होने जा रहा है कमाल , दुनिया में बजेगा भारत का डंका

सोचिए, आप अंतरिक्ष में हैं, जहाँ चांद और सितारे दूर-दूर तक फैले हुए हैं, और आपके सामने एक चुनौती है – दो हाई स्पीड दौड़ते हुए spaceships को एक साथ जोड़ना.. क्या आपको लगता है कि यह आसान होगा? बिलकुल नहीं! लेकिन क्या होगा जब यह काम भारत कर दे? स्पैडेक्स के जरिए इसरो ने यही कमाल कर दिखाया है ... जी हां ... स्पैडेक्स के जरिए भारत बहुत जल्द स्पेस डॉकिंग करने वाला है .अब ये स्पेस डॉकिंग क्या है , चलिए बताते हैं .. 

स्पेस डॉकिंग समझने के लिए आपको इमेजिन करना होगा कि दो  spaceships एक साथ हाई स्पीड से उड़ रहे हैं, ठीक वैसे जैसे दो बुलेट एक साथ दौड़ रही हों। अब अगर इन दोनों को बिना किसी ट्रैजडी के जोड़ना हो, तो यह कितनी मुश्किल बात होगी! यही होता है स्पेस डॉकिंग। ये  spaceshipsअलग-अलग रास्तों पर तेज़ी से जा रहे होते हैं, लेकिन जब उनका रास्ता एक दूसरे से मिलता है, तो वो एक साथ जुड़ जाते हैं, जैसा कोई जादू हो ।

अब जब आपने डॉकिंग का जादू समझ लिया, तो आपको बताते हैं स्पैडेक्स मिशन ने कैसे भारत को इस तकनीक में एक नई पहचान दी। 30 दिसंबर को, इसरो ने दो छोटे  spaceship – SDX01 (चेज़र) और SDX02 (टारगेट) – को एक साथ अंतरिक्ष में छोड़ा है ...  इनकी स्पीड 28,800 किलोमीटर प्रति घंटा है  मानो जैसे ये दोनों यान बुलेट से भी तेज़ दौड़ रहे हों, अब उन्हें मिलाकर जोड़ने का काम बाकी है.. इसरो 7 जनवरी को डॉकिंग प्रोसेस करने वाला है।

अब आप ये भी सोच रहे होंगे, यह सब इतना मुश्किल क्यों है? तो समझिए, यह सिर्फ दो spaceship को जोड़ने की बात नहीं है, बल्कि यह टेक्नोलॉजी फ्यूचर में स्पेस के कई बड़े कामों में जादू साबित होगी। डॉकिंग टेक्नोलॉजी  का इस्तेमाल चंद्रयान-4 जैसे मिशन में भी होगा , इतना ही नहीं सोचिए जब भारत अंतरिक्ष में अपना स्टेशन बनाएगा, तब डॉकिंग के जरिए हम मॉड्यूल्स को आसानी से स्पेस में जोड़ पाएंगे . अब डॉकिंग की बात हो ही रही है , तो चलिए आपको ये भी बता देते हैं कि डॉकिंग की शुरुआत कहाँ से हुई?

इसका पहला कदम 1960 के दशक में नासा ने उठाया था, जिसने  दो spaceship को डॉक किया था। इसके बाद, रूस और चीन ने भी इस तकनीक में काफी प्रगति की। लेकिन अब, भारत ने भी इस कदम को साबित कर दिया है कि हम भी अंतरिक्ष की दुनिया में किसी से कम नहीं हैं। अब हम भी उन देशों में शामिल हो गए हैं, जो अंतरिक्ष में यानों को जोड़ने की इस जादुई तकनीक को समझते और इस्तेमाल करते हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो आज भारत अंतरिक्ष में केवल spaceship भेजने वाला देश नहीं रहा, बल्कि हम spaceship को जोड़ने, ठीक करने का काम भी कर सकते हैं ...स्पैडेक्स भारत के स्पेस मिशन्स के लिए एक नई शुरुआत है। चाहे वो चंद्रयान हो, भारत का अंतरिक्ष स्टेशन हो, या  रोबोटिक्स मिशन – यह टेक्नोलॉजी भारत को अंतरिक्ष में हर कदम पर एक नई ऊंचाई पर ले जाएगी।

 

 

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