कम लागत में बेल के रोगों का समाधान: किसान जरूर जानें ये टिप्स

बेल (Aegle marmelos) एक औषधीय और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण फल है जिसकी खेती भारत में कई राज्यों में की जाती है। लेकिन इसकी खेती में कई रोग फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। अगर समय रहते इनका प्रबंधन न किया जाए, तो उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है। हम जानेंगे बेल की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग, उनके लक्षण, और उनका जैविक एवं रासायनिक नियंत्रण।

1. पत्तियों का झुलसा रोग (Leaf Blight)

लक्षण:

पत्तियों पर भूरे-काले धब्बे

पत्तियाँ सूखकर गिरने लगती हैं

कारण:

फफूंद Alternaria spp. या Cercospora spp. के कारण

नियंत्रण:

जैविक – नीम तेल का छिड़काव (5ml/L पानी)
रासायनिक – मैनकोजेब या कार्बेन्डाजिम (0.2%) का छिड़काव 10-15 दिन के अंतराल पर

2. जड़ सड़न (Root Rot)

लक्षण:

पौधे मुरझाने लगते हैं

जड़ें सड़ जाती हैं और बदबू आने लगती है

कारण:

Fusarium या Rhizoctonia फफूंद

नियंत्रण:

जैविक – ट्राइकोडर्मा विरीडे का उपयोग मिट्टी में मिलाकर
रासायनिक – कार्बेन्डाजिम + थिरम का घोल जड़ों के आसपास डालना

3. पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery Mildew)

लक्षण:

पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद चूर्ण जैसा पदार्थ

धीरे-धीरे पत्तियाँ मुरझाकर गिर जाती हैं

नियंत्रण:

जैविक – गौमूत्र आधारित स्प्रे या नीम खली का छिड़काव
रासायनिक – सल्फर आधारित फफूंदनाशी (0.1%) का छिड़काव

4. झुलसन रोग (Dieback or Twig Blight)

लक्षण:

शाखाएं ऊपर से सूखने लगती हैं

नई बढ़वार प्रभावित होती है

नियंत्रण:

जैविक – संक्रमित भागों की छंटाई और नष्ट करना
रासायनिक – कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3%) का छिड़काव

रोग प्रबंधन के सामान्य सुझाव:

खेत में जल निकासी की व्यवस्था रखें

रोगमुक्त और प्रमाणित पौध सामग्री का ही उपयोग करें

फसल चक्र (Crop Rotation) अपनाएँ

नियमित रूप से फसल का निरीक्षण करें

जैविक और रासायनिक दोनों उपायों का संतुलित उपयोग करें

बेल की फसल में रोगों की पहचान और समय पर उचित नियंत्रण आवश्यक है। जैविक उपाय पर्यावरण और मिट्टी के लिए सुरक्षित होते हैं, जबकि रासायनिक उपाय त्वरित परिणाम देते हैं। दोनों का संयोजन कर किसान बेहतर उत्पादन और फसल की गुणवत्ता सुनिश्चित कर सकते हैं।

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