जानें कानपुर के धनकुबेर पीयूष जैन की पूरी फिल्मी कहानी, हर सवाल का यहां मिलेगा जवाब

मां गंगा के किनारे पसरा है एक शहर जिसका नाम है कानपुर ..ये शहर अपने उद्योगों के चलते एक अलग पहचान बनाए हुए है.. इसलिए एक समय कानपुर को पूरब का मैनचेस्टर कहा जाता था.. ये शहर हमेशा से ही मिजाज से बगावती रहा है.क्योंकि 1857 की क्रांति में इस शहर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी,...इसी शहर में इंजीनियरिंग की दुनिया में का सरताज आईआईटी भी है जिसका यहां के लोगों को बड़ा नाज है.यानी कि देखा जाए तो कानपुर को अपने उपर फर्क करने के लिए काफी कुछ है .इससे जुड़े कन्नौज की भी अपनी खासियत है ... लेकिन बीते कुछ दिनों में कानपुर में इत्र की ऐसी खुशबू फैली है दो शायद अब हमेशा के लिए यहां कि पहचान बन जाएगी .. क्योंकि इन दोनों शहरों को इनकी खासियतों के बजाय अब एक शख्सियत की वजह से जाना जाएगा और ये शख्स है - पीयूष जैन...ये एक ऐसा नाम है जिसे एक महिने पहले तो कानपुर वाले भी नहीं जानते थे लेकिन आज आलम देखिए पूरा देश इस नाम से वाकिफ है . इत्र कारोबारी पीयूष जैन के कानपुर और कन्नौज स्थित ठिकानों पर हुई छापेमारी ने इस दिसंबर में खूब सुर्खियां बटोरीं. इस व्यवसायी के घर न केवल करोड़ों की नकदी बल्कि सोने के बिस्किट और बहुमूल्य चंदन का तेल भी बरामद हुआ था. कानपुर में हुई सीबीआइसी के इतिहास में सबसे बड़ी छापेमारी थी. इस पूरे प्रकरण के बाद से कई सवाल अभी तक बने हैं.. जैसे कि पीयूष जैन  के पास आखिर इतनी ज्यादा तादात में नोट कैसे लाए जाते थे, बरामद नोटों का क्या स्रोत है, छापे की शुरुआत कैसे हुई, किन-किन लोगों पर अब तक छापेमारी की कार्रवाई हुई और क्या वाकई पीयूष जैन का समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव से कोई संबंध है ? और सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि पीयूष जैन के घर से जब्त की गई रकम का आखिर होगा क्या? तो चलिए आज की हमारी खास रिपोर्ट में इस पूरे सनसनीखेज मामले के सवालों के जवाबों को ढूढने की कोशिश करेगें -

कानपुर का नटवरलाल और इतिहास की सबसे बड़ी छापेमारी का संबध किसी फिल्म की स्टोरी से कम नहीं लगता है लेकिन इस छापेमारी के किसी निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए हमें इसके हर पन्ने को खंगालना होगा ... मामले की तह में जाने से पहले एक सवाल का जबाब  जानना जरूरी है और पहला सवाल है कि

आखिर छापेमारी की शुरुआत हुई कैसे?

दरअसल इसकी कहानी वो है जो आपने सोची ही नहीं होगी .. सच तो ये है कि जीएसटी इंटेलीजेंस की टीम ने सबसे पहले गुजरात में पान मसाला लदे चार ट्रक पकड़े थे.. ये ट्रक कानपुर के ट्रांसपोर्ट नगर में गणपति रोड कैरियर ट्रांसपोर्ट कंपनी के थे, ऐसा जांच में सामने आया है .. ट्रक में माल के जो इनवाइस पेपर मिले वो भी फर्जी निकले और तो और उनके ई-वे बिल भी जारी नहीं किए गए थे. बाद में पता चला कि ट्रक में लदा पान मसाला कानपुर में ट्रांसपोर्ट नगर स्थित त्रिमूर्ति फ्रेगरेंस प्राइवेट लिमिटेड का है और टीम को जांच के दौरान पता चला कि इत्र कारोबारी पीयूष पान मसाला कंपनी को अपना एसेंस सप्लाई करते हैं...बस फिर क्या था .....निशाने पर आ गए पीयूष जैन और उनके घर की दीवारें उगलने लगीं नोट...फिर पीयूष जैन के कन्नौज वाले अड्डों पर भी छापेमारी की गई ...यानी कि अहमदाबाद से शुरू हुई कहानी कन्नौज की गलियों तक आ पहुंच गई ...जिसके बाद ये सवाल उठता है कि

जब ये पूरी कार्यवाही पान मसालों की छापेमारी से शुरू  हुई थी तो फिर अचानक केवल इत्र की खुशबू पर कैसे अटक गई ..और तो और पीयूष जैन को कैसे समाजवादी पार्टी से जोड़ दिया गया ?

