जाटव समाज में मायावती ने नहीं खोई अपनी पकड़, कांग्रेस-सपा का बिगाड़ा खेल

लोकसभा चुनाव जारी है...पांच चरणों का मतदान भी पूरा हो चुका है...अब बाकी बचे दो चरणों को लेकर कवायद अभी से शुरू हो गई है...जहां एक तरफ बीजेपी, कांग्रेस और सपा समेत सभी सियासी दल जीत का स्वाद चखने के लिए हर पुरजोर कोशिश कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ इस बार के चुनाव में बसपा सुस्त नजर आ रही है, मानों उसमें जीत पाने को लेकर कोई चाह और उत्साह ही नहीं है...ऐसे में पार्टी के वोट शेयर और सीटों में गिरावट के साथ, बसपा और मायावती को लोकसभा चुनावों में हार के रूप में देखा जा सकता है...हालाँकि, 25 मई को छठे चरण में होने वाले मतदान में पूर्वी उत्तर प्रदेश के इन हिस्सों में अपने जाटव समुदाय के बीच, मायावती ने अपनी पकड़ नहीं खोई है...यही कारण है कि उनके समर्थक आज भी कह रहे हैं कि हमारे समाज का सारा वोट हाथी को ही जाएगा, चाहे वो लड़ाई में हो या नहीं...हालांकि, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने मायावती के वोट बैंक में सेंध लगाने की पूरी तैयारी कर ली है...देखिए हमारी ये खास रिपोर्ट...

इस बार के लोकसभा चुनाव में बसपा खोई-खोई सी नजर आ रही है लेकिन उसके बाद भी बसपा के कोर वोटर हाथी के साथ हैं और उसी को वोट देने की बात कह रहे हैं...वोटरों का कहना है कि हम तो भाई हाथी को ही आगे लेकर जाएंगे चाहे वो मैदान में खड़ा हो या नहीं...तो वहीं दूसरी तरफ सपा और कांग्रेस हाथी को रोकने के लिए पुरजोर कोशिश में लगे हुए हैं...जहां पहले कांग्रेस सपा ने पहले मायावती को अपने इंडी गठबंधन में शामिल करने के लिए प्रस्ताव रखा लेकिन मायावती ने उसे ठुकरा दिया...ऐसे में मायावती के इंडिया ब्लॉक में शामिल होने से इनकार करने पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने बसपा पर भाजपा की बी-टीम होने का भी आरोप लगाया...लखनऊ में एक बसपा नेता का कहना है कि भाजपा ने भले ही दलितों में से धोबी, खटिक और सोनकर जैसी कुछ उपजातियों को अपने साथ ले लिया है, लेकिन बसपा अपने जाटव वोट शेयर पर कायम है...हो सकता है कि हम इस बार लड़ाई में न हों, लेकिन हमारा वोट शेयर 2022 के विधानसभा चुनावों के करीब रहेगा...

आपको बता दें यूपी में 2022 के विधानसभा चुनावों में, बसपा ने 403 सीटों में से केवल 1 सीट जीती थी, लेकिन उसका वोट शेयर 12.9% था, जो यूपी में जाटव वोटों के शेयर के करीब था...वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में जब बसपा को यूपी में एक भी सीट नहीं मिली थी, तब उसका वोट शेयर 19.77% था...2017 के विधानसभा चुनावों में, जब उसने 19 सीटें जीतीं, तो उसे 22.23% वोट मिले...यह 2019 के लोकसभा चुनावों में उसी क्षेत्र में था, जब उसने सपा के साथ गठबंधन किया और 10 सीटें जीतीं...

देखा जाए तो राम मंदिर आंदोलन के चरम को छोड़कर, जाटव और गैर-जाटव दोनों ने शुरू से ही बड़े पैमाने पर बसपा का समर्थन किया है...हालाँकि, 2014 के बाद से, भाजपा ने बसपा के गैर-जाटव वोट बैंक में एक महत्वपूर्ण सेंध लगाई है...लेकिन उसके बाद भी मायावती के कोर वोटर अभी भी बसपा के साथ हैं और उसे वोट देने की बात कह रहे हैं...ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि मायावती जाटवों के लिए पहली पसंद बनी हुई हैं...जो कहीं न कहीं कांग्रेस-सपा के साथ-साथ भाजपा के लिए भी खतरे की घंटी है....

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