क्या बिहार चुनाव में योगी फैक्टर बनेगा गेमचेंजर? जानिए पूरी रणनीति

बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और अब मैदान गर्म होता जा रहा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भाजपा के स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ ने बिहार की धरती पर कदम रख दिया है। बुलडोजर बाबा के नाम से मशहूर योगी की बिहार में एंट्री के बाद सवाल उठता है कि क्या उनकी कड़क छवि और हार्ड हिंदुत्व की रणनीति सीमांचल जैसे संवेदनशील इलाकों में बीजेपी की ताकत बढ़ा पाएगी? या फिर यह बिहार की जटिल वोटबैंक राजनीति में नया विवाद खड़ा करेगी?

आपको बता दें एनडीए के घटक दलों के बीच सीटों का बंटवारा तो हो चुका है, लेकिन असली जंग प्रचार के मैदान में अब शुरू हो रही है। इस बार बिहार की राजनीति में एक नाम जो खासा चर्चा में है, वह है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भाजपा के स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ का। बिहार की जमीन पर उनकी एंट्री चुनावी गलियारों में खलबली मचा रही है। योगी आदित्यनाथ का बिहार दौरा राजनीति की उस चतुराई का हिस्सा है जो सीधे हिंदुत्व के रंग में रंगी हुई है। पटना के दानापुर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी रामकृपाल यादव और सहरसा में डॉ. आलोक रंजन के समर्थन में हुई जनसभाएं इस बात का संकेत हैं कि बीजेपी इस चुनाव में पूरी ताकत से मैदान में है। खासकर सहरसा, जो सीमांचल और कोशी क्षेत्र के नजदीक है, और मुस्लिम वोट बैंक का गढ़ माना जाता है। यहां योगी की एंट्री को बीजेपी की हिंदुत्व पर आधारित वोट बैंक मजबूत करने की रणनीति माना जा रहा है। दरअसल, बिहार में अब तक किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को एनडीए से टिकट नहीं मिला है, जबकि महागठबंधन और AIMIM ने मुस्लिम वोट बैंक पर खासा दावेदारी दिखाई है। ऐसे में क्या योगी की कड़क छवि और हिंदुत्व की आड़ में बीजेपी अपने विरोधियों को पीछे छोड़ पाएगी? बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि आने वाले दिनों में योगी आदित्यनाथ बिहार में 20 से अधिक चुनावी रैलियां करेंगे। पार्टी के कई प्रत्याशी खासकर उन इलाकों से जहां मुकाबला त्रिकोणीय या चौकोणीय हो सकता है, उनसे योगी की मांग बढ़ रही है।

देखा जाए तो योगी की रैलियां सिर्फ प्रचार नहीं, बल्कि ओवैसी और AIMIM के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ बीजेपी की प्रतिक्रिया हैं। सख्त राजनीतिक संदेश के साथ यह चुनावी युद्ध अब और भी तगड़ा होने वाला है। चुनावी अखाड़े में अब असली मुकाबला शुरू हुआ है!ऐसे में कुल मिलाकर सवाल ये है कि क्या योगी आदित्यनाथ की एंट्री बिहार चुनाव की दिशा बदल देगी? क्या ये हिंदुत्व की राजनीति बिहार की जमीन पर मजबूत पकड़ बनाएगी? और सबसे अहम, क्या बिहार के वोटर इस चुनाव में विकास की उम्मीदों को प्राथमिकता देंगे, या फिर धार्मिक ध्रुवीकरण के जाल में फंसेंगे? लेकिन एक बात तय है, बिहार की राजनीति इस बार कहीं ज्यादा गरमाई है, और इस चुनाव का हर मोड़ बड़ा मायने रखता है। देखना दिलचस्प होगा कि अंतिम गणित किसका भारी होगा...विकास का एजेंडा या फिर धार्मिक राजनीति का रण।

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