सिक्योरिटी गार्ड से लेकर पुजारी तक, झारखंड चुनावी दंगल में कूदे
झारखंड में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं। 13 और 20 नवंबर को होने वाले मतदान को लेकर हर तरफ सियासी हलचल है, और उम्मीदवारों की लिस्ट में कुछ ऐसे नाम भी हैं जो आमतौर पर चुनावी मैदान में नहीं दिखाई देते। इनमें शामिल हैं पान वाले, पूजा-पाठ कराने वाले, सिक्योरिटी गार्ड, रंगाई-पुताई करने वाले और खेतिहर मजदूर... तो चलिए आइए जानते हैं झारखंड के उन उम्मीदवारों के बारे में जो किसी फैंटेसी फिल्म के हीरो से कम नहीं, बस फर्क इतना है कि ये सब सच्ची ज़िन्दगी में चुनावी दंगल में कूद पड़े हैं और ये उम्मीदवार राजनीति के शोरगुल के बीच एक अलग ही रंग पेश कर रहे हैं-
1. मनोज करुआ – सिक्योरिटी गार्ड से नेता बनने तक!
जमशेदपुर की जुगसलाई सीट से निर्दलीय उम्मीदवार मनोज करुआ चुनावी मैदान में कूदने वाले हैं। हां, वही मनोज, जो टाटा स्टील में सिक्योरिटी गार्ड की ड्यूटी निभाते हैं! रोज़ाना 430 रुपये की दिहाड़ी कमाने वाले मनोज ने चुनाव लड़ा है और इसके लिए उन्होंने कंपनी से 10 दिन की छुट्टी ली है।
2. पुरुषोत्तम कुमार पांडे – पुजारी से नेता, मिशन धर्म और राजनीति
बरही विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे पुरुषोत्तम कुमार पांडे पेशे से पुजारी हैं। लेकिन ये सिर्फ मंदिर में पूजा-पाठ नहीं करते, बल्कि अखिल भारत हिंदू महासभा से राजनीति में भी कदम रख चुके हैं। अब पांडेय के पास वोटों का मंत्र है, और उनका कहना है कि इस बार वो 20,000 से ज्यादा वोट लाकर चुनाव जीतने का टारगेट लेकर चले हैं।
3. मुकुल नायक – रंगाई-पुताई करने वाला, अब राजनीति की पेंटिंग करेगा
कांके सीट से लोकहित अधिकार पार्टी के उम्मीदवार मुकुल नायक पेशे से रंगाई-पुताई करने वाले मजदूर हैं। गांववालों से चंदा जुटाकर नामांकन दाखिल करने वाले मुकुल का कहना है कि उनके पास चुनाव लड़ने के लिए पैसा नहीं, लेकिन उनके अंदर की रंगाई-पुताई की कला अब राजनीति में रंग भरने जा रही है!
4. रविंद्र सिंह – पानवाला जो अपनी किस्मत आजमा रहा है!
जमशेदपुर पूर्वी सीट से पान की दुकान चलाने वाले 52 साल के रविंद्र सिंह भी अब चुनावी रण में उतर चुके हैं। रविंद्र सिंह अपने इलाके में पैदल चलते हुए प्रचार कर रहे हैं, और उनके मुताबिक यही उनकी असली ताकत है
5. सावित्री देवी – किसान से नेता, खेतों से विधानसभाओं तक
खूंटी जिले की तोरपा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही 35 वर्षीय सावित्री देवी किसान और खेतिहर मजदूर हैं। बसपा ने उन्हें टिकट दिया है और उनका कहना है कि वे पहले से ही इलाके में काफी जानी-पहचानी हैं। गांव-गांव जाकर, ग्राम सभाओं में हिस्सा लेकर उन्होंने लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली है।
झारखंड चुनाव में यह कुछ असामान्य चेहरे हैं, जो राजनीति के मैदान में आने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार हैं। इनमें से कुछ के पास धन-दौलत नहीं, लेकिन हिम्मत और इच्छाशक्ति भरपूर है। इन चुनावों में इनकी कहानियाँ यह साबित करती हैं कि राजनीति किसी खास वर्ग तक सीमित नहीं है – हर किसी को अपने हक के लिए लड़ने का हक है।उम्मीद है कि ये 'अलग' उम्मीदवार न केवल अपनी सीट जीतेंगे, बल्कि झारखंड की राजनीति में एक नया रंग भरेंगे।
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