आखिरकार संगम तट पहुंचे अखिलेश यादव , दिया बड़ा संदेश
प्रयागराज के महाकुंभ मेला में संगम की पवित्र धारा में डुबकी लगाते हुए समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने जो बयान दिया, वह न केवल राजनीति की हवा बदलने वाला था, बल्कि समाज के हर तबके के दिल में एक गहरी छाप छोड़ने वाला था. कुंभ मेला, जहां दुनिया भर से श्रद्धालु आते हैं, अखिलेश यादव ने अपनी 11 पवित्र डुबकियों के बाद यह कहा, "यहां कोई बुलाया नहीं जाता, लोग अपनी आस्था और श्रद्धा लेकर आते हैं, और यह मौका हमें सिर्फ आध्यात्मिक रूप से ही नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग की चिंता करने का भी अवसर देता है।"
अखिलेश ने बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा, "विभाजनकारी राजनीति के लिए यहां कोई जगह नहीं है। कुंभ तो एकता, सद्भाव और शांति का प्रतीक है। जो लोग नफरत की राजनीति करते हैं, उनका यहां कोई स्थान नहीं। जिस दिन मैंने हरिद्वार में डुबकी लगाई थी, वह दिन एक उत्सव था। और आज मुझे संगम में डुबकी लगाने का अवसर मिला है, यह भी एक त्योहार ही है।"
सपा प्रमुख ने महाकुंभ के आयोजन को लेकर सरकार से अपनी बात रखते हुए कहा, "यह आयोजन किसी खेल का आयोजन नहीं है, बल्कि एक धार्मिक उत्सव है, और यहां बुजुर्गों के लिए विशेष ध्यान देने की जरूरत है। मैंने देखा कि कई बुजुर्गों को पैदल चलने में परेशानी हो रही थी, और यह कोई नई बात नहीं है। ऐसे आयोजनों में खासतौर से वृद्धजनों के लिए सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए।"
अखिलेश ने महाकुंभ के आयोजन में हुई व्यवस्थाओं पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा, "यहां 10 हजार करोड़ का बजट दिया गया है, लेकिन क्या इन पैसों से सभी समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता था? अगर सरकार ने 10 हजार करोड़ रुपये और दिए होते, तो लोगों को किसी भी तरह की परेशानी नहीं होती।"
सपा अध्यक्ष ने यह भी कहा कि कुंभ का आयोजन किसी भी तरह के बंटवारे का स्थान नहीं हो सकता। "यहां कोई विभाजन नहीं, केवल एकता का संदेश होना चाहिए। कुंभ में सद्भाव, सहनशीलता और भातृत्व की भावना होनी चाहिए, ताकि हम सब एक साथ मिलकर इसका आनंद ले सकें।"
साथ ही, अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव की प्रतिमा लगाने के बाद सरकार से यह अपील भी की कि "सभी साधू-संतों की तस्वीरें उतनी ही इज्जत और सम्मान के साथ लगाई जाएं जितनी सरकार ने अपनी तस्वीरों को दी है।"
कुल मिलाकर, अखिलेश यादव ने महाकुंभ को केवल धार्मिक अवसर न मानकर, इसे सामाजिक और राजनीतिक संदेश देने का एक बड़ा प्लेटफार्म बना दिया। उनकी बातें न केवल इस धार्मिक आयोजन को लेकर गंभीर चिंताओं को सामने लाती हैं, बल्कि यह दिखाती हैं कि राजनीति का अपना धर्म भी होता है—वह धर्म जो समाज को जोड़ने और उसके हितों की रक्षा करने का काम करता है।
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