EVM को लाने वाली कांग्रेस को EVM से क्या दिक्कत ?

क्या आप सोचते हैं कि कांग्रेस को कभी अपनी हार का कारण समझने का वक्त मिलेगा? नहीं, कांग्रेस की हार के बाद सबसे पहला सवाल यही उठता है: "ईवीएम ने क्या किया?" चुनाव हारने के बाद, जैसे ही वोटों की गिनती खत्म होती है, विपक्ष का पहला राग यही होता है, "ईवीएम में गड़बड़ी है!" एक तरफ वोटर जो अपना फैसला दे चुका है, दूसरी तरफ कांग्रेस और विपक्ष की तरह-तरह की आरोपों की झड़ी लगी रहती है .. लगता है कि अब तो  ये आदत बन गई है, हर चुनाव में हार के बाद EVM के खिलाफ आवाज़ उठाना। हरियाणा, महाराष्ट्र, यूपी-बिहार के उपचुनाव में भी यही हुआ। और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे तो ये तक कह रहे हैं कि "हम बैलट पेपर से चुनाव करवाएंगे", जैसे किसी जादुई तरीका मिल गया हो! 

लेकिन, बेशक, किसी को याद नहीं रहता कि यह वही कांग्रेस पार्टी है जिसने पहली बार EVM का इस्तेमाल किया था। हां, वही कांग्रेस पार्टी जिसने बूथ कैप्चरिंग और फर्जी मतदान के दौर में देश को मुक्ति दिलाने के लिए EVM का रास्ता चुना था। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर अचानक ये क्या हो गया कि जब चुनाव में हारने लगे, तो EVM ही सबका दोषी बन गई? कांग्रेस ने कभी ये क्यों नहीं सोचा कि उसकी रणनीतियों, प्रचार और मुद्दों में कुछ कमी हो सकती है?

सुप्रीम कोर्ट भी बार-बार कह चुका है कि "हारने पर EVM में दोष ढूंढना ठीक नहीं है", लेकिन कांग्रेस को सुप्रीम कोर्ट की बातों से क्या फर्क पड़ता है? जब वो जीतते हैं तो ईवीएम पर कोई सवाल नहीं उठाते। जब हारते हैं, तो ईवीएम की गड़बड़ी का ढिंढोरा पीटते हैं।

फिलहाल अब तो कांग्रेस के लोग बैलट पेपर से चुनाव कराने की बात कर रहे हैं, जैसे यह कोई रामबाण इलाज हो! लेकिन क्या आप जानते हैं कि चुनाव को  बैलट पेपर से कराने पर क्या होगा .. अगर नहीं तो चलिए बताते हैं - 


बैलेट बॉक्स का लूट होना सबसे बड़ा डर है
पहले के समय में अक्सर लूट हो जाती थी
बैलेट बॉक्स में पानी डाल देना या आग लगा देना,कागज की पत्री जलकर राख हो जाती थी
काउंटिंग में काफी समय लगता है ,कागज की बर्बादी होती है 
बूथ कैप्चर करने की कोशिश 
कई वोट हो जाते थे अनवैलिड

इसके अलावा एक तर्क ये जरूर दिया जाता है कि दुनियाभर के सौ से ज्यादा देशों में आज भी ईवीएम का इस्तेमाल नहीं किया जाता. वहां चुनाव के लिए अब भी बैलेट पेपर और बॉक्स का इस्तेमाल होता है. विपक्ष तो बार-बार यह तर्क देता है कि "देखो, जर्मनी, जापान, नीदरलैंड में बैलट पेपर से चुनाव होते हैं", लेकिन क्या वो भूल जाते हैं कि इन देशों की जनसंख्या भारत के मुकाबले कितनी छोटी है? 140 करोड़ लोगों वाले देश में बैलट पेपर से चुनाव करवाने का खामियाजा क्या होगा, यह सोचने की जरुरत है! इसीलिए तो नेपाल, भूटान और केन्या जैसे देश तो भारत में बनी ईवीएम से चुनाव कराते हैं. इन्होंने भारत से ईवीएम खरीदी हैं. वहीं, बांग्लादेश, श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, रूस मलेशिया और घाना जैसे देशों ने भारत की ईवीएम में गहरी दिलचस्पी दिखाई है.

दरसल भारत में भी 90 के दशक तक बैलेट पेपर से ही चुनाव कराए जाते थे. हालांकि, तब वोटों की गिनती में काफी लंबा समय लगता था. इस समस्या से निपटने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड की मदद से साल 1989 में सरकार ने ईवीएम के निर्माण की शुरुआत की. ईवीएम से साल 1998 में पहली बार कई जगह विधानसभा चुनाव कराए गए. धीरे-धीरे इसका इस्तेमाल बढ़ता रहा और साल 2004 के आम चुनाव में पहली बार देश भर के मतदाताओं ने ईवीएम का इस्तेमाल किया था. तब से देश में ईवीएम से ही चुनाव कराए जाते हैं.

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