सड़क और शिक्षा - किसी भी राष्ट्र की मज़बूत नींव होती है इसमें भ्रष्टाचार होना दुर्भाग्यपूर्ण है।

बिहार - "सड़क और शिक्षा किसी भी राष्ट्र की मज़बूत नींव होती हैं। इनका कमजोर होना केवल विकास की गति को नहीं रोकता, बल्कि पूरे देश के भविष्य के लिए दुर्भाग्य साबित होता है।" राष्ट्र की प्रगति और समृद्धि उसकी बुनियादी संरचनाओं पर टिकी होती है। इनमें से सड़क और शिक्षा दो ऐसे स्तंभ हैं, जो किसी भी देश की नींव को मज़बूत बनाते हैं। जिस राष्ट्र के पास अच्छी सड़क व्यवस्था और सुदृढ़ शिक्षा तंत्र होता है, वह विकास की दौड़ में सबसे आगे निकलता है। सड़कें केवल यात्रा और परिवहन का साधन नहीं हैं, बल्कि आर्थिक विकास की धड़कन हैं। एक अच्छी सड़क ग्रामीण क्षेत्रों को शहरी बाज़ारों से जोड़ती है, व्यापार को गति देती है और उद्योगों को फलने-फूलने का अवसर प्रदान करती है। सड़कें स्वास्थ्य और आपातकालीन सेवाओं तक त्वरित पहुँच सुनिश्चित करती हैं। ग्रामीण इलाकों में सड़क सुविधा होने से किसान अपनी उपज सही समय पर बाज़ार तक पहुँचा सकते हैं, जिससे उनकी आय और जीवन स्तर सुधरता है शिक्षा राष्ट्र की आत्मा है। शिक्षित नागरिक न केवल अपनी व्यक्तिगत प्रगति सुनिश्चित करते हैं, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी उपयोगी सिद्ध होते हैं। शिक्षा लोगों को जागरूक, कुशल और आत्मनिर्भर बनाती है। यह सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने का सबसे प्रभावी हथियार है और वैज्ञानिक सोच को प्रोत्साहन देती है। एक शिक्षित समाज ही लोकतंत्र की मज़बूत नींव रख सकता है। सड़क और शिक्षा दोनों का आपस में गहरा संबंध है। सड़कें विद्यालयों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों तक पहुँच आसान बनाती हैं, जिससे शिक्षा का प्रसार होता है। वहीं शिक्षा से प्रशिक्षित लोग सड़क निर्माण, यातायात प्रबंधन और नई तकनीकों के विकास में योगदान देते हैं। इस प्रकार सड़क और शिक्षा एक-दूसरे को पूरक हैं और मिलकर राष्ट्र को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाते हैं। किसी भी राष्ट्र के लिए सड़क और शिक्षा नींव के समान हैं। मज़बूत सड़कें और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ही उस राष्ट्र को वैश्विक पटल पर पहचान दिला सकती हैं। इसलिए सरकार और समाज दोनों का दायित्व है कि इन दोनों क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दें, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ एक विकसित, सशक्त और आत्मनिर्भर राष्ट्र का सपना साकार कर सकें। लेकिन हमारा दुर्भाग्य है की हमारे देश की शिक्षातंत्र विकसित नही है ।अंग्रेजो के द्वारा स्थापित की गई शिक्षा नीति पूर्णरूपेण कारगर साबित नही हुई, आजादी के बाद की शिक्षा नीति भी अबतक सटीक और कारगर साबित नही हुई है ,प्राइवेट सेक्टर में शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया है मोटी मोटी फीस गार्जियन दे नही पा रहे है और सरकारी शिक्षातंत्र की बात करे तो सरकारी शिक्षातंत्र की कमर ही टूटी हुई है।अरबो रूपए शिक्षा के नाम पर प्रत्येक राज्य में प्रतिवर्ष जारी होते है मगर परिणाम कुछ नही निकलता।देश की शिक्षातंत्र में भी भ्रष्टाचार का बोलबाला है। देश में जो हाल शिक्षा का है वही हाल सड़क का भी है। देश में सड़के बनती है और दो साल से ज्यादा नही चलती। देखते देखते सड़को में गड्डे पड़ जाते है।ऐसा लगता है कि सारे भ्रष्टाचारी सड़क विभाग में ही जमा है। शिक्षा और सड़क – दोनों ही समाज और देश की प्रगति की रीढ़ हैं। इन्हें सुधारने के लिए कुछ ठोस कदम ज़रूरी हैं:
शिक्षा व्यवस्था सुधारने के उपाय
शिक्षकों की गुणवत्ता: योग्य और प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति हो, नियमित प्रशिक्षण मिले। बुनियादी ढांचा: हर विद्यालय में पुस्तकालय, प्रयोगशाला, खेल मैदान और डिजिटल साधन हों। समान शिक्षा: सरकारी और निजी विद्यालयों के बीच की खाई कम हो। व्यावहारिक शिक्षा: केवल किताबों तक सीमित न होकर, तकनीकी व कौशल आधारित शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए।
जवाबदेही: विद्यालयों और अधिकारियों की जिम्मेदारी तय हो कि शिक्षा की गुणवत्ता पर समझौता न हो।
सड़क व्यवस्था सुधारने के उपाय
गुणवत्तापूर्ण निर्माण: सस्ती सामग्री से काम न होकर, मानक सामग्री और तकनीक का प्रयोग हो।निगरानी और जवाबदेही: सड़क बनाने वाली एजेंसियों और अधिकारियों की जिम्मेदारी तय हो। नियमित मरम्मत: गड्ढों और खराब हिस्सों की समय पर मरम्मत हो। यातायात प्रबंधन: ट्रैफिक सिग्नल, ज़ेब्रा क्रॉसिंग, फुटपाथ और ओवरब्रिज जैसी सुविधाओं का विस्तार हो।
जनभागीदारी: स्थानीय लोग और पंचायतें सड़क की स्थिति पर सरकार को रिपोर्ट कर सकें। निष्कर्ष यह है कि ईमानदार नीति, जवाबदेही और जनभागीदारी से ही शिक्षा और सड़क दोनों व्यवस्थाएँ सुधर सकती हैं।
लेखिका - सुनीता कुमारी
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