श्री राम को सियासत में लाने वाले कांग्रेसियों की कहानी
अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को अब महज कुछ दिन ही बचे हैं...22 जनवरी को राम लला के आगमन के लिए राम नगरी में भव्य तैयारियां की जा रही हैं...ये वो दिन होगा, जिसका ये देश बरसों से इंतजार कर रहा है ....करोड़ो लोग ताक लगाए इसी दिन की राह ताक रहे हैं .. लेकिन इसी बीच सियासत भी खूब हो रही है ...और देखा जाए तो कलयुग में श्री राम केवल सियासत में बंध कर ही रहे गए है . श्री राम के मंदिर का विवाद जब से शुरू हुआ , वो आज भी शांत नहीं है .. और जहां तक कभी होगा भी नहीं .. 1947 में देश तो आजाद हुआ, लेकिन अयोध्या मंदिर-मस्जिद के विवाद से आजाद नहीं हो पाया.......श्री राम मंदिर का विवादों से नाता कैसा रहा , इसका इतिहास हम आपको आज बताएंगे -
साल 1947 में ये देश आजाद हुआ , लेकिन इसके ठीक 2 साल बाद यानी कि 1949 में राम मंदिर विवाद ने एक बिल्कुल नया मोड़ ले लिया....ये वो समय था जब राम मंदिर के विवाद ने पहली बार खुलकर राजनीतिक रूप ले लिया.... लेकिन क्या आपको पता है कि इसे राजनैतिक मोड़ देने वाली पार्टी कौन थी, अगर नहीं तो बता दें कि ये पार्टी कोई और नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी थी.... कांग्रेस पार्टी ने ही भगवान राम को सियासत की राह में भटकने के लिए छोड़ा था..कांग्रेस ही थी जिसने राम मंदिर को सियासत का मुद्दा बनाया . कैसे कब औऱ कहां ,सब बताते हैं -
पहली बार ये मुद्दा 1947 की एक सभा में उठा ... और ये सभा थी अयोध्या में वैरागियों और हिंदू महासभा की ..इस बैठक में बाबरी ढांचे पर कब्जा करने की बात रखी गई थी...
इसके बाद कांग्रेस ने 1948 में उपचुनाव में इसी मुद्दे को हवा दे दी ... राम नाम का सहारा लेकर कांग्रेस ने एक जंग छेड़ दी .. औऱ बताया कि केवल कांग्रेस ही है, जो राम मंदिर बनाएगी .. कांग्रेस का दांव काम भी आया और उपचुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत मिली
इसी बीच समाज में राम और अल्लाह की जंग छिड़ गई .. हिंदू वैरागी मुस्लिमों की जमीन पर कब्जा कर रामायण पाठ करवाने लगे ....जो परिसर विवादित हुआ था, वहां पुलिस चौकी तक बनवानी पड़ी थी.
इसके बाद आया था, वो मुद्दा जिसमें राम मंदिर के प्रकरण को असली औऱ मजबूत पकड़ दे दी .. बात 23 दिंसबर 1949 की हैं जब हिंदू सगठंनों से दावा कर दिया कि भगवान राम खुद प्रकट होकर ये कह रहे हैं कि यहीं तो उनका जन्म स्थान है ...और ऐसा वो इसलिए कह रहे थे .. क्योंकि उसी दिन बाबरी ढांचे के अंदर भगवान राम की मूर्ति पाई गई थी. लेकिन मुस्लिम पक्ष ये मानने वाला नहीं था.. तब तक ये मुद्दा इतना बड़ा हो चुका था कि कांग्रेस ने इसे अपने पाले में डाल लिया और इस मुद्दे के साथ सियासत खेलना शुरू कर दी .. मूर्ति मिलने के बाद उस दौरान प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 26 दिसंबर को यूपी के मुखिया गोंविद बल्लभ पंत को एक पत्र भेजा था.. उन्होंने उसमें लिखा था कि -
अयोध्या की घटना ने मुझे विचलित किया है .. मुझे भरोसा है कि इस मामले में आप रूचि लेंगे . जो हालात है उससे खतरनाक मिसाल कायम की जा रही है , जिसका परिणाम भी अच्छा नहीं होगा .
