ना यूपी से नाता, न सत्ता की चाह...फिर भी बनीं मुख्यमंत्री!

कुछ तो खास बात जरूर रही होगी… ऐसे ही कोई भारत और उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री नहीं बन जाता। सख्त फैसलों के लिए पहचानी जाने वाली इस महिला नेता को कभी “पैराशूट सीएम” भी कहा गया — वजह ये कि उनका यूपी से कोई सीधा नाता नहीं था। लेकिन जब किस्मत में लिखा हो यश और नेतृत्व, तो रास्ते खुद-ब-खुद बन जाते हैं।

हम बात कर रहे हैं भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री और उत्तर प्रदेश की तीसरी मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी की — जिन्होंने ना सिर्फ महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश की, बल्कि अपने नाम को भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज करवा दिया।

एक राजनीतिक मोड़ जिसने इतिहास बना दिया

उस समय कांग्रेस के भीतर उठापटक चल रही थी। पंडित नेहरू को भी कुछ कद्दावर नेताओं के बढ़ते प्रभाव से चिंता हो रही थी। मौजूदा मुख्यमंत्री चंद्रभानु गुप्ता का रसूख इस कदर बढ़ गया था कि विधायक पहले उनके पैर छूते थे, फिर नेहरू के सामने झुकते थे। ऐसे में बात उठी कि अगला मुख्यमंत्री कौन हो। चंद्रभानु नहीं चाहते थे कि कमलापति त्रिपाठी के गुट से कोई सीएम बने, लिहाज़ा चर्चा चल निकली — और फिर एक अप्रत्याशित फैसला लिया गया: एक महिला को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया जाए। कांग्रेस ने दांव खेला और सुचेता कृपलानी को प्रदेश का नेतृत्व सौंप दिया। इससे पार्टी के भीतर मचे बगावत के सुर कुछ समय के लिए शांत हो गए।

सुचेता कृपलानी: एक झलक निजी जीवन पर

25 जून 1908 को हरियाणा के अंबाला में जन्मी सुचेता कृपलानी मूल रूप से बंगाली थीं। उनके पिता एस.एन. मजुमदार ब्रिटिश सरकार के अधीन डॉक्टर थे, लेकिन दिल से राष्ट्रवादी। सुचेता ने लाहौर और दिल्ली में पढ़ाई की, सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और फिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में लेक्चरार बनीं।

वो गाना गाने की शौकीन थीं और राजनीति में आने से पहले उनका यूपी से कोई वास्ता नहीं था। 1936 में उन्होंने जीवतराम भगवानदास कृपलानी (जे.बी. कृपलानी) से विवाह किया — जो उनसे 20 साल बड़े थे। इस शादी का विरोध खुद गांधीजी ने भी किया था, लेकिन दोनों ने अपने रिश्ते को मजबूत इरादों से निभाया।

स्वतंत्रता संग्राम से संविधान सभा तक

राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस से हुई। उन्होंने 1940 में कांग्रेस की महिला शाखा अखिल भारतीय कांग्रेस महिला समिति की स्थापना की। भारत छोड़ो आंदोलन के समय वो अग्रिम पंक्ति में रहीं और गांधी जी के साथ दंगों के दौरान राहत कार्यों में हिस्सा लिया।

भारत के संविधान निर्माण के दौरान उन्हें संविधान सभा में शामिल किया गया, जहाँ उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए जोरदार तरीके से आवाज उठाई।

राजनीतिक शिखर तक का सफर

आज़ादी के बाद सुचेता कृपलानी ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा।

1952 में वो लोकसभा सांसद बनीं।

1957 में नई दिल्ली विधानसभा से चुनी गईं और लघु उद्योग मंत्रालय संभाला।

1962 में कानपुर से उत्तर प्रदेश विधानसभा पहुंचीं।

और फिर 1963 में, वो उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं — यह पद उन्होंने 1967 तक संभाला।

ये आज़ाद भारत में पहली बार हुआ था जब किसी महिला को किसी राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया।

कहा जाता है कि चंद्रभानु गुप्ता ने ही उन्हें मुख्यमंत्री पद संभालने के लिए प्रेरित किया था।

अंत की ओर
1971 में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया और फिर 1 दिसंबर 1974 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं।

एक अनसुना किस्सा…

सुचेता कृपलानी का जीवन साहस और संघर्ष का पर्याय था। एक किताब में ज़िक्र है कि जब वो नोआखाली के दंगा प्रभावित इलाकों में गांधी जी के साथ गई थीं, तो उनके पास सायनाइड का कैप्सूल होता था। क्योंकि उन्हें डर था कि अगर कोई अनहोनी हो, तो आत्मरक्षा का यही अंतिम उपाय हो सकता है। महिलाओं के लिए उस समय हालात बेहद मुश्किल थे — लेकिन वो डटी रहीं।

सुचेता कृपलानी सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि भारत की राजनीति में एक प्रेरणा हैं। उनकी कहानी बताती है कि जब एक महिला ठान ले, तो वो इतिहास बना सकती है — चाहे सामने कितनी भी बड़ी चुनौतियाँ क्यों न हों।

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