रमजान और रोज की अहमियत

बांका : बांका जिले के चांदन नईमी जामा मस्जिद ,गरीब नवाज कमेटी के मौलाना मोहम्मद इम्तियाज कादरी ने अलविदा जुम्मे की नवाज में कहा कि रोजा खामोश इबादत है, जो नुमाइश से बरी है। रमजानुल मुबारक में रोजे रखना इसलाम का तीसरा बुनियादी फरीजा है। मजहब ए इसलाम ने रोजा को एक रुक्नेदीन इस वजह से करार दिया है कि यह इंसानी तारीख और सीरत साजो में अजीम किरदार अदा करता है। जो मुसलमान रोजे के फर्ज होने का इंकार करे वह दायर-ए इसलाम से खारिज हो जाएगा। और जो कोई बगैर उरजे शरई के रोजे छोड़ दे तो वह सख्त गुनाहगार होगा।
उन्होंने कहा अल्लाहतआला फरमाता है की रोजा खालिस मेरे लिए ही है। और मैं ही इसका बदला दूंगा। बंदा अल्लाह की रजा के खातिर अपनी ख्वाहिशात पर काबू पता है। खाना पीना छोड़ता है इसमें किसी किस्म का शाइबा नहीं होता, इसलिए इसमें इबादत का शवाब भी एक खुसूसियत रखता है। रोजा से सब्र और तहम्मुल पैदा होता है। जिसमें कामयाबी का राज छुपा हुआ है। रोजा जिस्म और रुह दोनों की कुव्वत का मूजिब बनता है।रोजा से हमदर्दी,गमख्वारी, खैरख्वाही, और भाईचारगी जैसी आला सिफात पैदा होती है।रोजा मुसलमानों को नज़्म व नसक और अनुशासन की खूब मश्क कराता है।
रिपोर्टर : राकेश कुमार बच्चू
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