बिहार 2025: डबल इंजन बनाम रोजगार और पलायन की जंग
बिहार का चुनावी रण अब पूरी तरह सज चुका है। पहले चरण की वोटिंग से ठीक पहले सियासत का तापमान अपने चरम पर है। कहीं मोदी-योगी की जोड़ी मैदान में है, तो कहीं तेजस्वी-राहुल की जोड़ी पलटवार कर रही है। लेकिन अब मायावती और अखिलेश यादव की एंट्री ने इस मुकाबले को और दिलचस्प बना दिया है। जी हां 6 नवंबर को पहले चरण की वोटिंग है और उससे ठीक पहले हर पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। बीजेपी विकास और ‘डबल इंजन’ के नारे पर चल रही है, तो महागठबंधन रोजगार और पलायन के मुद्दे पर सरकार को घेरने में जुटा है। ऐसे में अब सवाल उठता है कि क्या यूपी की सियासी हवा बिहार में भी असर दिखाएगी? या बिहार के मैदान में स्थानीय मुद्दे भारी पड़ेंगे? आइए आपको विस्तार से बताते हैं...
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण का प्रचार आज थम जाएगा। इससे पहले हर पार्टी ने मतदाताओं को लुभाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है। 243 सीटों में से पहले चरण में 124 सीटों पर 6 नवंबर को वोट डाले जाएंगे, जबकि बाकी 119 सीटों पर मतदान 11 नवंबर को होगा। और गिनती 14 नवंबर को होगी यानि चुनाव के परिणाम 14 नवंबर को आएंगे। वहीं चुनाव प्रचार की बात करें तो बीजेपी ने इस बार अपने सबसे बड़े स्टार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर से फ्रंट पर ला दिया है। वाराणसी से लेकर बक्सर तक, मोदी के रोड शो में भीड़ उमड़ रही है। वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार बिहार में रैलियाँ कर रहे हैं, और ‘जंगलराज बनाम सुशासन’ का मुद्दा जोर-शोर से उठा रहे हैं। वहीं दूसरी तऱफ डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा पार्टी के प्रदेश स्तर पर मोर्चा संभाले हैं, जबकि संगठन को मजबूत करने में केशव प्रसाद मौर्य की भी एंट्री हो चुकी है। बीजेपी की रणनीति साफ है कि उत्तर प्रदेश मॉडल को बिहार की जमीन पर दोहराने की कोशिश करना।
वहीं, राजद, कांग्रेस और वाम दलों का महागठबंधन इस बार एकजुट दिख रहा है। तेजस्वी यादव बेरोजगारी, पलायन और महंगाई के मुद्दों पर नीतीश सरकार पर लगातार हमलावर हैं। राहुल गांधी ने भी मोर्चा संभाल लिया है और उनका फोकस है ‘युवा और किसान वोटर्स’। राहुल और तेजस्वी की जोड़ी महागठबंधन को ‘नई ऊर्जा’ देने की कोशिश में है। लेकिन अब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी बिहार के चुनावी मैदान में उतर चुके हैं। दरभंगा की सभा में उन्होंने सीधा बीजेपी पर निशाना साधा और कहा कि ‘अब जनता बदलाव चाहती है, और बिहार में भी बीजेपी की विदाई तय है।’ लेकिन उनके बयान के बाद यूपी से लेकर बिहार तक तंजों का दौर शुरू हो गया। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने सोशल मीडिया पर कविता के अंदाज़ में लिखा...
‘यूपी की पार्टी, बिहार में प्रचार।
न उम्मीदवार, न जमीन, फिर भी अहंकार।’
उन्होंने अखिलेश पर कटाक्ष किया...
‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना!’
और कहा कि ‘बिहार में साइकिल पंचर हो चुकी है।’
वहीं इस चुनाव जंग में अब बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती भी मैदान में उतरने जा रही हैं। जी हां उन्होंने ऐलान किया है कि BSP बिहार की सभी 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। 6 नवंबर को वो अपनी पहली रैली कैमूर के भभुआ में करेंगी। मायावती दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वोट बैंक को जोड़ने की कोशिश में हैं। उनकी रणनीति है कि ना NDA के भ्रष्टाचार को स्वीकार करेंगे, ना महागठबंधन की वादाखिलाफी को। आपको बता दें मायावती के पहले, BSP के युवा चेहरा आकाश आनंद ने राज्य का दौरा किया था, और अब मायावती खुद मैदान में उतरकर अपने वोट बैंक को सक्रिय करने की तैयारी में हैं।
जाहिर है बिहार का चुनाव अब सिर्फ दो ध्रुवों की लड़ाई नहीं रह गया है। अब मैदान में तीन-तीन ताकतें हैं...एनडीए, महागठबंधन और मायावती की BSP। मायावती का मैदान में उतरना सीधे तौर पर महागठबंधन के वोट बैंक पर असर डाल सकता है, खासकर दलित और पिछड़े वर्ग के इलाकों में। वहीं, बीजेपी के लिए यूपी के नेता बिहार में प्रचार कर रहे हैं, तो विपक्ष भी ‘यूपी के चेहरों’ से मुकाबला दे रहा है। यानी बिहार की जंग अब ‘दिल्ली-लखनऊ बनाम पटना’ के अंदाज़ में लड़ी जा रही है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या बिहार फिर ‘डबल इंजन’ पर भरोसा करेगा? या जनता ‘रोजगार बनाम व्यवस्था’ के मुद्दे पर नया फैसला देगी? फैसला जो भी हो लेकिन इतना तो तय है कि इस बार बिहार का चुनाव सिर्फ प्रदेश का नहीं, बल्कि देश की राजनीति के भविष्य का भी इम्तिहान बन गया है। ऐसे में इस इम्तिहान में पास कौन होता है, ये देखना दिलचस्प होगा।
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