्राओं का संग्रह किया जो इतिहास के लिये अत्यंत उपयोगी हैं. जोधपुर के महाराज ने भी कर्नल टॉड को राजपूत इतिहास की अनेक पुस्तकें दीं. 1826 में टॉड ने विवाह किया और 1835 में इनकी मृत्यु हुई। टॉड का 'राजस्थान' उनके राजस्थान की संस्कृति और संस्कृति के अनुराग का सबसे अच्छा स्मारक है. 'राजस्थान के इतिहास का मार्ग सर्वप्रथम प्रशस्त बनाने का श्रेय टॉड को है.

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