यहां होली जलने के आठ दिन बाद खेला जाता है रंग,खूब होती है होली की हुड़दंग
हमीरपुर : यूपी के हमीरपुर जिले के कुरारा थाना क्षेत्र के कण्डौर गांव में होली जलने के बाद आठवें दिन होली खेली जाती है। होली में पूरे गांव की महिलाएं, बच्चे और पुरुष शामिल होकर रंगों से तरोबोर होते हैं तथा बसंतोत्सव का पूरा आनंद लेते हैं। यह सैकड़ो सालो की यह परंपरा आज भी यहां कायम है ! गौर वंश की नौवी पीढ़ी में कोणार्क देव ने आठ दिन तक अलग-अलग गांवों में होली मनाने की परंपरा को कायम किया था। जिसमें आठवां एवं अंतिम दिन कण्डौर के हिस्से में आया था। अन्य गांवों ने तो परंपराएं तोड़ दी हैं, लेकिन कण्डौर में यह परंपरा आज भी जीवित है और विगत कई दशकों से कण्डौर गांव में आठवें दिन ही होली का त्योहार मनाया जाता है। जिसे देखने के लिए क्षेत्र के कई गांवों के लोग पहुँचते है और फाग गायन के साथ होली की इस परम्परा का हिस्सा बनते है !
क्यो हुई इस अनोखी परम्परा की शुरुवात
कस्बे में कई दशकों से होली के दूसरे दिन झण्डा निकालने की परंपरा चली आ रही है। हर साल इस परंपरा को बखूबी निभाया जा रहा है। आसपास के ग्रामीण इलाकों के लोग भी इस झण्डा जुलूस में शरीक होते हैं।कस्बे के बुजुर्ग श्याम सिंह गौर बताते हैं कि कई साल पहले महाराजा हम्मीरदेव ने यवनों से संघर्ष के लिए राजगढ़ (राजस्थान) रियासत से सहयोग मांगा था। जिसमें वहां के सिंहलदेव व बीसल देव दोनों ही सेनानायकों ने यहां पर आकर हम्मीरदेव की प्राण रक्षा करते हुए उन्हें विजय दिलाई थी। अब युद्ध जीतने के बाद सिंहलदेव को विजय निशान के रूप में नंगाड़ा दिया गया था तथा बीसलदेव को ध्वज दिया गया था तथा दोनों को ही 12-12 गांव उपहार स्वरूप दिए गए थे। हमीरपुर जिले के राजा ने अपनी पुत्री का विवाह किया था सेनानायक से जिसमें बीसलदेव का विवाह हम्मीरदेव की पुत्री रामकुंवर के साथ हुआ था। इनकी नौ पीढ़ियों में सिर्फ एक-एक ही संतानें उत्पन्न हुई। नौवीं पीढ़ी कोणार्क देव का जन्म हुआ। जिनके नौ संतानें उत्पन्न हुई। कोणार्क देव के नाम पर ही कुरारा का जन्म हुआ। उन्होंने अपने सभी गांव अपनी संतानों को बांट दिए। जिसमें कुरारा, रिठारी, जल्ला, चकोठी, पारा, कंडौर, पतारा, झलोखर तथा नौवीं संतान को टीकापुर, बहदीना, कुम्हऊपुर तथा बैजे इस्लामपुर दिए गए थे। कोणार्क देव की दो संतानों ने जन्म लिया। जिसके नाम महलदेव व खानदेव हुए।
झंडा दिवस भी होली को बनाता है खास
वर्तमान में हरेहटा गांव कभी हुरेहटा नाम से जाना जाता था। होली का जलसा वही पर मनाया जाता था तथा 12 गांवों के लोग वहीं पर इकट्ठे होते थे। झण्डे को यमुना नदी में स्नान करवाकर कुल देवी गौरा देवी के मंदिर पर पूजा-अर्चना करने के बाद वहीं से झण्डे को कस्बे में भ्रमण कराया जाता था। कस्बे में झंडा एक ऐतिहासिक पर्व माना जाता है। जिसमें समाज के सभी वर्गों के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। कुरारा की शान का प्रतीक बन चुका यह झण्डा कस्बे में होली के त्योहार पर दूज के दिन बड़े ही हर्षोल्लास के साथ निकाला जाता है।
रिपोर्टर : जीतेन्द्र पंडित
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