ये राज़ है मेरी ज़िंदगी का, पहने हुए हूँ कफ़न खुदी का-

असग़र गोंडवी का नाम ऐसे शायरों में शुमार है जिनकी लिखी हुई शायरी और ग़ज़लें बिना अल्फ़ाज़ों को किसी कठिनाई में रखे सीधे तौर पर पाठकों के दिल में अपनी जगह बना लेती है। ऐसे शायर की कुछ ग़ज़लें आज सी न्यूज़ भारत के साहित्य में हम आपके लिए लेकर आये हैं...

ये राज़ है मेरी ज़िंदगी का,
पहने हुए हूँ कफ़न खुदी का।

फिर नश्तर-ए-गम से छेड़ते हैं,
इक तर्ज़ है ये भी दिल दही का।

ओ लफ्ज़-ओ-बयाँ में छुपाने वाले,
अब क़स्द है और खामोशी का।

मारना तो है इब्तदा की इक बात,
जीना है कमाल मुंतही का।

हाँ सीना गुलों की तरह कर चाक,
दे मार के सबूत ज़िंदगी का।।

ये मुझ से पूछिए क्या जूस्तजू में लज़्ज़त है,
फ़ज़ा-ए-दहर में तहलियल हो गया हूँ मैं।

हटाके शीशा-ओ-सागर हुज़ूम-ए-मस्ती में,
तमाम अरसा-ए-आलम पे छा गया हूँ मैं।

उड़ा हूँ जब तो फलक पे लिया है दम जा कर,
ज़मीं को तोड़ गया हूँ जो रह गया हूँ मैं।

रही है खाक के ज़र्रों में भी चमक मेरी,
कभी कभी तो सितारों में मिल गया हूँ मैं।

समा गये मेरी नज़रों में छा गये दिल पर,
ख़याल करता हूँ उन को कि देखता हूँ मैं।।

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