हाय-बाय छोड़कर के राम-राम बोलिए- सुनील जोगी

आज हर तरफ अयोध्या में बन रहे नए श्रीराम मंदिर के गर्भगृह में भगवान श्री राम के बाल रूप में विराजमान होने की तैयारियाँ चल रही हैं और हर रामभक्त अपने श्री रामलला को मंदिर के गर्भगृह में विराजमान होते देखना चाहता है। आज हर तरफ गूँज रहा है बस एक ही नारा और एक ही नाम; जय श्रीराम-जय श्रीराम...। मगर श्रीराम सिर्फ लोगों के हृदय के साथ-साथ मंदिरों में ही नहीं विराजे हैं, बल्कि साहित्य की आत्मा में भी समाये हुए हैं। भगवान् श्रीराम को महर्षि वाल्मीकि ने अपने महाकाव्य "रामायण" में उकेरा, उनकी कथा बयाँ की और फिर उनके बाद अन्य भी कई लोगों ने श्रीराम पर कई रामायण लिखे।

भगवान श्रीराम के जीवन और उनकी पूरी कहानी को उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक अलग-अलग कवियों ने विभिन्न भाषाओं में लिखा है। सभी के लिखने में सभी के साहित्य में कहीं न कहीं कुछ न कुछ अंतर दीखते हैं, किन्तु सभी के मूल में श्रीराम ही विराजते हैं। दक्षिण भारत के लोगों के लिए श्रीराम काफी महत्त्व रखते हैं। कर्णाटक और तमिलनाडु में श्रीराम ने अपनी सेना का गठन किया था और तमिलनाडु में ही उन्होंने रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। वहीं अगर उत्तर भारत की ओर हम वापस आएं तो गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस में उन्होंने भगवान श्रीराम के जिस आदर्श रूप का बखान किया उसने सभी के जीवन को नई दिशा देने का काम किया है। हालाँकि श्रीराम कथा के बारे में आप सभी बखूबी जानते हैं और इसीलिए आज यहाँ हम श्रीराम कथा का तो नहीं, किन्तु हाँ; उनपर लिखी डॉ. सुनील जोगी की एक कविता पेश कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने राम नाम के महत्त्व को बताते हुए युवाओं को आधुनिकता की दौड़ में भी अपनी संस्कृति के बारे में आगाह किया है। परिवारों के विघटन और संस्कारों से बढ़ती युवाओं की दूरी का ज़िक्र किया है और साथ ही हमें पाश्चात्य संस्कारों के स्थान पर भारतीय संस्कार अपनाने सन्देश दिया है। प्रस्तुत है आप सभी के लिए डॉ. सुनील जोगी की प्रसिद्ध कविता, "हाय-बाय छोड़कर के राम-राम बोलिए"....।

राम जी के नाम को ना तराजू पे तोलिए
हाय-बाय छोड़कर के राम-राम बोलिए

खुद ही अपनेआप अपनी संस्कृति मिटा रहे
क्लबों में केक काट कर जन्मदिन मना रहे

गन्ना रस और मट्ठा छोड़ कोक पी रहे हैं हम
पिज्जा-पास्ता मोमोज खा कर जी रहे हैं हम

धीरे-धीरे शतायु से अल्पायु हो लिए
हाय-बाय छोड़कर के राम-राम बोलिए

चाचा-ताऊ छोड़ अंकल-आंटी में खो गए
पूज्य माता और पिताजी मोम-डेड हो गए

पाश्चात्य सभ्यता समाज में समा गई
नौकरी मिली नहीं कि गर्लफ्रेंड आ गई

कांधे सब पराये हुए हम अकेले रो लिए
हाय-बाय छोड़कर के राम-राम बोलिए

क्रेडिट कार्ड आ गया तो हम उधार खा रहे
छोड़कर स्वदेशी माल हम चायनीज ला रहे

पड़ोसियों से, भाइयों से बातचीत बंद है
क्योंकि अब फेसबुक-व्हाट्सऐप पसंद है

प्रेम छोड़ कर नफरतें दिल में ना घोलिए
हाय-बाय छोड़कर के राम-राम बोलिए

शत्रुओं के बीच मित्र राम ने बना लिए
प्रेम था तो भीलनी के झूठे बेर खा लिए

आदिवासियों में प्रेम राम ने उगा दिया
हनुमानजी ने सीना चीर के दिखा दिया

पाप कर रहे या पुण्य खुद को भी टटोलिए
हाय-बाय छोड़कर के राम-राम बोलिए।

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