अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष श्रीमती हरवंश डांगे रिटायर्ड प्रिंसिपल।

मध्यप्रदेश :  तू ही जन्नत, तू ही अस्मत है घर की।, तू ही नारी दहलीज लाज की। सच कटुता है नर जीवन की।
 पृथ्वी पर महिलाओं के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यूं तो महिलाओं के बिना जीवन ही नहीं है इसलिए कामायनी में जयशंकर प्रसाद जी के महिलाओं के सम्मान में कहा है, " नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत नग पग तल में, पीयूष सुता सी बहा करो जीवन के सुंदर समतल में"। इसका सीधा अर्थ है कि, महिलाओं का योगदान हर जगह हर क्षेत्र में है। महिलाओं की क्षमता को नजरअंदाज करके समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। नारी नहीं किस्सा नारी नहीं कहानी, नारी की गोद में पलती है जिंदगानी। नारी परिवार बनाती है, परिवार घर बनता है, घर समाज बनता है और समाज ही देश बनता है। इससे साफ है कि शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के बिना परिवार समाज और देश का विकास नहीं हो सकता। आज महिलाओं ने चूल्हे चौके की दुनिया से निकल कर जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त की है। लेकिन पुरुष उसकी पीठ थपथपाने के बजाय अपनी खीज मिटाता रहता है। लेकिन आज भले ही बादशाहत, रियासत और नवाबी खत्म हो गई है लेकिन आज भी घरों में मर्द की औरत पर तानाशाही का किस्सा बदस्तूर है। मेरा कहना है कि पुरुष अपने झूठे दंभ को दरकिनार करके महिलाओं को पांव की जूती नहीं बल्कि सर का ताज का दर्जा दे।

 तुलसी, पीपल, आंवला, औरत केल सामान।
औरत घर का अलंकरण, औरत घर की शान।

 भारतीय नारी अब अबला नहीं सबला है, उसकी घुटन भरी चार दिवारी टूट चुकी है। आज वह हर क्षेत्र में लीडर है। अब वह घर और  बाहर देश विदेश में भी सुदृढ़ होकर अपना परचम फैला रही है जैसे प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति के रूप में, इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री के रूप में, कल्पना चावला अंतरिक्ष वैज्ञानिक के रूप में, किरण बेदी वरिष्ठ महिला आईपीएस अधिकारी के रूप में।  पुलिस विभाग में महिलाओं ने उच्च पद प्राप्त किए हैं। इतने गुण एवं योग्यता होते हुए भी महिलाएं प्रतिदिन अत्याचारों एवं शोषण का शिकार हो रही है। ऐसी घटनाओं पर सरकार को गंभीरता पूर्ण विचार करना चाहिए महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक सुरक्षा एवं न्याय मिलना चाहिए तभी समाज व देश का चौमुखी विकास संभव है। राष्ट्र एवं वर्ल्ड बैंक ने बढ़ती महिलाओं के साथ बढ़ती हिंसा यौन शोषण को मूक महामारी कहा है, इसमें किसी भी देश की महिलाएं अछूती नहीं है। महिलाओं तक शिक्षा को पहुँचा कर आर्थिक रूप से उन्हें सशक्त बनाकर अधिकारों तथा कानून के प्रति जागरुक बनाकर इन घटनाओं को रोका जा सकता है। महिलाओं को हाशिए पर रखकर कोई भी समाज एवं देश आगे नहीं बढ़ सकता हैं ।
औरत कुमकुम शातिया, 
औरत वंदनवार, 
औरत से ही घर लगे उत्सव और त्योहार। 
मैरी पोल स्टोन क्रस्ट लेखिका का कहना है कि "घर और कार्यालय की दोहरी जिम्मेदारी के कारण महिलाएं
कार्यस्थल पर शीर्ष  अर्थात उच्च पद तक नहीं पहुंच पाती। आज भी 80% महिलाएं खेती पर निर्भर हैं। ग्रामीण महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ी हुई है। आज भी असमान लिंग अनुपात, महिलाओं की औसत आयु में कमी, बाल विवाह प्रसव काल में मृत्यु, लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को अधिक महत्व देना, कुपोषण एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं। सरकार की ओर से सुधार किए गए हैं, लेकिन पर्याप्त नहीं है। जैसे आंगनबाड़ी सेवाएं पोषण अभिया,  किशोरियों के लिए योजनाएं, युवाओं के लिए योजनाएं, सामाजिक न्याय, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ इत्यादि। आज संसद में भी महिलाओं की संख्या कम है, अधिक होनी चाहिए, इसके अलावा ग्रामीण अंचलों में पंचायत स्तर पर अधिकांश महिलाओं को केवल मुखौटे की तरह इस्तेमाल किया जाता है, यानी चुनाव तो महिलाएं जीतती हैं लेकिन सत्ता संबंधी सभी निर्णय परिवार के पुरुष लेते हैं। टिकट देते समय इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि जिस महिला को टिकट दे रहे हैं वह पढ़ी लिखी एवं अपने निर्णय स्वयं ले सके। एक इंटरव्यू की व्यवस्था होनी चाहिए। महिलाओं को आज भी समान पद, समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं दिया जा रहा है। महिलाएं अपने हक के लिए आगे बढ़े, खुद पर विश्वास रखें समय अनुसार समान वेतन के लिए योग्यता सिद्ध करते हुए साहस के साथ अपनी उपलब्धियां को जनता एवं सरकार के सामने लाए ताकि सरकार को लगे अर्थात एहसास हो की महिलाएं समान पद, समान कार्य के लिए समान वेतन की हकदार हैं, योग्य हैं। सरकार को ऐसे नियम बनाने चाहिए। नारी जाती अपना हक अनशन करके या छीन कर नहीं मांगती। क्योंकि अतीत की नारी  शक्ति, सहनशीलता के संदूक का सिक्का थी, वर्तमान की नारी शक्ति शौर्य के शिखर पर पराक्रम का परचम है।
 नारी तू महान है, तू ही भारत की शान है 
हजारो फूल चाहिए एक माला बनाने के लिए।
हजारों दीप चाहिए, आरती सजाने के लिए 
हजारों बूंद चाहिए, समुद्र बनाने के लिए।
पर एक स्त्री ही काफी है एक घर को स्वर्ग बनाने के लिए।

 

लेखिका -  हरवंश डांगे

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