हेमंत सोरेन की ताजपोशी , राहुल बने ठन- ठन गोपाल

झारखंड में चुनाव जीतने के बाद हेमंत सोरेन का शपथग्रहण और सियासी गलियारों में मच गया बवाल , जी हां  आज एक तरफ हेमंत का अकेले शपक्ष लेना चर्चाओं में है , वहीं  कैबिनेट विस्तार बाद में किया जाएगा...लेकिन कैबिनेट का विस्तार बाद में करना , कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं है ..  सवाल ये है कि हेमंत सोरेन ने अकेले शपथ लेना क्यों चुना .. और इसका कांग्रेस पर क्या असर पड़ सकता है . 

दरसल झारखंड में 'इंडिया गठबंधन' के तहत चार दलों की सरकार बन रही है, लेकिन हर दल अपनी हिस्सेदारी चाहता है। इस समय कैबिनेट में 12 पद हैं, जिनमें से जेएमएम 7 पद चाहती है। कांग्रेस 4, जबकि माले और आरजेडी भी अपने-अपने हिस्से की मांग कर रहे हैं। इस पेच को सुलझाना हेमंत के लिए आसान नहीं है, और यही वजह है कि कैबिनेट विस्तार में देरी हो रही है।वहीं , अकेले शपथ लेने के 3 बड़ी वजह क्या है , चलिए वो भी बता देतें है  - 

पहला है - हेमंत का खुद का चेहरा बनना: इस बार झारखंड में चुनाव पूरी तरह हेमंत सोरेन के इर्द-गिर्द हुआ। उन्होंने अकेले 200 से ज्यादा रैलियों में हिस्सा लिया, जबकि कांग्रेस और आरजेडी के नेता मैदान से बाहर थे। अब जब सरकार बनाने की बारी आई है, तो हेमंत ने अपनी ताकत दिखाने के लिए अकेले शपथ लेने का फैसला किया।

दूसरा है - अब कांग्रेस पर निर्भर नहीं है हेंमच : 2019 में हेमंत को सरकार बनाने के लिए कांग्रेस का समर्थन चाहिए था, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। इस बार जेएमएम के पास 34 सीटें हैं और उसे माले व आरजेडी का भी समर्थन है। अब हेमंत सोरेन कांग्रेस को ज्यादा अहमियत नहीं दे रहे, और वह अपनी शर्तों पर सरकार चला सकते हैं।

तीसरी वजह ये है कि पोजीशन पर खिंचतान होगी .. दरसल  कांग्रेस ने डिप्टी सीएम का पद मांगा था, लेकिन हेमंत ने इसे सिरे से नकार दिया। कांग्रेस के किसी विधायक का मंत्री बनाना भी जेएमएम के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि इससे कांग्रेस को नंबर-2 की पोजीशन मिल सकती थी.. हेमंत इसे लेकर बेहद सतर्क हैं और चाहते हैं कि सत्ता की असल ताकत जेएमएम के हाथ में रहे.. 

फिलहाल झारखंड में कांग्रेस की हातल फिलहाल जम्मू कश्मीर जैसी लग रही है .. कि सरकार को सहयोग से बनी .मगर सरकार में हिस्सेदारी मिलनी  मुश्किल है . हेमंत सोरेन के अकेले शपथ लेने से साफ है कि अब जेएमएम कांग्रेस से ज्यादा ताकतवर हो गई है.. कांग्रेस के लिए ये स्थिति चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि अब उसे अपनी हिस्सेदारी पर समझौता करना पड़ सकता है..

कुल मिलाकर,हेमंत सोरेन का अकेले शपथ लेना न केवल उनकी सियासी ताकत को दर्शाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि अब झारखंड में सत्ता की बागडोर पूरी तरह जेएमएम के हाथों में है। कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं, क्योंकि अब उसे अपनी हिस्सेदारी को लेकर समझौते की राह पर चलना पड़ेगा। हेमंत सोरेन ने यह साफ कर दिया है कि अब उनका रुख कांग्रेस के लिए पहले जैसा नहीं रहेगा। इस रणनीति से झारखंड की राजनीति में नए समीकरण बन सकते हैं, जो कांग्रेस के लिए टेंशन का कारण बनेगा।

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