मुख्तार के जनाजे में तमाशा क्यों ?


यूपी में माफियाओं का हाल बेहाल है ... कोई जेल में है तो कोई अब सुर्पुद -ए- खाक है .... खौफ और आंतक की दुनिया से राजनीति में कदम रखने वाले माफिया अतीक अहमद के आंतक का अंत जब हुआ था ...तब एक ही सवाल था कि आखिर यूपी का दूसरा सबसे बड़ा माफिया मुख्तार अंसारी कब मिट्टी में मिलाया जाएगा .. मगर उपरवाले को कुछ और मंजूर था .. 2 दिन पहले बांदा की जेल में दिल का दौरा पड़ने से मुख्तार की मौत हो गई ... और इस मौत ने एक बार फिर पूरे देश में हड़कंप मचा दिया .. माफिया की मौत पर भी रोने वालों का हुजूम खड़ा हो गया .आरोप लगाए गए कि ये मौत नहीं साजिश है ..जेल में मुख्तार को मारा गया .. फिलहाल पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम कराया , और शव को परिजनों को सौंप दिया .. जिसके बाद आज गाजीपुर में मुख्तार के जनाजे के लोगों का हुजूम दिखाई दिया .मगर इसी वक्त कुछ ऐसा हुआ , जिसके बाद प्रशासन के हाथ पैर फूल गए ..

मुख्तार अंसारी के आखिरी सफर में उसके समर्थकों का हुजूम उमड़ा था .. भीड़ इतनी थी , कि कभी भी हालत बेकाबू हो सकते थे .. इसीलिए प्रशासन अलर्ट था .इसीलिए गाजीपुर प्रशासन ने सिर्फ परिवार के लोगों को कब्रिस्तान के अंदर जाने की अनुमति दी...और बाकी लोगों को अंदर जाने से रोका जाने लगा ...इस बात से लोगों में आक्रोश बढ़ गया ..और इसी बात को लेकर मुख्तार अंसारी के भाई सांसद अफजाल अंसारी और गाजीपुर की डीएम आर्यका अखौरी के बीज तीखी नोकझोंक हो गई... जो वीडियो में साफ तौर पर देखी जा सकती है . 

यानी कि ये तीखी नोकझोंक केवल इसलिए हुई क्योंकि प्रशासन अपना काम कर रहा था ...और स्थिति बेकाबू ना हो इसीलिए लोगों को अंदर जाने से रोका गया .. मगर ये बात मुख्तार के समर्थकों और भाई अफजाल अंसारी को समझ नहीं आई . हैरानी की बात तो ये है कि प्रशासन ने मुख्तार के परिजनों से बातचीत के बाद तय किया था कि अंतिम संस्कार के दौरान कब्रिस्तान में सिर्फ परिवार के सदस्य और करीबी रिश्तेदार ही मौजूद रहेंगे, लेकिन मुख्तार के जनाजे में इतनी बड़ी संख्या में लोग जुटे कि सारी व्यवस्थाएं धरी की धरी रह गईं. मुख्तार समर्थकों के कब्रिस्तान में घुसने के लिए बैरिकेडिंग तोड़ने पर अफरा-तफरी मच गई.जिसके बाद प्रशासन ये रिस्क तो बिल्कुल भी नहीं ले सकता था . 

देखा जाए तो मुख्तार अंसारी के जनाजे के साथ देखी गई भीड़ कई मायनों में कई सवाल खड़े कर रही थी ... एक तो एक माफिया को जनता कितना अपना मानती है और दूसरा कि ऐसे जनाजो में पुलिस की तैयारी और बेहतर होने की जरूरत भी है . यूपी में शुरू से ही बाहुबलियों का जलजला कायम रहा है...  राजनीति से लेकर क्राइम तक इन माफिया नेताओं का दखल रहता था... शायद इसीलिए इनके समर्थक आज भी मिल जाते हैं... जिस मुख्तार की कभी तूती बोलती थी ...और आज भले शांती से सुर्पुद -ए- खाक हो गया ...लेकिन अपने पीछे समर्थकों का हुजूम छोड़ गया है , जो आज नहीं तो कल एक नए मुख्तार को जन्म दे सकते हैं ..

 

 

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