भारतीय राजनीति में महिलाएं बनती जा रही सॉफ्ट टारगेट

भारत की राजनीति में महिलाएं राजनीतिक दलों के लिए एक सॉफ्ट टारगेट बनती जा रही हैं...देश के सभी राजनीतिक दलों को यह लगने लगा है कि महिला मतदाताओं को लुभा कर चुनावी जीत हासिल की जा सकती है...यही वजह है कि एक के बाद एक कई राज्यों में राजनीतिक दलों ने खासकर सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों ने महिलाओं के खाते में सीधे कैश पहुंचा कर सत्ता में फिर से वापसी करने में कामयाबी हासिल कर ली है...महिलाओं को चंद पैसों का लालच देकर उनसे वोट लिए जा रहे हैं..अब इसे महिला सम्मान योजना का नाम दिया जाए या लाडली बहना योजना का नाम दिया जाए या फिर कोई और नाम दिया जाए लेकिन सही मायनों में यह एक चुनावी रिश्वत से ज्यादा कुछ नहीं है...

हाल ही में दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने भी यही किया...विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना के नाम पर हर महिला के खाते में एक हजार रुपए भेजने की घोषणा की, और कहा कि चुनाव जीतवा दो तो इसे बढ़ाकर 2100 रुपए कर दिया जाएगा..लेकिन हमारा सवाल ये है कि आखिर इस तरह की योजनाएं चुनाव के पहले ही क्यों शुरू की जाती है? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या 1000, 1500, 2100 या 3000 रुपए की राशि से सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है...

ऐसे में अब वक्त आ गया है कि महिला मतदाताओं को ही आगे बढ़कर, नेताओं से यह सवाल पूछना चाहिए कि सरकारी स्कूलों और कॉलेजों की हालत इतनी खराब क्यों हैं ? प्राइवेट स्कूलों और कॉलेजों की फीस बेतहाशा क्यों बढ़ती जा रही है ? जिस देश में बड़े पैमाने पर डॉक्टरों की कमी है, उस देश में MBBS की पढ़ाई का खर्च सालाना एक करोड़ रुपए से भी ज्यादा कैसे हो गया है? सरकारी अस्पताल में समय पर उचित और फ्री इलाज क्यों नहीं मिल पा रहा है? नौकरी तक का फॉर्म भरने के लिए बेरोजगार बच्चों से सैकड़ों- हजारों रुपए क्यों लिए जा रहे हैं? क्योंकि अगर आप जोड़ कर देखेंगी तो ये सभी खर्च मिलाकर आपको महिला सम्मान या लाडली बहना योजना के नाम पर मिलने वाली राशि से कई हजार गुना ज्यादा है...

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