काले धन पर प्रधानमंत्री चुप्प क्यों है,, वफाती मिया

बदायूं  :  जून कांग्रेस के पीसीसी सदस्य चौधरी वफाती मिया ने काले धन पर देश के प्रधानमंत्री से सवाल करते हुए कहा कि 2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय राजनीति ने एक नाटकीय मोड़ लिया था। कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार, घोटाले और वित्तीय अपारदर्शिता के मुद्दे पर जबरदस्त जन असंतोष फैलाया गया था। ऐसे माहौल में गुजरात के मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने जिस एक मुद्दे को सबसे अधिक तूल दिया, वह था  विदेशों में जमा काले धन की वापसी। “हर नागरिक के खाते में ₹15 लाख” वाली बयानबाज़ी  ने जनता के बीच गहरी उम्मीद जगा दी थी कि अब सत्ता में एक निर्णायक सरकार आएगी जो आर्थिक अपराधों, मनी लॉन्ड्रिंग और काले धन पर लगाम कसने में सक्षम होगी। परंतु दस वर्षों बाद — वह आवाज़ एक असहज मौन मे बदल गई है मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही काले धन की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया। यह कदम सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के तहत उठाया गया था। जांच दल का उद्देश्य था — काले धन के स्रोतों का पता लगाना, विदेशों में जमा धन की पहचान करना और देश में उसे वापस लाने की योजना बनाना। परंतु , दस वर्ष बीतने के बाद भी उस SIT की रिपोर्टें या तो अज्ञात हैं, या कार्रवाई के स्तर पर अप्रासंगिक। ना किसी बड़े कॉरपोरेट नाम को सजा मिली, ना किसी राजनेता की संपत्ति जब्त की गई, और ना ही जनता को यह बताया गया कि काले धन के विरुद्ध उठाए गए कदमों का क्या परिणाम हुआ।

यदि यह मान लिया जाए कि सरकार के पास काले धन की कोई सूचना नहीं है, तो इसके दो ही संभावित अर्थ हो सकते हैं:
1. या तो सरकार ने गंभीरता से कोई जांच ही नहीं की,
2. या फिर उसके पास जानकारी थी, लेकिन उसे दबा दिया गया। 
प्रधानमंत्री की चुप्पी अब केवल संकोच या अनभिज्ञता नहीं कही जा सकती। यह एक सोची-समझी रणनीति प्रतीत होती है
 ना 15 लाख आए, ना दोषी जेल गए, और ना कोई नाम सार्वजनिक हुआ।
वास्तव में, जिन लोगों पर गंभीर आरोप लगे — वे आज सत्ता के नज़दीक और आर्थिक शक्ति के शीर्ष पर विराजमान हैं।काले धन पर प्रधानमंत्री  चुप्प क्यों है,,  वफाती मिया मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही काले धन की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया। यह कदम सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के तहत उठाया गया था। जांच दल का उद्देश्य था — काले धन के स्रोतों का पता लगाना, विदेशों में जमा धन की पहचान करना और देश में उसे वापस लाने की योजना बनाना। परंतु , दस वर्ष बीतने के बाद भी उस SIT की रिपोर्टें या तो अज्ञात हैं, या कार्रवाई के स्तर पर अप्रासंगिक। ना किसी बड़े कॉरपोरेट नाम को सजा मिली, ना किसी राजनेता की संपत्ति जब्त की गई, और ना ही जनता को यह बताया गया कि काले धन के विरुद्ध उठाए गए कदमों का क्या परिणाम हुआ।

यदि यह मान लिया जाए कि सरकार के पास काले धन की कोई सूचना नहीं है, तो इसके दो ही संभावित अर्थ हो सकते हैं:
1. या तो सरकार ने गंभीरता से कोई जांच ही नहीं की,
2. या फिर उसके पास जानकारी थी, लेकिन उसे दबा दिया गया। 
प्रधानमंत्री की चुप्पी अब केवल संकोच या अनभिज्ञता नहीं कही जा सकती। यह एक सोची-समझी रणनीति प्रतीत होती है
 ना 15 लाख आए, ना दोषी जेल गए, और ना कोई नाम सार्वजनिक हुआ।
वास्तव में, जिन लोगों पर गंभीर आरोप लगे — वे आज सत्ता के नज़दीक और आर्थिक शक्ति के शीर्ष पर विराजमान हैं।   

रिपोर्टर :  शमसुल हसन

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