महागठबंधन में मचा घमासान: सीटों की लड़ाई बनेगी एनडीए की ताकत?

बिहार विधानसभा चुनाव की नामांकन प्रक्रिया खत्म होते ही राजनीतिक समीकरण धीरे-धीरे साफ होने लगे हैं। लेकिन विपक्षी महागठबंधन के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर जारी खींचतान ने इस गठबंधन की मजबूती पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या महागठबंधन की आपसी लड़ाई एनडीए को फायदा पहुंचा सकती है? आइए विस्तार से जानते हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव के नामांकन प्रक्रिया पूरी होते ही राजनीतिक तस्वीर साफ हो गई है। एनडीए को सत्ता से हटाने के लिए बने महागठबंधन के सहयोगी दलों के बीच सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन पाई है। फॉर्मूले की औपचारिक घोषणा भले ही न हुई हो, लेकिन नामांकन खत्म होते ही यह स्पष्ट हो गया कि महागठबंधन के अंदर सीटों पर आपसी टकराव किस हद तक पहुंच गया है। प्रदेश की कुल 243 विधानसभा सीटों पर महागठबंधन की ओर से कुल 254 उम्मीदवार मैदान में हैं। यानी 11 सीटों पर दो-दो उम्मीदवारों ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने का मन बनाया है। यह विवाद महागठबंधन के लिए सिरदर्द बन सकता है और तेजस्वी यादव के चुनाव अभियान को कमजोर कर सकता है। इस गठबंधन में सबसे ज्यादा सीटें आरजेडी ने अपने नाम की हैं...143 सीटें। वहीं कांग्रेस पिछले चुनाव की तुलना में 9 सीटें कम यानी 61 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इसके अलावा, सीपीआई माले 20, सीपीआई 9, सीपीएम 4, मुकेश सहनी की वीआईपी 15 और आईपी गुप्ता की पार्टी 3 सीटों पर चुनाव मैदान में हैं।

हालांकि, कुछ सीटों पर महागठबंधन के घटक दलों के उम्मीदवार आमने-सामने आ गए हैं। पहली फेज की वैशाली सीट पर आरजेडी और कांग्रेस, तारापुर पर आरजेडी और वीआईपी, राजापाकर, रोसड़ा और बिहारशरीफ में कांग्रेस और सीपीआई के उम्मीदवार आमने-सामने हैं। वहीं, दूसरी फेज की कहलगांव, सिकंदरा, वारिसलीगंज और बेगूसराय की कुछ सीटों पर भी आंतरिक टकराव जारी है। आरजेडी ने कुछ स्थानों पर कांग्रेस के साथ सीधे मुकाबले से बचने की कोशिश की है, लेकिन कई सीटों पर दोनों दलों के उम्मीदवारों की टक्कर बने रहने से महागठबंधन की ताकत कमजोर पड़ सकती है। वहीं, एनडीए ने सीट शेयरिंग विवाद तो झेली, लेकिन नामांकन के साथ ही अपने मतभेद सुलझा लिए हैं और गठबंधन के तहत एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतर चुका है। इस मजबूती का फायदा उन्हें चुनाव में मिल सकता है, खासकर तब जब विपक्षी महागठबंधन आपस में बंटा हुआ नजर आ रहा है।

जाहिर है बिहार की राजनीति लंबे समय से सत्ता और गठबंधन के खेल से जुड़ी रही है। इस बार का चुनाव महागठबंधन के लिए इसलिए भी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि उसके भीतर के मतभेद उसके लिए भारी पड़ सकते हैं। क्या यह आंतरिक संघर्ष महागठबंधन के लिए अंत साबित होगा, या फिर वे चुनावी जंग में नए सिरे से अपनी ताकत दिखाएंगे? आने वाले दिनों में इसका जवाब साफ होगा। 

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