सावन माह में लगने वाली श्रावणी मेला, सांप्रदायिक सद्भावना का मिसाल है।

बांका - श्रावणी मेला देशभर के अन्य तीर्थ स्थलों में लगने वाले मेले से बिल्कुल अलग है। विश्व की सबसे बड़े व लंबे मेले के रूप में ख्याति प्राप्त करने वाले श्रावणी मेले की यूं तो कई खासियत है। परंतु इस मेले की सबसे खास बात यह है कि पूरे दो माह के दौरान सावन और भादो मास के यात्री पथ में यह संप्रदायिक सद्भावना का मिसाल पेश करता है। आज जहां देश में जात-पात ,प्रांत के नाम पर नफरत घोलने का काम किया जा रहा है, वहीं सुल्तानगंज से बाबा धाम यात्री पथ में लगातार निरंतर चलने वाले यात्रीगण श्रावणी मेला, दुकानदार भाइयों से, चाहे पुलिस प्रशासन से, चाहे मार्ग पर बैठे दिन दुखियारी के साथ उनका वक्तव्य, विचार -आचरण, उनकी व्यावहारिक कर्म, उनकी वाणी में मिठास खोलते हुए या दर्शाता है कि हम सब एक हैं, हमारी विचार एक है, श्रावणी मेला में बोल बम,बोल बम सांप्रदायिक सौहार्द का पाठ पढ़ाता है। महाव्यापी मेले में देश- विदेश के लगभग 40 से 50 लाख से भी अधिक शिवभक्त सुल्तानगंज से चलकर यात्री पथ होते हुए बाबा नगरी पहुंचते हैं। अधिकांश भक्त सुल्तानगंज स्थित उत्तर वाहिनी गंगा जी से जल लेकर 105 किलोमीटर कांवड़ यात्रा करते हुए बाबाधाम आते हैं। जबकि कुछ भक्त रेलगाड़ी या निजी वाहनों से बाबा धाम पहुंचते हैं। इस पवित्र मेले में जाति- पाति, धर्म, लिंग आदि का भेदभाव मिट जाता है। सभी भगवान शिव की भ्तित में तल्लीन होकर एक शिवभक्त के रूप में शामिल होते हैं। अद्भुत कांवर यात्रा में शामिल होने वाले शिव भक्त,बम, हो जाते हैं। स्त्री हो या पुरुष बूढ़े हो या बच्चे सभी एक दूसरे को बम का कर बुलाते पुकारते हैं। यहां तक यात्री पथ में मिलने वाले मौजूद पुलिस प्रशासन, स्वास्थ्य सुविधा में मौजूद डॉक्टर, नर्स , दुकानदारों को भी चल रहे कांवरियों ने बम ही कहते हैं। मानो यात्री पथ में हर इंसान का नाम बम जी है।
रिपोर्टर -राकेश कुमार बच्चू
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