केन्द्रीय बजट से दिल्ली की सत्ता का रास्ता हुआ साफ़ !
केंद्रीय बजट, जिसे संविधान के अनुच्छेद 112 के तहत वार्षिक वित्तीय विवरण (Annual Financial Statement) भी कहा जाता है, अगली वित्तीय वर्ष के लिए वित्त मंत्रालय द्वारा तैयार किया जाता है। इसमें सरकार के नियोजित व्यय, अपेक्षित राजस्व और आर्थिक नीतियों की रूपरेखा प्रस्तुत की जाती है। बजट 1 फरवरी को पेश किया जाता है और 1 अप्रैल से लागू होता है। 2016 से पहले, इसे फरवरी के अंतिम कार्यदिवस पर प्रस्तुत किया जाता था। इसका मसौदा तैयार करने की ज़िम्मेदारी आर्थिक मामलों के विभाग (DEA) के बजट प्रभाग की होती है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव के महज चार दिन पहले आए आम बजट के कुछ प्रावधानों को वोटरों को लुभाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। सबसे ज्यादा चर्चा सालाना 12 लाख रुपये तक कमाने वालों को आयकर से मुक्त करने की घोषणा की हो रही है। इसे मास्टरस्ट्रोक बताया जा रहा है। बात यहीं तक सीमित नहीं हैं। चुनावी रैलियों में BJP के शीर्ष नेताओं के भाषणों को देखें तो लगता है कि बजट के दूसरे कई प्रावधान भी दिल्ली चुनावों को ध्यान में रखते हुए तय किए गए हैं। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के लिए करोड़ों की परियोजनाएं देकर दिल्ली में बसे इन इलाकों से आए लोगों को खुश कर दिया है। वे पूर्वांचली और मध्य वर्ग का साथ में नाम ले रहे हैं।
खुद प्रधानमंत्री के भाषण भी ऐसा संकेत देते हैं कि वे बजट घोषणाओं को राहत व कल्याणकारी वादों की तरह ही ले रहे हैं। दिल्ली चुनाव में अपनी आखिरी रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने 12 लाख रुपये तक की सालाना आमदनी को टैक्स मुक्त करने के फैसले का जिक्र महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये सीधे खाते में भेजने के BJP के वादे के साथ किया।
दिल्ली के लोगों की आमदनी का विश्लेषण किया जाए तो इस धारणा को बल मिलता है कि मोदी सरकार ने यह दांव समझ-बूझ कर खेला है। यहां सालाना औसत आमदनी 4 लाख 61 हजार है, जो राष्ट्रीय औसत आमदनी से ढाई गुना ज्यादा है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि दिल्ली में 85% काम करने वाले सेवा क्षेत्र में हैं। तो यह तो स्पष्ट है कि दिल्ली में एक बड़ा मध्यवर्ग है। सवाल उठता है कि यह मध्य वर्ग कितना बड़ा है? अगर एक सर्वे पर गौर करें तो राजधानी के 72% लोग अपने को मध्य वर्ग का हिस्सा मानते हैं। इनमें से 44% का ख्याल है कि वे निम्न मध्य वर्ग के हैं। दूसरे शब्दों में सिर्फ 28% लोगों को लगता है कि वे उच्च मध्य वर्ग से आते हैं।
स्पष्ट है कि टैक्स का यह स्लैब एक कैटिगरी बना सकता है, जिसमें दिल्ली के वोटरों का एक बड़ा हिस्सा आ जाता है। प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री शाह के भाषणों पर नजर डालने से यह भी साफ होता है कि वे टैक्स राहत वालों को भी लाभार्थियों की श्रेणी में रखना चाहते हैं। सवाल है कि क्या एक टैक्स स्लैब में आने वाले ये लोग बतौर वोटर भी अपनी एक पहचान बनाते हैं और क्या वे इस पहचान के आधार पर वोट देंगे?
पहली नजर में यह भले आसान लगे, लेकिन ऐसा है नहीं। लोगों की पहचान सिर्फ आय की खास कैटिगरी से नहीं तय होती है। अगर ऐसा होता तो BJP पूर्वांचली पहचान की बात नहीं करती। इसका मतलब है कि कुछ लोग टैक्स राहत से प्रभावित होकर BJP को वोट देने को प्रेरित हो सकते हैं, लेकिन यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि उनकी संख्या कितनी होगी। यह मानना सही नहीं होगा कि टैक्स छूट से लाभ पाने वाले सभी लोग एकजुट होकर मतदान करेंगे।
आंकड़े बताते हैं कि आम आदमी पार्टी की ओर से मुफ्त बिजली, पानी और महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा दिए जाने के बावजूद 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में BJP को 38% मत मिले थे। यह पहले के प्रतिशत से ज्यादा था। इसका मतलब है कि मुफ्त सुविधा पाकर लोग पक्ष में ही मतदान करें, यह जरूरी नहीं है। आम आदमी पार्टी BJP के वोट बैंक में सेंध नहीं लगा पाई। BJP को सीटें न मिलने की एक ही वजह हो सकती है कि उस बार तीसरी पार्टी यानी कांग्रेस लगभग मैदान से बाहर थी।
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