प्रेम का आलिंगन सभी दुर्भावनाओं को दूर कर देता है...!

आवारगी में हम कुछ यूँ दीवाने हो गए,
तेरी मोहब्बत में ख़ुद से बेगाने हो गए।
यूँ तो नादानियों का पुतला हुआ करते थे मगर,
ये तेरा जादू है हम वक्त से पहले सयाने हो गए।।

आज माघ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि है और साथ ही आज 12 फरवरी है। जैसा कि आज के दिन को वैलेंटाइन वीक में हग डे यानि आलिंगन दिवस। जब "आलिंगन" शब्द या दिवस संकीर्णता को धारण करता है तो यह बहुत ही सिमित और संकुचित हो जाता है, मगर जब यह विस्तार पाता है तो इसमें सकल विश्व समा जाता है। "आलिंगन" सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि यह अभिव्यक्ति है अपने अंतर-भावों की, यह अभिव्यक्ति है प्रेम की, यह अभिव्यक्ति है करुणा की, यह अभिव्यक्ति है आत्मिक चेतना की और यह अभिव्यक्ति है संवेदना की।

जब प्रभु श्रीराम अपने चौदह वर्षों का वनवास पूर्ण कर अयोध्या वापस आए तो उन्हें देख कर भरत जी ने उनके चरण-कमल को पकड़ लिए और पृथ्वी पर पड़े रहे। तब श्रीरामचंद्र जी ने ज़बरदस्ती भरत जी को उठाया और गले से लगा लिया अर्थात उनका आलिंगन किया।

परे भूमि नहिं उठत उठाए। बर करि कृपासिंधु उर लाए॥
स्यामल गात रोम भए ठाढ़े। नव राजीव नयन जल बाढ़े॥

वहीं इसके पूर्व जब सीता जी को ढूंढते हुए श्रीराम-लक्ष्मण जब ऋष्यमूक पर्वत के पास पहुँचे तो वहाँ जब हनुमान जी उनकी जाँच-पड़ताल कर ली और जब उन्हें पता चला कि वह स्वयं श्रीराम चन्द्र जी हैं तो हनुमान जी अपने मूल रूप में आ गए और उनके चरणों में गिर पड़े। तब श्रीराम चन्द्र ने उन्हें उठा कर उनका आलिंगन किया और अपने नेत्रों के जल से उन्हें शांत किया।

अस कहि परेउ चरन अकुलाई। निज तनु प्रगटि प्रीति उर छाई॥
तब रघुपति उठाई उर लावा। निज लोचन जल सींचि जुड़ावा॥

वहीं जब श्रीकृष्ण से मिलने उनके सखा सुदामा आए तो श्रीकृष्ण ने बिना किसी लोकलाज या संकोच के अपने मित्र को अपने गले से लगा कर अपने बराबर में बिठा कर उनके चरणों को अपने अश्रुओं के जल से धोए थे।

असल में तो प्रकृति भी हमारा आलिंगन करते हुए ही हमें अपने भावों से सींचती है, तभी तो हम सुख-दुःख, पीड़ा, आनंद आदि की अनुभूति कर पाते हैं। आज आलिंगन दिवस के मौके पर पेश है प्रेम के कवि कहे जाने वाले डॉ. विष्णु सक्सेना की ये कविता "संग मेरे हँसोगे ये उम्मीद है"...।

संग मेरे हँसोगे ये उम्मीद है।
साथ ग़म में भी दोगे ये उम्मीद है।

दिन ढला रात ले आयी तन्हाईयाँ
तुम भी तारे गिनोगे ये उम्मीद है।

हाथ उठाओ हर एक की मदद के लिए
तुम भी फूलो फलोगे ये उम्मीद है।

वक़्त जैसा भी हो राह कोई भी हो
तुम सम्हल कर चलोगे ये उम्मीद है।

मन से धागा हूँ मैं तन से हो मोम तुम
मैं जलूँ तो गलोगे ये उम्मीद है,

उम्रभर तुमको मैं यूँ ही बाचूँगा पर,
तुम भी मुझको सुनोगे ये उम्मीद है।।

Leave a Reply



comments

Loading.....
  • No Previous Comments found.