तो इसका सीधा सा जवाब ये है कि राजनीतिक खेमों की मानें तो ऐसा कहा जा रहा है कि पान मसाला के मालिकों का भारतीय जनता पार्टी से संबंध रहा है, इसी लिए इस मामले को दबा दिया गया और इत्र की खुशबू को समाजवादियों  से जोड़ने का प्रयास किया गया … अब दूसरा सबसे बड़ा सवाल था कि -

पीयूष जैन की दीवारों ने जिस नगदी का उगला वो लाई कहां से जाती थी ?

इसका जबाव है कि काले धन के कुबेरों ने कमाई के लिए गजब का हथकंडा अपना रखा था. पान मसाला कारोबारी अपने माल को उन राज्यों में चोरी छिपे भेजते थे, जहां पान मसाला पूरी तरह से बैन किया गया था. आपूर्ति का भुगतान कैश में लेकर ट्रक में लाए जाते थे. इस पूरी प्रक्रिया में पीयूष जैन का घर का रकम रखने के लिए होता था. कानपुर से बरामद नोटों की गड्डियां छापेमारी से पहले 20 से 25 दिन के अंतराल में ही वहां लाई गई थीं.

यानी की इस पूरे प्रकरण का निष्कर्ष ये निकलता  है कि ट्रांसपोर्टर प्रवीण जैन के घर मिले डॉक्यूमेंट के आधार पर 22 दिसंबर को पीयूष जैन के ठिकानों पर छापे मारे गए.उनके घर से इतनी भारी मात्रा में कैश मिला, जिसे देखकर डी.जी.जी.आई अधिकारियों के भी होश उड़ गए. कैश मिलने के बाद 22 दिसंबर को ही इनकम टैक्स के अधिकारियों को भी कार्रवाई में शामिल किया गया.भारी मात्रा में कैश बरामद होने के बाद 23 दिसंबर को देर रात डीजीजीआई ने प्रेस नोट जारी कर पीयूष जैन के घर से 150 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम बरामद होने की जानकारी दी. पीयूष जैन ने ओडोकेम इंडस्ट्रीज के नाम से फर्म बना रखी थी.. इसका टर्नओवर 7 करोड़ रुपए और 15 लाख रुपए आईटीआर फाइल किया गया है.

पीयूष जैन को गिरफ्तारी के बाद काकादेव थाने लाया गया था..जिसके बाद कोर्ट में पीयूष ने ऐसी बात कह दी थी जो कि समझ से बाहर थी .. पीयूष ने कहा था कि बरामद राशि उसी की है, उसने कोर्ट में टैक्स चोरी किए जाने की बात को कुबूल किया था, लेकिन उसकी मांग थी कि 52 करोड़ टैक्स काटकर उसका बाकी रुपया वापस किया जाए..लेकिन अब विशेषज्ञ कहते हैं कि जब्त रकम से पीयूष जैन को कुछ भी वापस नहीं मिलेगा, बल्कि अपनी जेब से और जुर्माना भरना पड़ेगा..

यानी कि देखा जाए तो देश में सेंट्रल जीएसटी की अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई के केंद्र में  बैठे पीयूष जैन का नाम पहले देश तो क्या कानपुर में भी कम ही लोग जानते थे. लेकिन 21 दिसंबर से शुरू हुई सेंट्रल जीएसटी की कार्रवाई में जो परतें खुलनी शुरू हुईं, वो अब तक खुल ही रही हैं. किसने सोचा था कि कानपुर के कन्नौज का एक छोटा सा व्यापारी आखिर कुछ सालों में   'धनकुबेर' जाएगा ...पीयूष जैन के बिस्तर से लेकर दीवारों तक ने नोट उगले ..इसीलिए इस घटना ने इतिहास में एक नए नटवरलाल को जोड़ दिया है.

 

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