बिहार विधानसभा चुनाव के पहले विपक्षी महागठबंधन को लगा महाझटका...

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले विपक्षी मोर्चा महागठबंधन को लगातार झटके लग रहे हैं, जहाँ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और लेफ्ट पार्टियों के बीच आपसी तनाव बढ़ता जा रहा है। इस बीच, झारखंड से एक नई मोड़ निकल आया है, झारखंड मुक्ति मोर्चा ने घोषणा की है कि वह बिहार में विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेगी। इस कदम से महागठबंधन के सामने न केवल बिहार में बल्कि विस्तार रूप से झारखंड में भी राजनीतिक चुनौती उत्पन्न हो चुकी है। 

जेएमएम ने 6 सीटों पर किया था चुनाव लड़ने का ऐलान

जेएमएम ने पहले तो छह सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। चकाई, धमदाहा, कटोरिया, मनिहारी, जमुई और पीरपैंती और स्टार प्रचारकों की सूची भी जारी की थी जिसमें पार्टी प्रमुख हेमंत सोरेन, उनकी पत्नी कल्पना सोरेन, दुमका विधायक बसंत सोरेन, वरिष्ठ नेता स्टीफन मरांडी व सरफराज अहमद शामिल थे। लेकिन इस घोषणा के सिर्फ एक दिन बाद, जेएमएम ने पूरी तरह से बिहार चुनाव से नाम वापस ले लिया, यह कहते हुए कि सीट‑बंटवारे की प्रक्रिया में उन्हें सम्मानजनक हिस्सेदारी नहीं दी गई थी और उनके साथ राजनीतिक साजिश की गई है।

एनडीए हुआ हमलावर- 

इस घटना ने महागठबंधन की अंदरूनी असहजताओं को व्यापक रूप से उजागर कर दिया है। जनता दल यूनाइटेड‑भाजपा गठबंधन (एनडीए) इस अवसर पर सीधे हमलावर हो गया है। जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि “भले ही जेएमएम बिहार में एक छोटा सा हिस्सेदार था, लेकिन उन्होंने झारखंड में आरजेडी के लिए जगह कैसे बनाई, यह कृतज्ञता का जीता‑जागता उदाहरण है। उन्होंने इसके साथ यह भी कहा कि अब महागठबंधन को झारखंड में ऐसा ही नुकसान उठाना होगा जैसा बिहार में झटकों के बाद भुगतना पड़ रहा है। 

विश्लेषकों का कहना है कि यह सिर्फ सीट‑बंटवारे का मामला नहीं है बल्कि गठबंधन की “सम्मान और हिस्सेदारी” की राजनीति का प्रत्यक्ष उदाहरण है। जेएमएम का कहना है कि लंबे समय से उन्होंने झारखंड में आरजेडी‑कांग्रेस को सहयोग दिया है, लेकिन इसके बदले में इस बार उनके लिए सम्मानित भूमिका नहीं बनी। इसके साथ ही इस निर्णय से महागठबंधन को आदिवासी वोट बैंक के नुकसान का डर भी सताने लगा है क्योंकि बिहार‑झारखंड सीमावर्ती छह सीटें  जहाँ जेएमएम ने पहले दावा किया था अब उनकी पहुँच से बाहर होती दिख रही हैं। 


भविष्य में इस स्थिति के राजनीतिक प्रभाव भी बड़े हैं-

बिहार में विपक्षी मोर्चे की एकता और समन्वय कमजोर हुआ दिख रहा है। झारखंड में भी गठबंधन की समीक्षा की तैयारी हो रही है, जिससे दोनों राज्यों में गठबंधन राजनीति में नया भूचाल आने का संकेत है। एनडीए को इस स्थिति में चुनाव रणनीति में बढ़त मिल सकती है, खासकर उन सीटों पर जहाँ पहले विपक्षी एकता दिखाई देती थी। इस पूरे घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि महागठबंधन सिर्फ नाम का गठबंधन नहीं बल्कि उसमें सम्मान, हिस्सेदारी और रणनीतिक समन्वय की राजनीति भी महत्वपूर्ण है। इसमें चूक होने पर गठबंधन न सिर्फ बहस की जद में आ जाता है बल्कि उसकी राजनीतिक विश्वसनीयता भी सवाल के घेरे में आ सकती है।

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