जानिए बसंत पंचमी और माँ सरस्वती का अद्भुत रहस्य...!

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥

माँ सरस्वती...! इस अखिल विश्व में जहाँ भी कला, ज्ञान, विद्या, विवेक, बुद्धि, संगीत अथवा काव्य आदि की चर्चा होती है या फिर इनमें से किसी का भी प्रदर्शन अथवा सृजन होता है तो वहाँ माँ वागेश्वरी की साधना होती है और माता सरस्वती वहाँ सदैव विराजमान होती हैं। माँ सरस्वती की ही महिमा रही कि इन्द्रासन माँगने वाले कुम्भकरण ने निद्रासन माँग लिया और सभी देवगण सुखारी हो गए। उन्हीं की कृपा से हमारे मुख से निकले शब्द कभी शत्रु से भी मित्रता करा देते हैं तो कभी माता के रूठने पर हमारी वाणी से ही मित्र भी शत्रु बन जाते हैं। आज बसंत पंचमी है और माँ सरस्वती के भक्तों को हर साल आज के दिन का बेसब्री से इंतज़ार रहता है क्योंकि आज ही के दिन माँ की विधिवत पूजा की जाती है।. इसके लिए जगह-जगह विभिन्न आयोजन भी किये जाते हैं। मगर यहाँ एक प्रश्न खड़ा होता है कि आखिर बसंत पंचमी के दिन ही माँ सरस्वती का विशेष पूजन क्यों किया जाता है? तो आइये जानते हैं इसके पीछे का पौराणिक महत्त्व और साथ ही बसंत का महत्त्व भी समझते हैं।

पौराणिक मान्यता अनुसार सृष्टि के रचयिता ब्रम्हाजी ने मनुष्यों और जीवों की रचना के बाद देखा कि सृष्टि सुनसान और विरान पड़ी हुई है। न तो कोई बोलता है और ना ही कोई सुनता है। तब उन्होंने अपने कमंडल से धरती पर जल छिड़का जिससे एक दिव्य प्रकाश निकला और उसी के साथ अद्धभुद शक्ति के रूप में चतुर्भुजी माँ सरस्वती का प्राकट्य हुआ। माँ सरस्वती के दो हाथों में वीणा, तीसरे हाथ में पुस्तक और चौथे हाथ में अक्ष माला थी। ब्रम्हा जी ने देवी सरस्वती से अपनी वीणा बजाकर सभी प्राणियों में वाणी भरने का आह्वान किया। ब्रह्मा जी के आह्वान पर माँ सरस्वती ने अपनी वीणा के तारों पर हाथ फेरा जिससे मधुर संगीत निकला। उस मधुर संगीत से संसार के समस्त जीवों, नदियों, झरनों, हवाओं, पशु-पक्षियों में वाणी आई। मानो माँ सरस्वती की वीणा का संगीत सभी में प्रवाहित हो रहा हो। वाणी के साथ-साथ माँ सरस्वती ने मनुष्यों को ज्ञान और बुद्धि भी दी। जिस दिन माँ सरस्वती का प्राकट्य हुआ उस दिन माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि जिसे बसंत पंचमी के रूप में भी जाना जाता है। इसी वजह से हर साल बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती की विशेष रूप से पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो लोग इस दिन माँ सरस्वती की पूजा करते हैं, उन्हें कभी किसी चीज की कमी नहीं होती है।

बसंत ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है क्योंकि इसकी शुरुआत से ही पतझड़ का अंत होता है और बागों में पौधों और पेड़ों पर नए पल्लव आते हैं, फूलों की डालियाँ नई कलियों से भर जाती है। बागों में कोयल अपना गान करने लगती है, आम के पेड़ों पर धीरे-धीरे बौर आने लगते हैं। हर ओर आनंद, ऊर्जा और नवचेतना का संचार होता है और ये कोई कोरी कल्पना नहीं बल्कि प्रकृति का विज्ञान है। आज के दिन पीले अथवा श्वेत रंगों का अधिक महत्त्व होता है। क्योंकि एक ऊर्जा का प्रतीक तो दूसरा शान्ति का और दोनों का जीवन में बहुत महत्त्व है। आज बसंत पंचमी के मौके पर आप सभी पर माँ सरस्वती अपना आशीर्वाद बनाए रखें यही हमारी कामना है और साथ ही माँ सरस्वती से बस यही प्रार्थना करता है कि...


सरस्वती हे मातु शारदे! मुझको इतना वर देना,
सत्य प्रेम करुणा संग उर में भक्ति भावना भर देना,

पर-पीड़ा के गायन से सब छंद-गीत अभिसिंचित हों,
क्रान्ति भावना रहे विराजे हिंसा कदा न किंचित हो,

न्याय पक्ष में रहूँ सदा मैं, भले स्वयं से लड़ना हो,
पर वो पल माँ कभी ना देना न्याय से मुझको डरना हो,

आहुति मेरी धर्म यज्ञ में कर से अपने कर देना,
सरस्वती हे मातु शारदे! मुझको इतना वर देना...।।

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