जब अमित शाह ने बदला अपना ईमेल: क्या यह केवल तकनीकी बदलाव है या कोई बड़ा संकेत?

भारत के गृह मंत्री अमित शाह का नाम जब सुर्खियों में आता है, तो अक्सर बात होती है नीतियों, रणनीतियों या चुनावी समीकरणों की। लेकिन इस बार चर्चा एक ईमेल सेवा को लेकर है। हाल ही में अमित शाह ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि वे अब Zoho Mail का उपयोग करेंगे और अपना ईमेल एड्रेस बदल चुके हैं। यह बदलाव सिर्फ एक नया ईमेल पता अपनाने का मामला नहीं है, बल्कि इससे कहीं गहरी परतें जुड़ी हैं — तकनीक, आत्मनिर्भरता और डिजिटल संप्रभुता की।

एक ईमेल का संदेश

शाह ने सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों को सूचित किया कि अब उनके साथ ईमेल पर संपर्क का नया माध्यम होगा — एक भारतीय कंपनी द्वारा संचालित Zoho Mail। यह कदम उन सरकारी नेताओं की बढ़ती सूची में एक और नाम जोड़ता है, जिन्होंने विदेशी ईमेल सेवाओं से दूरी बनाकर स्वदेशी तकनीक को अपनाया है।

सवाल है — क्या यह केवल एक निजी पसंद है, या इसके पीछे कोई सुविचारित नीति है?

Zoho की ओर रुख क्यों?

Zoho, एक चेन्नई-आधारित सॉफ़्टवेयर कंपनी है, जिसने पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक स्तर पर पहचान बनाई है। यह कंपनी ईमेल से लेकर अकाउंटिंग, CRM, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट और कई अन्य तकनीकी सेवाएं प्रदान करती है। खास बात यह है कि यह पूरी तरह से भारतीय है — न विदेशी निवेश, न डेटा विदेश भेजने की मजबूरी, न किसी अंतरराष्ट्रीय निगरानी एजेंसी की चिंता।

Zoho Mail एक सुरक्षित, विज्ञापन-मुक्त और डेटा गोपनीयता पर केंद्रित सेवा है। सरकारी संचार में इन पहलुओं का विशेष महत्व है। शायद यही वजह है कि अब Zoho सिर्फ एक विकल्प नहीं, बल्कि एक रणनीतिक निर्णय बनता जा रहा है।

क्या यह 'डिजिटल आत्मनिर्भरता' की दिशा में कदम है?

जब देश के शीर्ष मंत्री विदेशी तकनीकी सेवाओं के बजाय घरेलू समाधान अपनाने लगते हैं, तो यह संकेत होता है — कि देश तकनीकी आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। डिजिटल युग में सिर्फ सड़कों और पुलों का निर्माण काफी नहीं होता, डेटा इन्फ्रास्ट्रक्चर भी उतना ही आवश्यक है।

ऐसे में अमित शाह का यह कदम एक नीतिगत संकेत भी हो सकता है — कि भारत अब अपनी डिजिटल सीमाओं की भी रक्षा करना चाहता है। जैसे भौगोलिक सीमाओं की सुरक्षा सेना करती है, वैसे ही डेटा सीमाओं की सुरक्षा डिजिटल स्वदेशीकरण के माध्यम से हो सकती है।

इससे पहले कौन-कौन शामिल हो चुके हैं?

अमित शाह से पहले रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान जैसे वरिष्ठ मंत्री भी Zoho Mail का उपयोग शुरू कर चुके हैं। यह एक संयोग नहीं है। यह दर्शाता है कि केंद्र सरकार के भीतर तकनीक को लेकर सोच बदल रही है। अब केवल विदेशी नामों पर निर्भर रहना एकमात्र रास्ता नहीं है।

क्या यह बदलाव सबके लिए जरूरी है?

यह जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति आज ही अपने ईमेल को Zoho या किसी अन्य स्वदेशी सेवा पर स्थानांतरित कर दे। लेकिन यह बदलाव एक विमर्श को जन्म देता है — कि हमें तकनीकी आत्मनिर्भरता को केवल स्लोगन तक सीमित नहीं रखना चाहिए। उपयोग में लाना, भरोसा करना और अपनाना — यही असली आत्मनिर्भरता है।

अमित शाह द्वारा Zoho Mail को अपनाना सिर्फ एक ईमेल सेवा का चुनाव नहीं है। यह एक संदेश है — एक नए सोच की शुरुआत, जिसमें भारत तकनीक के हर स्तर पर स्वतंत्र और स्वावलंबी बनने की दिशा में अग्रसर है। यह फैसला बताता है कि डिजिटल दुनिया में भी नीतिगत फैसले उतने ही गंभीर और दूरदर्शी होते हैं, जितने सीमाओं पर लिए जाने वाले निर्णय।शायद आने वाले समय में यह एक सामान्य बात लगने लगे — लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में, यह एक साहसी और प्रेरणादायक कदम है 

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