डॉक्टर मुरलीधर पूर्व सूचना निदेशक एवं भगवान परशुराम पर विशेष लेख

अयोध्या - इन्होंने समस्त क्षत्रियों का संघार  कभी नहीं किया था महर्षि विश्वामित्र परशुराम जी के मामा थे तथा परशुराम जी महर्षि भृगु के खानदान में ब्रह्मा के ब्रह्मा के छठवें पीढ़ी में थे भगवान परशुराम की पूजा हनुमान जी की पूजा की तरह जल्दी फल देने वाली है मेरे द्वारा अपने संतानों की शादी परशुराम जी से प्रेरित होकर हीअक्षय तृतीया को की गई डॉक्टर मुरलीधर सिंह शास्त्री अधिवक्ता माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद एवं लखनऊ पूर्व अधिकारी भारत सरकार एवं राज्य सरकार उत्तर प्रदेश 29 अप्रैल लखनऊ एवं अयोध्या 2025 अक्षय तृतीया को सभी को बधाई भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठवें अवतार थे उन पर विशेष लेख भगवान परशुराम द्वारा यदि समस्त क्षत्रियों का संघार किया  जाता तो छतरियां कहां से कहां से होते हैं केवल उन्होंने एक विशेष गोत्र या वंश है है वंश के क्षत्रियों का ही संघार किया था क्योंकि परशुराम जी की मां एवं दादी दोनों  क्षत्रिय समाज से आई थी फिर क्षत्रिय  का कैसे संघार किया फिर अयोध्या का राज्य मथुरा का राज्य त्रेता युग में राज कैसे बचे इस इन बातों को श्रीमद् भागवत एवं महाभारत के आधार पर विशेष लेख अर्पित है अक्षय तृतीया तिथि को त्रेता युग का आरंभ होना  महाभारत की रचना का प्रारंभ होना माता गंगा का भगवान शंकर केस से मुक्त होना तथा भृगु  पौत्र महर्षि परशुराम का जन्म लेनl द्रोपदी के चीर हरण से रक्षा करना कृष्ण सुदामा का मिलन मिल ना हमारे भारतीय संस्कृत में व्यापक महत्व है इस दिन भगवान विष्णु के छठवें अवतार श्री परशुराम जी का जन्म हुआ था परशुराम जी के बारे में यह भ्रांतियां हैं कि उन्होंने क्षत्रियों का 21 बार संघार किया था यह तथ्य श्रीमद् भागवत महाभारत विष्णु पुराण पढ़ने के बाद विशेष कर महाभारत के आदि पर्व में इसका विशेष उल्लेख है भगवान परशुराम ब्रह्मा जी के मानस पुत्र भृगु जी के खानदान में पांचवें नंबर पर थे भृगु जी के पुत्र का नाम ऋषि; के  रिचक ऋषि  ;तथा  उनके ,,पुत्र का नाम  जमदग्नि ऋषि तथा जमदग्नि ऋषि एवं रेणुका के संजोग से पांचवें पुत्र थे महाराजा प्रसेनजीत जो उसे समय अवध के राजा थे उनकी बेटी थी तथा जब जबकि उनकी दादी मां सत्यवती  राजर्षि ब्रह्म ऋषि  विश्वामित्र जी की बहन थी इनका जन्म भृगु क्षेत्र अर्थात बलिया गाजीपुर मऊ क्षेत्र में हुआ था मऊ क्षेत्र गाजीपुर क्षेत्र तत्कालीन विश्वामित्र जी के पिता राजा Gadhi की राजधानी थी  सभी क्षेत्र गंगा जी के किनारे चाहे भृगु क्षेत्र बलिया हो@ बक्सर हो गाजीपुर हो सभी गंगा के तट पर ही घटनाएं हुई  इस लिए उसका नाम गाजीपुर पड़ा महाराज महर्षीरीचक ने राजा गांधी से उनकी पुत्री की याचना की और राजा गाधी ने उनको अपनी पुत्री सत्यवती को सौंप दिया था सत्यवती के सेवा भाव से भृगु ऋषि प्रसन्न हुए तथा उन्होंने बर मांगने को कहा तो  सत्यवती ने अपने लिए एवं अपनी मांअर्थात राजा गादी की पत्नी के लिए भी पुत्र होने का वर मांगा महर्षि भृगु ने आशीर्वाद दिया तथा पिंड दिया उसे पिंड के अदला बदली होने से क्षत्रिय  कुल में उत्पन्न महर्षि विश्वामित्र हुए तथा ब्राह्मण कुल में उत्पन्न परशुराम जी क्षत्रिय गुन से आख्यातित हुए महर्षि परशुराम जी भगवान शंकर के अनन्य भक्त थे इनका प्रारंभिक नाम श्री राम था बाद में शंकर जी द्वारा इनको इनको  फरसा दिया गया था इससे इनका नाम परशुराम पड़ा पूर्वांचल में विशेष रूप से क्षत्रिय वंश का एक गोत्र हाय-हाय वंश है इस वंश में सहस्त्र अर्जुन  रूप के राजा हुए थे जो महाराज दत्तात्रेय जी के भक्त थे दत्तात्रेय जी ने उनको सर्व