गीता की पांच ऐसी बातें जो आपको सफलता की राह दिखायेगी - पढ़िए पूरा आर्टिकल

हिंदू धर्म या कहे तो विश्व का सबसे पुराना धर्म सनातन धर्म में कई ग्रंथों, पुराणों, महाकाव्यों की रचना की गई हैं. लेकिन इमने में सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता को माना जाता हैं. भगवान श्रीकृष्ण ने महारथी अर्जुन के माध्यम से पूरे संसार को गीता का महान उपदेश दिया था. श्रीकृष्ण के द्वारा कही गई बातों में से पांच सबसे महत्वपूर्ण बातें क्या हैं. जिसका अनुसरण करके कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में आसानी से सफ़लता प्राप्त कर सकता हैं. आइये जानते हैं.
हिंदू धर्म या कहे तो विश्व का सबसे पुराना धर्म सनातन धर्म में कई ग्रंथों, पुराणों, महाकाव्यों की रचना की गई हैं. लेकिन इमने में सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता को माना जाता हैं. भगवान श्रीकृष्ण ने महारथी अर्जुन के माध्यम से पूरे संसार को गीता का महान उपदेश दिया था. श्रीकृष्ण के द्वारा कही गई बातों में से पांच सबसे महत्वपूर्ण बातें क्या हैं. जिसका अनुसरण करके कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में आसानी से सफ़लता प्राप्त कर सकता हैं. आइये जानते हैं.
सनातन, हिंदू धर्म को आदि धर्म भी कहा जाता हैं इसका मतलब यह हैं की यह सृष्टि के निर्माण से विद्यमान है. आपकों बता दे कि अर्जुन को उपदेश देते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं कि सबसे पहले मैंने गीता का यह ज्ञान भगवान सूर्य को दिया था. सूर्य के पश्चात गुरु परंपरा द्वारा आगे बढ़ा. किन्तु अब यह लुप्तप्राय हो गया है. अब वही ज्ञान मैं तुम्हे बताने जा रहा हूँ. अर्जुन कहते हैं कि आपका तो जन्म हाल में ही हुआ है तो आपने यह सूर्य से कैसे कहा? तब श्री भगवान ने कहा है की तुम्हारा और मेरा अनेक जन्म हुए लेकिन तुम्हे याद नहीं, पर मुझे याद है. आपकों बता दे कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश तब दिया था. जब अर्जुन के क़दम धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में युद्ध करने से डगमगाने लगे थे. तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का सार यानि जीवन जीने का सही तरीका बताया था. जिसे सुनकर अर्जुन के मन की सारी शंका दूर हुई और वे युद्ध के लिए तथा अपने लक्ष्य की तरफ़ अग्रसर हुए. ऐसा कहा जाता हैं कि श्रीमद्भागवत गीता में जीवन की हर परेशानी का हल मिलता हैं.
सनातन, हिंदू धर्म को आदि धर्म भी कहा जाता हैं इसका मतलब यह हैं की यह सृष्टि के निर्माण से विद्यमान है. आपकों बता दे कि अर्जुन को उपदेश देते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं कि सबसे पहले मैंने गीता का यह ज्ञान भगवान सूर्य को दिया था. सूर्य के पश्चात गुरु परंपरा द्वारा आगे बढ़ा. किन्तु अब यह लुप्तप्राय हो गया है. अब वही ज्ञान मैं तुम्हे बताने जा रहा हूँ. अर्जुन कहते हैं कि आपका तो जन्म हाल में ही हुआ है तो आपने यह सूर्य से कैसे कहा? तब श्री भगवान ने कहा है की तुम्हारा और मेरा अनेक जन्म हुए लेकिन तुम्हे याद नहीं, पर मुझे याद है. आपकों बता दे कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश तब दिया था. जब अर्जुन के क़दम धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में युद्ध करने से डगमगाने लगे थे. तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का सार यानि जीवन जीने का सही तरीका बताया था. जिसे सुनकर अर्जुन के मन की सारी शंका दूर हुई और वे युद्ध के लिए तथा अपने लक्ष्य की तरफ़ अग्रसर हुए. ऐसा कहा जाता हैं कि श्रीमद्भागवत गीता में जीवन की हर परेशानी का हल मिलता हैं.
