राजसत्ता की रेस में फिर से ‘एनडीए एक्सप्रेस’?

NDA या महागठबंधन, बिहार में इस बार किसकी सरकार? सर्वे में जानें हर पार्टी का हाल
राजनीति के हलकों में इस बार National Democratic Alliance (एनडीए) और महागठबंधन के बीच खुली टक्कर के बीच सिर्फ एक नाम ही नहीं बल्कि पूरा समीकरण बदलता नजर आ रहा है। हालिया सर्वेक्षणों के आंकड़ों से यही संकेत मिल रहे हैं कि बिहार में इस बार एनडीए फिर भारी बहुमत के साथ राज्य में सरकार बना सकती है, जबकि महागठबंधन को उम्मीद से कहीं कम सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है। इस लेख में हम जानेंगे कि कौन-कौन सी बातें इस सर्वे में सामने आई हैं, किस गठबंधन की स्थिति बेहतर दिख रही है, और राज्य के मतदाता इस बार किन मुद्दों को लेकर तैयार बैठे हैं।
सबसे पहले ध्यान देने योग्य बात है कि सर्वे द्वारा एनडीए को लगभग 153 से 164 सीटें मिल सकती हैं। 
वहीं दूसरी ओर महागठबंधन के खाते में लगभग 76 से 87 सीटें आने की संभावना बताई गई है। 
वोट‐शेयर के मोर्चे पर भी एनडीए को 49 % के लगभग समर्थन का अनुमान है, जबकि महागठबंधन को लगभग 38 % वोट मिलने की संभावना है और अन्य दलों को करीब 13 % का आंकड़ा दिख रहा है।
अगर इस अनुमान को यथार्थ मानें, तो एनडीए के पास अकेले एक-तरफा सरकार बनाने का पर्याप्त दम है। राज्य विधानसभा की कुल 243 सीटों में बहुमत के लिए 122 सीटें जरूरी हैं। ऐसे में एनडीए के संभावित 150+ सीटों की स्थिति में महागठबंधन को विपक्षी भूमिका स्वीकार करनी पड़ सकती है।
वहीं, सर्वेक्षण पार्टियों के भीतर सीट-विभाजन के लिहाज से भी रोचक विवरण पेश करता है। एनडीए के भीतर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 83-87, जनता दल (यू) (जदयू) को 61-65 सीटें मिल सकती हैं, जबकि छोटे सहयोगी दलों जैसे हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) को 4-5, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) (LJP-R) को 4-5 तथा राष्ट्रिय लोक समता पार्टी (RLM) को 1-2 सीटें मिल सकती हैं। 
दूसरी ओर महागठबंधन में राश्ट्रिया जनता दल (RJD) को 62-66 सीटें, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 7-9, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माले) या उसकी अन्य शाखाओं को 6-8, 0-1 के आसपास सीटें मिलने की संभावना है, एवं विकासशील इंसान पार्टी (VIP) को 1-2 सीटें मिल सकती हैं।
मुख्यमंत्री चेहरे की बात करें तो सर्वे कह रहा है कि नीतीश कुमार इस बार भी सबसे भरोसेमंद विकल्प बने हुए हैं—उनका समर्थन लगभग 46 % तक आंका गया है। 
इसके बाद तेजस्वी यादव का नाम आता है जो लगभग 15 % के साथ दूसरी पसंद बने हुए हैं। 
इन आंकड़ों के बीच यह समझना जरूरी है कि बिहार की राजनीति सिर्फ आंकड़ों का ही खेल नहीं है—यह जाति-धर्म, विकास-वाद, रोजगार, पलायन और सामाजिक न्याय जैसे विविध संघर्षों का संगम भी है। इस बार सर्वे में विशेष रूप से यह बात उठी है कि युवाओं के बीच बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दे तेजी से प्रभावी हो गए हैं।
एनडीए अपने विकास-वाद, सुशासन के नारों और केंद्र-राज्य के संसाधनों को लेकर चुनावी कैंपेन कर रहा है। वहीं महागठबंधन ने ‘हर परिवार को रोजगार’ जैसे वादे को अपनी मुख्य रणनीति बनाया है। 
खास बात यह है कि भले ही महागठबंधन को अभी तक कम सीटें दिख रही हों, लेकिन चुनाव परिणाम आखिरकार मतदान दिन और उसके बाद की राजनीति-प्रक्रिया पर केंद्रित होंगे—जहाँ मोर्चे लॉक नहीं होते, और परिवर्तन की संभावना बनी रहती है।तो यदि अभी तक का सर्वे सही रहा, तो इस बार बिहार में फिर से NDA की सरकार बनने की राह पर दिख रही है। लेकिन यह तभी तय माना जा सकता है जब मतदान — 6 और 11 नवंबर को होने वाले पहले और दूसरे चरण में — के बाद परिणाम घोषित होंगे। मतदान के बाद अंतिम तस्वीर बदल भी सकती है। इस बीच राजनीतिक पार्टियों, मतदाताओं और विश्लेषकों की नज़र हर क्षण पर बनी हुई है। 

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