कlल विजई होने का आशीर्वाद दिया था वह एक बार महर्षि  जमदग्नि के आश्रम में आए और माता रेणुका ने उनका सम्मान किया उनके साथ कामधेनु के प्रभाव से उनका आदर सत्कार हुआ नंदिनी के पीछे  में राजा सहस्त्र अर्जुन पड़ गए और महर्षि से विवाद हो गया तथा इन्होंने महर्षि जमदग्नि को मार डाला जब परशुराम जी साधना के उपरांत आए तो अपार क्रोध हुआ उन्होंने प्रण लिया कि मैं है-है वंश के क्षत्रियों का नlस करूंगा और उन्होंने है-है वंश के ही क्षत्रियों का तथा उनके सहयोग में खड़े हुए राजाओं का एक २१ बार मान मर्दन किया था तथा उनकी जीती हुई भूमि को ब्राह्मणों को दान दे दिया था तथा जो ब्राह्मण खेती गृहस्ती में रुचि रखें वही भूमिहार कहलाए एवं इनमें क्षत्रिय और ब्राह्मण दोनों का गुण पाया जाता है अब पूर्वांचल में ज्यादा जो ब्राह्मण खेती गृहस्ती करते थे वही ब्राह्मण भूमिहार ब्राह्मण एवं भूमिहार kashtry कहलाए इनका विशेष रूप से निवास क्षेत्र  जनसंख्या उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में और बिहार के पश्चिमी भाग एवं मध्य भाग में स्थित है अर्थात परशुराम जी से ही भूमिहारों की उत्पत्ति हुई और उन्हीं के द्वारा यह वर्ण व्यवस्था में पोषित हुए परशुराम जी सप्त ऋषियों में अमर हैं सप्त संत इसमें परशुराम जी हैं हनुमान जी हैं विभीषण की हैं कृपाचार्य जी हैं अश्वत्थामा की हैं राजा बलि की हैं महर्षि व्यास जी हैं तथा आठवीं अमर में मारकंडे जी का स्थान है परशुराम जी की पूजा विशेष रूप से धारणा बन गई है कि केवल ब्राह्मण लोग करते हैं ऐसा नहीं परशुराम जी ने अपने शिष्यों में स्वयं माता गंगा के कहने पर उनके पुत्रभीष्म को गुरु द्रोण को कृपाचार्य को एवं महारथी कर्ण को भी शिक्षा दिया था तथा काशी राज्य की कन्या से विवाह न करने के कारण महाराज भीष्म से युद्ध भी किया था यह कहना कि राजपूतों का परशुराम जी शत्रु थे यह पूर्णता गलत है त्रेता युग में भगवान राम ने इसे चर्चा किया था तथा अपनी शक्ति का सूत्रपात किया था एवं महेंद्र पर्वत पर रहने का स्थान दिया था इस प्रकार द्वापर कल में भगवान श्री कृष्ण ने इन अनेक बार मुलाकात किया था एवं आशीर्वाद दिया था तथा भगवान श्री कृष्णा जो लीलाधारी थे उनको परशुराम जी ही ने उनका चक्र सुदर्शन देते हुए धरती का भार उतरने को कहा था अर्थात परशुराम जी की दादी परशुराम जी की माता क्षत्रिय परिवार से थी इसलिए इनका क्षत्रियों से कभी विरोध नहीं था जो हैहय क्षत्रिय वंश के लोग है वंश के लोग इनके पिता जब तक उनकी हत्या किए थे तथा नंदिनी का अपमान किए थे उसी का इन्होंने संघार किया था इस संघार को रोकने के लिए इनके दादा महर्षि भृगु के आदेश पर महर्षि रीचक ने रोक लगाई थी यह कहना की परशुराम जी क्षत्रिय विद्रोही थे पूरी गलत है तथा यदि धरती पर ब्राह्मणों का कोई सम्मान किया है या करता है वह क्षत्रिय समाज ही है आजकल राजनीति की दृष्टि से भ्रमित ब्राह्मण एवं क्षत्रिय  भ्रमित समाज अपने प्राचीन गौरव को भूलकर एक दूसरे में लड़ता है तथा राजनीतिक करता है आजकल भारत के संदर्भ में क्षत्रिय एवं ब्राह्मण वर्ण को वैदिक कालीन परंपरा के अनुसार मिलकर काम करने की आवश्यकता है जय हिंद जय सनातन धर्म लेखक डॉ मुरलीधर सिंह शास्त्री इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र नेता रहे हैं तथा केंद्रीय एवं राज सरकार में प्रथम श्रेणी के पद से सेवानिवृत होकर माननीय उच्च न्यायालय में इलाहाबाद में एवं लखनऊ में एक अनुभवी अधिवक्ता के रूप में जन सेवा कर रहे हैं किसी व्यक्ति को यदि शास्त्रार्थ करना हो तो उसका स्वागत है जय हिंद जय राष्ट्रवाद

रिपोर्टर - आईबी सिंह

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