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कांग्रेस का चंदा लूट ले गई , रीजनल पार्टी , BJP भी हैरान

कांग्रेस की हालत अब ऐसी हो गई है, जैसे किसी पुराने किले की दीवारें ढहने को हों। न तो उसे चुनावों में खुद के दम पर जीत मिल रही है, और न ही चंदे के मामले में कोई खास राहत मिल रही है। वही कांग्रेस, जिसने दशकों तक देश की राजनीति में राज किया, आज चुनावी चंदे के लिए बीआरएस जैसी छोटी पार्टी से भी हार रही है। जी हां, बीआरएस ने कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए, उसे चंदे के मामले में मात दे दी है। और यहां सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, बीजेपी भी हैरान है!

बीआरएस, जो न तो केंद्र में सत्ता में है, न ही उसके पास कोई खास सांसदों का आंकड़ा है, फिर भी चंदे के मामले में कांग्रेस को टक्कर दे रहा है। कांग्रेस, जो कभी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी मानी जाती थी, अब बीआरएस से भी पीछे छूट चुकी है। 2023-24 के आंकड़ों में बीआरएस को 580 करोड़ रुपये का चंदा मिला, जबकि कांग्रेस को 288.9 करोड़ रुपये। हां, आप सही सुन रहे हैं! बीआरएस को कांग्रेस से अधिक चंदा मिला है। और यह इस बात का साफ संकेत है कि कांग्रेस का प्रभाव अब इतना कमजोर हो चुका है कि उसकी झोली में भी उतना चंदा नहीं आ रहा, जितना बीआरएस जैसी रीजनल पार्टी की झोली में समा रहा है।

इतिहास में कांग्रेस का नाम सुनते ही बड़ी-बड़ी बातें याद आती हैं। वो पार्टी जिसने सालों तक सत्ता की गद्दी पर बैठकर देश को अपनी मर्जी से चलाया। लेकिन आज वही कांग्रेस, चंदे की रेस में बीआरएस से भी पिछड़ गई है। बीजेपी के बाद बीआरएस ने साबित कर दिया कि सत्ता से ज्यादा महत्वपूर्ण है सही रणनीति और पैसा जुटाने का तरीका।

कांग्रेस, जो आज तक समझती थी कि 'हमेशा का राजा' बने रहना उसकी किस्मत है, अब उसी की चंदे की तिजोरी में भी ताले लग गए हैं। जबकि बीआरएस जैसे क्षेत्रीय दल, जिनके पास न तो सरकार है, न सांसद, वो चंदे की दौड़ में कांग्रेस को पीछे छोड़ रहे हैं। बीजेपी के मुकाबले भले ही बीआरएस छोटी हो , लेकिन चंदे में उनकी हिस्सेदारी काफी बड़ी हो गई है।

चलिए इसी के साथ आपको चंदे के ताज़ा आंकड़े बताते हैं जो पार्टियों को व्यक्तिगत, ट्रस्ट और कॉर्पोरेट घरानों से मिला है 

भा.ज.पा: 2244 करोड़ रुपये
कांग्रेस: 288.9 करोड़ रुपये
बीआरएस: 589 करोड़ रुपये
डीएमके: 60 करोड़ रुपये
वाईएसआर कांग्रेस: 121 करोड़ रुपये
जेएमएम: 11.5 करोड़ रुपये
टीडीपी: 33 करोड़ रुपये
आम आदमी पार्टी - 11.1 करोड़ रुपये
अब जब चुनावी युद्ध के मैदान में पैसे का खेल चल रहा हो, तब यह आंकड़े कांग्रेस के लिए एक कड़ा संदेश हैं। कांग्रेस के लिए अब यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या वह फिर से अपनी पुरानी ताकत को वापस पा सकेगी, या फिर वह बीआरएस जैसी पार्टी से भी पिछड़ती जाएगी?

वहीं बात अगर केवल बीजेपी की करें तो - 

2023-24 में बीजेपी को मिले चंदे में 2022-23 के मुकाबले 212% की बढ़ोतरी हुई है। यह आम है, क्योंकि यह आम चुनाव से पहले का साल था। 2018-19 में, 2019 के आम चुनाव से पहले, BJP ने 742 करोड़ रुपये और कांग्रेस ने 146.8 करोड़ रुपये के चंदे की घोषणा की थी। .इसी के साथ एक सवाल येभी है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनावी बांड योजना को रद्द किए जाने के बाद आखिर ये चंदा आ कहा से रहा है तो बता दें कि राजनीतिक पार्टियां अब अपने चंदे की व्यवस्था के लिए नए रास्ते तलाश रही हैं।  अब पार्टियां मुख्य रूप से प्रूडेंट ट्रस्ट जैसे वैकल्पिक स्रोतों से धन जुटा रही हैं। यह ट्रस्ट देशभर में राजनीतिक दलों को फंड मुहैया कराने का एक अहम जरिया बन गए हैं। प्रूडेंट ट्रस्ट के जरिए पार्टियां न केवल बड़ी राशि जुटा रही हैं, हालांकि, इस नए रास्ते पर चलने के बावजूद राजनीतिक चंदे का मुद्दा अभी भी विवादों में है, और यह देखना होगा कि आने वाले समय में इसके प्रभावी नियमन के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं।

 

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