"अग्निपथ" विपरीत परस्थितियों में भी डट कर खड़े रहने के लिए प्रेरित करती हुई हरिवंशराय बच्चन की बहरीन रचना

अक्सर इंसान छोटी - छोटी हार पर विचलित  हो उठता है यह जानते हुए भी कि मंजिल तक पहुंचें के लिए कठिनाईयों का सामना करना अनिवार्य है .लेकिन एक ही हार पर आगे बढ़ने से रुकने लगता है और मंजिल की तरफ अग्रसर होने के बजाय अपने कदम पीछे खीचने लगता है .ऐसे वक्त जरूरत होती है किसी के सहारे की ,जो उसे आगे बढ़ते रहेने के लिए प्रेरित करें और उसके अंदर उर्जा का पुनः संचार करने जिससे कि वह अपनी मंजिल को हांसिल करने में सफलता प्राप्त कर सके .ऐसे ही टूटे हुए, निराश, हताशा लोगों के मनोबल को बढ़ाने के लिए हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित बेहतरीन रचना जो अग्निपथ रुपी जीवन के रास्ते पर चलाना सिखा रही है .

अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
वृक्ष हों भलें खड़े, 
हों घने, हों बड़ें, 
एक पत्र-छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत! 
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ! 
तू न थकेगा कभी! 
तू न थमेगा कभी! 
तू न मुड़ेगा कभी!—कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ! 
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ! 
यह महान दृश्य है— 
चल रहा मनुष्य है 
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ! 
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ! 

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