पार्टी से निकाले जाने पर संजय निरुपम ने कांग्रेस पर जमकर बोला हमला

लोकसभा चुनाव आ गया हैं यहाँ प्रचार भी है दुलार भी है रणनीति भी है तो नीति भी है साथ अलगाव भी है. पर हाँ यहाँ वो अलगाव स्वार्थ यानि महत्वकांक्षा का है। और इस अलगाव को हम दल बदलना बोलते हैं। वैसे तो ये स्वार्थ यानि अलगाव हमें सभी राजनीतिक पार्टियों में देखने को मिल रहा है पर देश की सबसे पुरानी पार्टी यानि कांग्रेस जिसने देश पर दशकों राज किया है वही कांग्रेस अब परेशानी में है क्योंकि उसके बड़े बड़े साथी उसको छोड़कर जा रहे है और इसकी वजह वो कांग्रेस की गलत नीतियों को बता रहे हैं।  

आपको बता दें कांग्रेस नेताओं में पार्टी छोड़ने का सिलसिला रुकने का नाम नही ले रहा है एक के बाद एक नेता पार्टी को अलविदा कर रहे हैं, इसमें अशोक चव्हाण, मिलिंद देवड़ा के बाद अब संजय निरुपम ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया है. बताया जा रहा है कि निरुपम महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी में सीट बंटवारे से नाराज थे ऐसा कहा जा रहा है कि संजय निरुपम मुंबई से उत्तर पश्चिम सीट से मैदान में उतरना चाहते थे और उनकी मांग थी कि यह सीट कांग्रेस को मिले और जब शिवसेना ने उस सीट से अपना उम्मीदवार उतारा तो संजय निरुपम ने शिवसेना की सीट पर कड़ी आपत्ति जताई और कांग्रेस का भी विरोध कर आपत्ति जताई और कहा कि कांग्रेस ठाकरे गुट के सामने झुक गई है। अब यूपी की तरह मुंबई में भी कांग्रेस का अस्तित्व खत्म हो जायेगा पार्टी का बुरा हाल होगा । 

संजय निरुपम की इस बयानबाजी के कारण बुधवार को कांग्रेस ने उनको पार्टी से निष्कासित कर दिया। बताया गया कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अनुशासनहीनता, पार्टी विरोधी बयानों की शिकायतों के बाद उनको पार्टी से निष्कासन को मंजूरी दी और संजय को छह साल के लिए कांग्रेस पार्टी से बाहर कर दिया. इसके बाद संजय निरुपम ने गुरुवार को कांग्रेस से निकाले जाने पर पार्टी पर निशाना साधा और प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक बार फिर से शिवसेना उम्मीदवार अमोल कीर्तिकर पर निशाना साधा और इसके साथ कांग्रेस में कई सत्ता केंद्र बनने का भी आरोप लगाया। कांग्रेस को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बहिष्कार करने के फैसले पर भी निशाना साधते हुए घेरा।  

अब महाराष्ट्र में संजय निरुपम साथ छोड़ना कांग्रेस के लिए कितना नुकसानदेह होगा वो तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में निहित है पर ये अंदरूनी कलह का प्रभाव केवल महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश पर पड़ेगा। आज के समय में अपने साथियों को खुश और संतुष्ट रखना सबसे टेढ़ी खीर हैं जिसको बनाना वर्तमान में कांग्रेस के बस की बात नहीं।

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