'निकल जा मेरे घर से!' बचपन में कांधे पर बैठाकर घूमाने वाले मां-बाप लगने लगे बोझ

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई...मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से में मां आई...मुनव्वर राना का ये शेर आपने आप में ये बताने के लिए काफी है कि आज देश में मां-बाप की हालत क्या है...यही शेर आज के बच्चों में फर्क को भी साफ साफ दिखाता है...पहले के समय में बच्चे थे जिन्हें उनके माता पिता किसी भी चीज से ज्यादा बड़े होते थे...जिन्हें संपत्ति नहीं, सिर्फ मां बाप चाहिए रहते थे...लेकिन एक आज के बच्चें हैं...जिन्हें मां-बाप नहीं सिर्फ उनकी संपत्ति चाहिए होती है...और संपत्ति मिलने के बाद बच्चें अपने मां-बाप को बोझ समझने लगते हैं...जो बच्चे कभी मां-बाप की आंखों का तारा हुआ करते थे...वो मां-बाप अब उन्हीं बच्चों की आंखों में चुभने लगे हैं...अपने मां-बाप से परेशान होकर वो उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं...

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