दीपावली आई तो जागा प्रशासन सालभर सोए विभागों में अचानक आई मिठास – अब जांचें शुरू,पर सच्चाई वही पुरानी

बैतूल : जैसे-जैसे दीपावली नज़दीक आती है, वैसे-वैसे बैतूल जिले के “सोए हुए” विभागों में अचानक जान आ जाती है! सालभर जनता को भगवान भरोसे छोड़ देने वाले खाद्य एवं औषधि प्रशासन, नगर पालिका और कई अन्य विभाग अब अचानक ‘एक्शन मोड’ में दिखाई दे रहे हैं। लगता है, दीपावली की रोशनी ने इनकी आंखें खोल दी हैं!
शहर के बाजारों में निरीक्षण का औपचारिक दौर शुरू हो चुका है — कहीं मिठाइयों के सैंपल लिए जा रहे हैं, तो कहीं गोदामों पर औचक जांच की जा रही है। लेकिन सवाल वही पुराना है – जब तक रिपोर्ट आएगी, तब तक जनता सब खा-पीकर हज़म कर चुकी होगी।
जानकार बताते हैं कि ये जांचें ज्यादातर दिखावे की होती हैं। रिपोर्ट आने तक त्योहार बीत जाता है, और मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। दुकानदारों का भी कहना है कि सालभर किसी को परवाह नहीं होती कि शहर में क्या बिक रहा है, किस हालत में बिक रहा है और किस कीमत पर बिक रहा है।
“सैंपल से पहले ईमानदारी ही घुल जाती है,” एक दुकानदार ने तंज कसते हुए कहा।
प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार, त्योहारों से पहले यह ‘औपचारिक चेकिंग अभियान’ हर साल की परंपरा बन चुका है। “रिपोर्ट बनाओ, तस्वीर खिंचवाओ और जनता को भरोसा दिलाओ कि हम काम कर रहे हैं” — यही इस मुहिम का अनकहा सच है।
कैमरे के फ्लैश तक सख्ती रहती है, फ्लैश बंद होते ही कार्रवाई भी बंद! अगर यही सख्ती सालभर बरकरार रहती, तो न मिलावटी मिठाई बिकती, न दूषित खाद्य सामग्री। लेकिन अफसोस, यहां जनता की सेहत से ज़्यादा फोटो में फिट दिखना ज़रूरी समझा जाता है।
जनता का कहना है कि हर साल यही ड्रामा दोहराया जाता है — त्योहारों में थोड़ी चहल-पहल, कुछ दिखावे की जांचें, कुछ प्रेस नोट और फिर वही पुराना सन्नाटा।
तो सवाल उठता है — क्या जनस्वास्थ्य और सुरक्षा सिर्फ त्योहारों की जिम्मेदारी है?
क्यों नहीं सालभर वही सख्ती दिखाई जाती जो इन दिनों कैमरों और कागज़ों में दिख रही है?
दीपावली जाते ही, वापस लौट आता है वही पुराना सन्नाटा, मानो जनता की सुरक्षा सिर्फ पांच दिन की सरकारी ड्यूटी हो।
त्योहार की रोशनी में हर साल चमकता है प्रशासन, लेकिन जनता की थाली में वही पुरानी मिलावट घुली रहती है।
रिपोर्टर : पियूष
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