जेल में बाहुबली, मैदान में राजनीति: मोकामा का चुनावी संग्राम
बिहार की सियासत में फिर एक बार हलचल मच गई है...मोकामा से बाहुबली नेता अनंत सिंह की गिरफ्तारी ने पूरे चुनावी माहौल को हिला दिया है। चुनाव बिलकुल सिर पर हैं, और ऐसे वक्त पर ये गिरफ्तारी कई सवाल खड़े कर रही है कि क्या ये सच में कानून का राज है, या फिर चुनावी चाल? जी हां अनंत सिंह पर आरोप है कि उन्होंने राजद कार्यकर्ता दुलारचंद यादव की हत्या करवाई, जो जनसुराज पार्टी के लिए प्रचार कर रहे थे। लेकिन गिरफ्तारी के बाद मोकामा का माहौल पूरी तरह बदल गया है...कोई इसे साजिश बता रहा है, तो कोई इसे न्याय की जीत कह रहा है। ऐसे में अब सवाल ये है कि क्या जेल जाने से अनंत सिंह कमजोर पड़ेंगे, या मोकामा की जनता उन्हें और मज़बूत बना देगी? और क्या ये चुनाव अब ‘बाहुबली बनाम सरकार’ की जंग बन गया है? आइए जानते हैं...
मोकामा विधानसभा की सियासत इन दिनों उफान पर है और इसकी वजह है एक गिरफ्तारी, जिसने पूरे बिहार की राजनीति को हिला दिया है। जी हां जेडीयू के उम्मीदवार और बाहुबली नेता अनंत सिंह को गिरफ्तार किया गया है। उन पर राजद कार्यकर्ता दुलारचंद यादव की हत्या का आरोप है। आपको बता दें ये हत्या उस वक्त हुई, जब दुलारचंद जनसुराज के लिए प्रचार कर रहे थे। लेकिन ये गिरफ्तारी सिर्फ एक आपराधिक केस नहीं है बल्कि इसके पीछे गहरी सियासी बिसात बिछी है। मोकामा में अनंत सिंह का दबदबा बीते दो दशकों से कायम है। ‘छोटे सरकार’ के नाम से मशहूर अनंत सिंह की मौजूदगी हमेशा चुनावी फिज़ा को अपने रंग में रंग देती है। लेकिन इस बार जब वो जेल के अंदर हैं और अब मैदान में उनकी पत्नी नीलम देवी हैं, जिन्होंने कमान संभाल ली है। नीलम देवी के साथ जेडीयू के दिग्गज नेता और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह भी डट गए हैं और उनका बयान सुर्खियों में है। जी हां उनका बयान है कि मोकामा में हर आदमी अनंत सिंह है।
वहीं दूसरी तरफ अगर मोकामा की राजनीति की बात करें तो मोकामा में जातीय संतुलन सबसे बड़ा फैक्टर है। अनंत सिंह भूमिहार समुदाय से हैं यानी ‘अगड़े वर्ग’ से। वहीं हत्या में मारे गए दुलारचंद यादव पिछड़े वर्ग से थे। और यही बात इस केस को सियासी रूप से बड़ा बनाती है। वहीं राजद ने इस घटना को 'अगड़ा बनाम पिछड़ा' की लड़ाई में बदलने की कोशिश की। वहीं, प्रशासन ने गिरफ्तारी की टाइमिंग और तरीका ऐसा रखा कि ये संदेश जाए कि कानून सबके लिए बराबर है। यही वजह है कि अनंत सिंह के साथ उनके करीबी ओबीसी वर्ग के मणिकांत ठाकुर और दलित समुदाय से रणजीत राम दोनों को भी गिरफ्तार किया गया। मतलब, यह सिर्फ एक बाहुबली की गिरफ्तारी नहीं थी बल्कि यह एक राजनीतिक संदेश भी था। दूसरी तरफ, जनसुराज के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी जो धानुक जाति से हैं, अब एक नए सियासी गणित में फंस गए हैं। धानुक वोटर्स परंपरागत तौर पर जेडीयू के साथ रहे हैं, लेकिन इस हत्या केस में धानुक जाति का नाम आने से ये वोट बैंक अब बिखर सकता है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो अनंत सिंह की गिरफ्तारी से मोकामा का चुनाव अब व्यक्ति बनाम व्यवस्था की लड़ाई बन गया है। एक तरफ सरकार कानून के राज का संदेश देने में जुटी है, तो दूसरी तरफ अनंत सिंह के समर्थक इसे अन्याय के खिलाफ जनता की लड़ाई बता रहे हैं। और दिलचस्प बात यह है कि कि अनंत सिंह जितना फायदा जेल में रहकर चुनाव लड़ने में पाते हैं, उतना शायद बाहर रहकर नहीं। क्योंकि अब उनके समर्थक इसे शहादत और साजिश दोनों के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। मोकामा की ये लड़ाई अब सिर्फ वोट की नहीं, सम्मान और स्वाभिमान की लड़ाई बन चुकी है। परिणाम चाहे जो भी हो, लेकिन इतना तय है कि अनंत सिंह जेल में हैं, लेकिन मोकामा का चुनाव उनके ही नाम पर लड़ा जा रहा है।
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