लोकसभा चुनाव के बहिष्कार की मांग, एटा का बिगड़ता सियासी माहौल

लोकसभा 2024 का चुनाव अपने तीसरे चरण की ओर बढ़ रहा है, ऐसे में एटा का जिक्र छिड़ा है तो सिर्फ बढ़ते सियासी परे की ही बात नहीं करेंगे हम बात करेंगे एटा के इतिहास की, यहाँ की भूमि की... क्युकी एटा जिले का नाम आते ही सबसे पहले याद आती है, तुलसी,खुसरो की... ये सरजमीं तुलसी और खुसरो की गाथा सुनती है... और साथ ही साथ यहाँ का सियासी समीकरण भी काबिले तारीफ़ है क्युकी यहाँ पर सियासी सरगर्मियां हमेशा तेज रहती है। लेकिन एक वजह और है जिसके चलते एटा लोकसभा की सीट बेहद ख़ास मानी जाती है... वो ये है कि एटा जिला अलीगढ़ डिवीजन का हिस्सा है। और अलीगढ में लोकसभा चुनाव का पर्व 26 अप्रैल को मनाया गया है ऐसे में जनता ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, और शान्ति पूर्ण ढंग से लोकतंत्र के महापर्व का उत्साह मनाया गया... अब इसी क्रम में तीसरे चरण के चुनाव होने है जिनमे संभल,हाथरस,आगरा,फतेहपुर सीकरी,फ़िरोज़ाबाद,मैनपुरी,एटा,बदांयू,आंवला,बरेली है... ये सभी लोकसभा सीटें बेहद ख़ास मानी जा रही है... इस सीट को और भी ज्यादा ख़ास बनाते यहाँ के शाक्य समाज के लोग, वैसे एटा लोकसभा क्षेत्र में शाक्य के अलावा इस सीट को लोधी, यादव बाहुल्य क्षेत्र के तौर पर सभी सियासी दाल देखते है... और इसी आधार पर इस सीट से 2024 में सभी दलों ने अपने-अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतरा है... वही समाजवादी पार्टी ने बड़ा डाव खेलते हुए इस लोकसभा सीट से देवेश शाक्य को चुनावी रण में उतारा है जिनका मुकाबला भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह से होना है.. लेकिन कही न कही बीजेपी को डर है कि जिस आधार पर ही एटा से सांसद का चुनाव होता है उसका कही न कही श्रेय शाक्य वोटरों को जाता है... क्युकी 2024 के चुनाव से पहले भाजपा के डा. महादीपक सिंह शाक्य इस सीट पर छह बार सांसद रहे। जिसका फायदा हर चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को देखने को मिला है... 


शाक्य वोटरों से बदलता सियासी माहोल 

लोकसभा क्षेत्र एटा चर्चाओं का विषय रहा है क्युकी ये भूमि ऋषि-मुनियों की तप भूमि रही है, फिर वो चाहे तुलसीदास हो या खुसरों। लेकिन ये क्षेत्र तब और भी ज्यादा सुर्ख़ियों में आ जाता जब यहाँ के सियासी समीकरण, सत्ता दलों की चर्चाएं होती है, तो हमे याद आती है यहाँ के लोधी, यादव और शाक्य वोटरों की.... लेकिन अगर बात की जाए कुल मतदाताओं की संख्या की तो 16,72,149 मतदाता है.. वही शाक्य मतदाताओं की संख्या 1,56,000 से अधिक है... 


मीठे पानी के लिए तरसती जनता 
ये तो बात रही एटा के सियासी समीकरण और जातीय समीकरण की लेकिन एटा में चुनाव को लेकर जनता के बीच रोष देखने को मिल रहा है,वो रोष जो बरसो से चला आ रहा है.. जिसपर सुनवाई होती नहीं, लेकिन जब देश और लोकतंत्र का महापर्व आता है तो लोगों को दिलासा दी जाती है कि उनकी मांग जरूर पूरी होंगी। लेकिन इस बार एटा की जनता लोकसभा चुनाव का बहिष्कार कर रही है.... क्युकी वर्षो से खारे पानी की समस्या से जूझ रहे लोग अब तरस्त हो चुके है जुमलेबाज़ी से.... झूठे वादों से, ग्रामीणों ने गांव के बहार ही बैनर पोस्टर लगा कर लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करने

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