'धीरे-धीरे जगहें छूट रही हैं'

"अनामिका "एक हिंदी भाषा की जानीमानी कवयित्री हैं.  समकालीन हिन्दी कविता की चंद सर्वाधिक चर्चित कवयित्रियों में वे शामिल की जाती हैं. वे आधुनिक समय में हिन्दी भाषा की प्रमुख कहानीकार और उपन्यासकार हैं. तो चलिए अनमिका की इस कविता को पढ़ते हैं..

धीरे-धीरे जगहें छूट रही हैं,
बढ़ना सिमट आना है वापस - अपने भीतर !

पौधा पत्ती-पत्ती फैलता
बच जाता है बीज-भर,
और अचरज में फैली आँखें
बचती हैं, बस, बूंद-भर।

छूट रही है पकड़ से
अभिव्यक्ति भी धीरे-धीरे!
किसी कालका-मेल से धड़धड़ाकर
सामने से जाते हैं शब्द निकल!

एक पैर हवा में उठाए,
गठरी ताने
बिल्कुल अवाक खड़े रहते हैं

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