सूरतगंज ब्लॉक में सीएचओ -पीएसपी सदस्यों ने थामी प्री टास सर्वे की मशाल

बाराबंकी : सूरतगंज ब्लॉक की ज़्यादातर बस्तियाँ गहरी नींद में डूबी थीं। तब कुछ लोग ऐसे भी थे जो अंधेरे में उम्मीद की मशाल लेकर निकल पड़े। जनपद बाराबंकी में फाइलेरिया उन्मूलन के तहत चल रहा प्री टास सर्वे ऐसा ही एक प्रयास है, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सूरतगंज ‌के अधिक्षक डॉ राजर्षि त्रिपाठी के नेतृत्व में गठित  टीमें कैम्प आयोजित कर 20 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग के लोगों के रक्त के नमूने ले रही हैं, ताकि इस मूक बीमारी की समय रहते पहचान की जा सके। गुरुवार की रात ग्राम पंचायत बैरनामऊ मंझारी और फूलपुर की सँकरी गलियों में एक अलग ही हलचल थी। स्वास्थ्य कर्मियों के साथ सीएचओ – पीएसपी के सदस्य ग्राम पंचायत बैरनामऊ के प्रधान-प्रतिनिधि शेर बहादुर और ग्राम पंचायत फूलपुर के बीडीसी सदस्य सीमा देवी व कोटेदार रमेश कुमार, सहित सीएचओ, आशा कार्यकर्ता और संगिनी दरवाज़ा-दरवाज़ा दस्तक दे रहे थे- ज़रा बाहर आइए… फाइलेरिया की जाँच करानी है।”रात दस बजे ग्राम पंचायत बैरनामऊ में शेर बहादुर ने फीता काटकर प्री-टास सर्वे की शुरुआत की और सबसे पहले अपना रक्त सैंपल देकर जन प्रतिनिधि होने का फर्ज निभाया। यह केवल एक सर्वे नहीं, बल्कि जन-जागरूकता और सामाजिक उत्तरदायित्व का परिचायक था जिसको बीते माह अप्रैल में गठित पीएसपी सदस्य अंजाम दे रहे थे। इस पहल से पहली ही रात 127 लोगों के सैंपल लिए गए। वहीं फूलपुर में बीडीसी सदस्य सीमा देवी और कोटेदार रमेश कुमार ने कार्यक्रम का शुभारंभ किया, जहाँ 65 लोगों के नमूने लिए गए। बैरनामऊ में सर्वे टीम का नेतृत्व कर रहे लैब टेकनीशियन कमल प्रभात ने बताया कि फाइलेरिया संक्रमित मच्छरों से फैलने वाली लाइलाज बीमारी है, इसके लक्षण 10–15 वर्षों बाद दिखाई देते हैं तब तक स्थिति गंभीर हो जाती है। इसके बावजूद लोग ब्लड सैंपल देने से हिचकते हैं। उनका मानना है कि जब कोई लक्षण नहीं हैं तो जांच क्यों कराएं। लेकिन जब उन्होंने देखा कि उनका प्रतिनिधि खुद साथ खड़ा है, तो वे भी आगे आए।प्रधान-प्रतिनिधि शेर बहादुर ने कहा, “यह सिर्फ सरकारी टीम का काम नहीं है, बल्कि हम सबकी जिम्मेदारी है। अगर हम बीमारी को जड़ से खत्म करना चाहते हैं, तो हर घर का दरवाजा हमें खुद खोलना होगा।” उन्होंने आगे भी सर्वे टीम को सहयोग देने का आश्वासन दिया। जिला मलेरिया अधिकारी सुजाता ठाकुर ने बताया कि फाइलेरिया उन्मूलन की दिशा में प्री-टास सर्वे एमडीए के बाद कराया जाता है ताकि यह आकलन किया जा सके कि क्षेत्र में संक्रमण की दर 1% से कम हो गई है या नहीं। यदि दर कम पाई जाती है, तो यह माना जाता है कि फाइलेरिया का संक्रमण अब समुदाय में प्रसारित नहीं हो रहा। अन्यथा उस क्षेत्र में एमडीए की एक और राउंड आवश्यक मानी जाती है।

रिपोर्टर - नफीस अहमद

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