इसके ठीक बाद यानी कि 29 दिसंबर को ही फैजाबाद कोर्ट के अतिरिक्त सिटी मजिस्ट्रेट मार्कण्डेय सिंह ने विवादित ढांचे को सीआरपीसी , 1898 के सेक्शन 145 के तहत कुर्क कर लिया . जिसके बाद परिसर में ताला लगा दिया गया ... राम की मूर्ति की पूजा के लिए एक रिसीवर नियुक्त किया गया ..
उसके बाद कुछ शांति रही .. लेकिन 1950 में राम की सियासत फिर शुरू हो गई क्योंकि कानूनी प्रकिया आगे बढ़ रही थी . जनवरी 1950 में ऑल इंडिया रामायण महासभा के जनरल सेक्रेटरी गोपाल सिंह विशारद ने सिविल कोर्ट में याचिका दायर की . जिसमें बाबरी ढांचे में राम मूर्ति की विधिवत पूजा करने की इजाजत मांगी गई . ऐसे ही ये केस चलता रहा -
जिसके बाद फिर राम मंदिर के बढ़ते विवाद के बीच सियासत को राम की दरकार हो गई और जनसंघ ने इसे मुद्दा बनाया .. 1977 में मंदिर गठबंधन की सरकार बनाई तो मुद्दे ने तूल पकड़ा ..
इसके बाद कई सालों के अंतराल के बाद 1984 में वो हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ ता. राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति ने पहली रथ यात्रा निकाली .. जिसका उद्देश्य हिंदुओं को एक जुट करना था. लेकिन शोभा यात्रा का रथ जैसे ही दिल्ली पहुंचा उसी दौरान त्ततकालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई .. और ये कार्यक्रम रोक दिया गया .. इंदिरा की मौत के बाद ही ये मुद्दा फिर गर्मा गया .. राजीव गांधी के काल में ये मुद्दा चरम पर रहा .. राम मंदिर को मुद्दा बनाने के लिए उस दौरान की यूपी सरकार ने भी जोर दिया ..
लेकिन उस दौरान राजीव गांधी की एक गलती ने भारतीय राजनीति की सूरत बदल दी... 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने एक तलाकशुदा महिला के पति को हर महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया.. लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों के दबाव में आकर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने 1986 में संसद में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया.. सरकार पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगने लगे ... जिसके बाद कांग्रेस को हिंदुओं को खुश करना ही था.. डैमेज कंट्रोल के लिए एक और गलती राजीव गाँधी ने की ...इस बार हिंदू तुष्टीकरण की.. 37 सालों से बंद अयोध्या के विवादित बाबरी ढांचे का 1986 में ताला खोल दिया गया...
लेकिन भाजपा शाह बानों का केस नहीं भूली थी.. शाह बानों केस का लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में बीजेपी ने राम मंदिर निर्माण के लिए बड़ा आंदोलन छेड़ दिया... आज नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार दूसरी बार बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में आई...और आज आलम ये है कि कई राज्यों में उसकी सरकारें हैं
देखा जाए तो सनातन धर्म में श्री राम भगवान है .. लेकिन सियासत ने उनको कलयुग में केवल मुद्दा बनाकर ही छोड़ा .. फिलहाल अब राम मंदिर बनकर तैयार है . मगर फिर भी सियासत लगातार चल रही है . कांग्रेस ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का निमंत्रण ठुकरा दिया। पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, 'यह भाजपा का राजनीतिकरण प्रोजेक्ट है।भाजपा ने भी कांग्रेस आलाकमान के इस फैसले पर पार्टी को घेरा है। मगर एक सवाल जाते जाते कांग्रेस से जरूर करेंगे कि राम मंदिर पर कांग्रेस ने अगर ताला खुलवाया था.. भूमि पूजन की मंजूरी दी थी... कई घोषणा-पत्रों में राम मुद्दे का जिक्र था... राजीव गाँधी को राम मंदिर का श्रेय दिए जाने की बात की जा रही है तो तो अब कांग्रेस ने न्योता क्यों ठुकराया है ?
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