बांगलादेश के चुनाव का भारत पर पड़ेगा असर

लंबे राजनीतिक संघर्ष के बाद बांग्लादेश में आम चुनाव की घोषणा हो गई है. पहली बार देश के नाम अपने संबोधन में बांग्लादेश के मुख्य चुनाव आयुक्त काजी हबीबुल अवल ने कहा कि सात जनवरी को नई संसद चुनने के लिए मतदान कराया जाएगा.देश की जनता को संबोधित करते हुए अवल ने कहा कि यह चुनाव का सबसे सही वक्त है. हम निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराने के लिए प्रतिबद्ध है. बांग्लादेश में आखिरी बार 2018 में आम चुनाव हुआ था. इस चुनाव में शेख हसीना की पार्टी ने एकतरफा जीत हासिल की थी. बांग्लादेश में इस बार भी मुख्य मुकाबला शेख हसीना की पार्टी बांग्लादेश अवामी लीग और खालिदा जिया की पार्टी बांग्लादेश नेशनल पार्टी के बीच है. हालांकि, यह चुनाव भारत, अमेरिका, चीन और पाकिस्तान के लिए भी काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

बांग्लादेश में कैसा है संसद का स्ट्रक्चर?
1971 में पाकिस्तान से अलग होने के बाद बांग्लादेश ने 1972 में खुद का संविधान बनाया. इसके बाद यहां संसदीय व्यवस्था लागू हुआ. बांग्लादेश की संसद को ‘जातियो संगसद’ या हाउस ऑफ द नेशन कहा जाता है.सरकार के मुताबिक इसकी नई बिल्डिंग 15 फरवरी 1982 में तैयार हुई और यह 200 एकड़ में बनी है. बांग्लादेश में संसद की 350 सीटों के लिए चुनाव कराया जाता है. बांग्लादेश की संसद में महिलाओं के लिए 50 सीटें रिजर्व है.संसद में सत्ताधारी दल के नेता प्रधानमंत्री बनते हैं और वे ही कार्यकारी प्रधान होते हैं. 2009 से ही बांग्लादेश की सत्ता में शेख हसीना की पार्टी बांग्लादेश आवामी लीग काबिज है.
भारत, चीन और पाकिस्तान के लिए अहम क्यों है चुनाव?
5 साल बाद हो रहे बांग्लादेश का चुनाव भारत, पाकिस्तान और चीन के लिए भी काफी अहम माना जा रहा है. क्यों, इसे विस्तार से जानते हैं...

बीएनपी जीती तो भारत की मुश्किलें बढ़ेगी
बांग्लादेश एक वक्त भारत का ही हिस्सा था, लेकिन आजादी के वक्त यह पाकिस्तान के हिस्से में चला गया. 1971 में इसे अलग करने की मांग उठी, जिसके बाद आंदोलन हुएबांग्लादेश को अलग करने में भारत ने अहम भूमिका निभाई थी. बांग्लादेश को एक अलग और स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देने वाला भारत पहला देश था.बांग्लादेश के गठन के बाद से ही भारत उसका महत्वपूर्ण दोस्त रहा है. दोनों देश अभी भी कई मोर्चों पर एक-दूसरे के साझेदार की भूमिका में है. इनमें रक्षा, डीजल कारोबार जैसे अहम क्षेत्र शामिल हैं. भारतीय उपमहाद्वीप में बांग्लादेश भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है. भारत की 4000 किलोमीटर की अधिक सीमाएं बांग्लादेश से लगती है. यहां घुसपैठ अहम मुद्दा रहा है. बांग्लादेश में वर्तमान की हसीना सरकार के भारत के रिश्ते बेहतरीन है, लेकिन यहां अगर सरकार बदलती है, तो कई मोर्चों पर भारत को झटका लग सकता है. खालिदा जिया की राजनीति पाकिस्तान समर्थित रही है.2018 में जब खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के एक मामले में सजा सुनाई गई, तब उनके करीबियों ने भारत से संपर्क किया था. हालांकि, भारत सरकार ने उनकी मदद करने से इनकार कर दिया था.बांग्लादेश की राजनीति में अमेरिकी दखल भी भारत के लिए परेशानी का सबब बन गया है. 

शेख हसीना के रहते बांग्लादेश से संबंध नहीं सुधरा
शेख हसीना अगर सत्ता में फिर से वापसी करती हैं, तो पाकिस्तान के लिए आगे की राह आसान नहीं रहने वाला है. 1971 के बाद खालिदा जिया सरकार के वक्त बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधारने की कोशिश की गई, लेकिन हसीना की सरकार के आते ही इस पर पानी फिर गया. हसीना सरकार से पाकिस्तान ने कई बार राजनयिक संबंध सुधारने की कोशिश की है, लेकिन सफलता नहीं मिली है. 2020 में पाकिस्तान ने बांग्लादेशियों के लिए वीजा नियमों में कई बदलाव किए थे. पाकिस्तान को खालिदा जिया की पार्टी से उम्मीद है. अगर खालिदा जिया सरकार में आती है, तो कई मोर्चे पर दोनों देश फिर से साझेदारी कर सकता है. इनमें कपास, कपड़ा, जूता और प्लास्टिक उत्पाद शामिल हैं.
चीन के लिए भी अहम है बांग्लादेश का आम चुनाव .बांग्लादेश की राजधानी ढाका में बड़ी संख्या में चीनी प्रवासी रहते हैं. चीन बीआरआई प्रोजेक्ट के जरिए भी लगातार बांग्लादेश में अपनी उपस्थिति बढ़ा रही है. 2016 में चीन ने बांग्लादेश के साथ 26 समझौता किया था. रिसर्च संस्था ओआरएफ के मुताबिक चीन एशियाई देश बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी है और उनका आपसी व्यापार 10 बिलियन डॉलर का है. ऐसे में बांग्लादेश में अगर बहुत बड़ा उलटफेर होता है, तो चीन का इसका नुकसान हो सकता है. 

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