आपकों बता दे कि गीता में भगवान द्वारा कही गई बातें आज के दौर में भी उतनी ही कारगर हैं. आज भी उनकी कही गई बातें बहुत से लोगों को सफ़लता की उचाई पर ले गई हैं. गीता का उपदेश हर व्यक्ति को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं. ऐसे में आपकों किसी भी परेशानी से पार पाना हो तो यह ग्रंथ आपके लिए काफ़ी उपयोगी रहेगी, साथ ही साथ यह आपकों सफ़लता की तरफ़ भी ले जाएगी. लेकिन इनमे से कुछ ज़रूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए. ऐसा कहा जाता हैं कि जो भी व्यक्ति अपने जीवन में इन पांच बातों का ध्यान रख लेता हैं, उसे हर कार्य में सफ़लता मिलती हैं. तो आइये जानते हैं गीता के उन महान अनमोल वचन के बारें में जो आपकों, जीवन की नई राह दिखायेगी...
आपकों बता दे कि गीता में भगवान द्वारा कही गई बातें आज के दौर में भी उतनी ही कारगर हैं. आज भी उनकी कही गई बातें बहुत से लोगों को सफ़लता की उचाई पर ले गई हैं. गीता का उपदेश हर व्यक्ति को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं. ऐसे में आपकों किसी भी परेशानी से पार पाना हो तो यह ग्रंथ आपके लिए काफ़ी उपयोगी रहेगी, साथ ही साथ यह आपकों सफ़लता की तरफ़ भी ले जाएगी. लेकिन इनमे से कुछ ज़रूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए. ऐसा कहा जाता हैं कि जो भी व्यक्ति अपने जीवन में इन पांच बातों का ध्यान रख लेता हैं, उसे हर कार्य में सफ़लता मिलती हैं. तो आइये जानते हैं गीता के उन महान अनमोल वचन के बारें में जो आपकों, जीवन की नई राह दिखायेगी...
कर्म करना ही असली धर्म हैं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,हिंदू धार्मिक ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने कहा कि व्यक्ति को अपने कर्म पर ध्यान देना चाहियें न की उसके फल की कामना रखनी चाहियें. मनुष्य को इसलिए अपना कर्म करना चाहिए क्योंकी कर्म करना उसका धर्म हैं. अगर कोई भी मनुष्य आपना कर्म केवल इसलिए कर रहा हैं ताकि उसे मन के अनुरूप फल की प्राप्ति होगी तो वह यही चूक रहा हैं. मनुष्य का कर्म केवल उसके हाथों में उसका फल नहीं. मनुष्य को लाभ-हानि, जय-पराजय से ऊपर उठकर इसलिए अपना कर्म करना चाहियें क्योंकी कर्म करना ही उसका एकमात्र धर्म हैं. यह श्रीमद्भवद्गीता के सर्वाधिक महत्वपूर्ण श्लोकों में से एक है, जो कर्मयोग दर्शन का मूल आधार है.
कर्म करना ही असली धर्म हैं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,हिंदू धार्मिक ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने कहा कि व्यक्ति को अपने कर्म पर ध्यान देना चाहियें न की उसके फल की कामना रखनी चाहियें. मनुष्य को इसलिए अपना कर्म करना चाहिए क्योंकी कर्म करना उसका धर्म हैं. अगर कोई भी मनुष्य आपना कर्म केवल इसलिए कर रहा हैं ताकि उसे मन के अनुरूप फल की प्राप्ति होगी तो वह यही चूक रहा हैं. मनुष्य का कर्म केवल उसके हाथों में उसका फल नहीं. मनुष्य को लाभ-हानि, जय-पराजय से ऊपर उठकर इसलिए अपना कर्म करना चाहियें क्योंकी कर्म करना ही उसका एकमात्र धर्म हैं. यह श्रीमद्भवद्गीता के सर्वाधिक महत्वपूर्ण श्लोकों में से एक है, जो कर्मयोग दर्शन का मूल आधार है.
स्वयं का करें आकलन,,,,,,,भगवान श्री कृष्ण ने गीता में बताय़ा है कि व्यक्ति को खुद से बेहतर और कोई नहीं जान सकता है. इसलिए खुद का आकलन करना बेहद जरूरी होता है. गीता के अनुसार, जो व्यक्ति अपनी खामियों और गुणों को जान लेता है. वह एक बेहतर व्यक्तित्व का निर्माण करता है और हर काम में सफलता पाता है.
स्वयं का करें आकलन,,,,,,,भगवान श्री कृष्ण ने गीता में बताय़ा है कि व्यक्ति को खुद से बेहतर और कोई नहीं जान सकता है. इसलिए खुद का आकलन करना बेहद जरूरी होता है. गीता के अनुसार, जो व्यक्ति अपनी खामियों और गुणों को जान लेता है. वह एक बेहतर व्यक्तित्व का निर्माण करता है और हर काम में सफलता पाता है.
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति { क्रोध पर काबू रखें },,,,,,,,,,,,,,,,,,,,श्री कृष्णा गीता में कहते हैं कि लोभ से पाप का जन्म होता हैं और पाप से क्रोध का जन्म होता हैं और क्रोध से बुद्धि का नाश होता और बुद्धि का नाश होने से मनुष्य का सर्वनाश हो जाता हैं. क्रोध में कोई भी व्यक्ति खुद पर नियंत्रण खो बैठता है और आवेश में आकर गलत कार्य भी कर देता है. कभी-कभी गुस्से में व्यक्ति खुद का अहित कर बैठता है. इसलिए क्रोध को खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए. गीता में श्रीकृष्ण ने बताया है कि यदि गुस्सा आए तो स्वयं को शांत रखने का प्रयास करें.
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति { क्रोध पर काबू रखें },,,,,,,,,,,,,,,,,,,,श्री कृष्णा गीता में कहते हैं कि लोभ से पाप का जन्म होता हैं और पाप से क्रोध का जन्म होता हैं और क्रोध से बुद्धि का नाश होता और बुद्धि का नाश होने से मनुष्य का सर्वनाश हो जाता हैं. क्रोध में कोई भी व्यक्ति खुद पर नियंत्रण खो बैठता है और आवेश में आकर गलत कार्य भी कर देता है. कभी-कभी गुस्से में व्यक्ति खुद का अहित कर बैठता है. इसलिए क्रोध को खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए. गीता में श्रीकृष्ण ने बताया है कि यदि गुस्सा आए तो स्वयं को शांत रखने का प्रयास करें.
आपना आचरण सही रखे,,,,,,,,,,,,,,,भगवान ने गीता में सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही हैं. जो लोग समाज के महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जैसे शिक्षक, राजा, नेता, जो लोग समाज में उचे और प्रतिष्ठित लोग हैं उन्हें अपना आचरण सही रखना बेहद ज़रूरी हैं. श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं. वह (श्रेष्ठ पुरुष) जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करता है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं.
आपना आचरण सही रखे,,,,,,,,,,,,,,,भगवान ने गीता में सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही हैं. जो लोग समाज के महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जैसे शिक्षक, राजा, नेता, जो लोग समाज में उचे और प्रतिष्ठित लोग हैं उन्हें अपना आचरण सही रखना बेहद ज़रूरी हैं. श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं. वह (श्रेष्ठ पुरुष) जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करता है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं.
युद्धाय कृतनिश्चय,,,,,,,,,,,युद्धाय कृतनिश्चय यह बात श्रीकृष्ण तब अर्जुन से कहते हैं. जब वो सोच रहे होते हैं की वो युद्ध करें की ना करें. भगवान अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं कि हे अर्जुन ! विवेकहीन और श्रद्धारहित संशयात्मा से मनुष्य का पतन हो जाता है. ऐसे मनुष्यों के लिए न तो इस लोक में सुख हैं और न ही परलोक में, अज्ञानी तथा श्रद्धारहित और संशययुक्त पुरुष नष्ट हो जाता है. इसलिए शंका में न पड़ो पर्थ युद्ध का निश्चय करों और युद्ध करों. क्योकि यही तुम्हारा क्षत्रिय धर्म भी हैं और मानव कर्म भी......

Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई गई बातें और सुझाव पर अमल करने से पहले धर्म संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.
युद्धाय कृतनिश्चय,,,,,,,,,,,युद्धाय कृतनिश्चय यह बात श्रीकृष्ण तब अर्जुन से कहते हैं. जब वो सोच रहे होते हैं की वो युद्ध करें की ना करें. भगवान अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं कि हे अर्जुन ! विवेकहीन और श्रद्धारहित संशयात्मा से मनुष्य का पतन हो जाता है. ऐसे मनुष्यों के लिए न तो इस लोक में सुख हैं और न ही परलोक में, अज्ञानी तथा श्रद्धारहित और संशययुक्त पुरुष नष्ट हो जाता है. इसलिए शंका में न पड़ो पर्थ युद्ध का निश्चय करों और युद्ध करों. क्योकि यही तुम्हारा क्षत्रिय धर्म भी हैं और मानव कर्म भी...... Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई गई बातें और सुझाव पर अमल करने से पहले धर्म संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.

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